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Kisan News: पानी में डूबी हुई घास मवेशियों के लिए घातक, इन बीमारियों को दे सकती है बुलावा…

दुधारू पशुओं के चारा, स्वास्थ्य प्रबंधन व दूध दोहन के प्रबंधन का विशेष रूप से ध्यान देने की जरूरत है. बरसात का मौसम पशुओं में बीमारियों के लिए सबसे घातक समय होता है.

मुजफ्फरपुर: बरसात का मौसम पशुपालकों के लिए बेहद चुनौतीपूर्ण होता है. ऐसे में दुधारू पशुओं के चारा, स्वास्थ्य प्रबंधन व दूध दोहन के प्रबंधन का विशेष रूप से ध्यान देने की जरूरत है. बरसात का मौसम पशुओं में बीमारियों के लिए सबसे घातक समय होता है. बाढ़ और बरसात के कारण इस मौसम में पौष्टिक चारे की कमी और संक्रमण का खतरा आम दिनों के मुकाबले अधिक होता है. जिससे दुधारू मवेशियों को बचाने के लिये उनकी समुचित देखरेख की जानी चाहिए. इससे सबसे अहम पशुओं का भोजन है. जिसमें भूलवश भी पानी में डूबा हुई घास नहीं खिलाना चाहिए. यह एक प्रकार से जहर के समान है. मनुष्य की तरह पशु भी बरसात के दिनों में विभिन्न रोगों के प्रति अधिक संवेदनशील होते है, और मवेशियों को इस मौसम में पाचन से संबंधित रोग का अधिक प्रकोप होता है. आंकड़ों के अनुसार मुजफ्फरपुर जिले में 7.50 लाख गाय व भैंस की संख्या है.

भूसा से लेकर चोकर तक फफूंद का प्रकोप

बरसात के मौसम में भूसा, हरा-चारा, दाना, दलिया, एवं चोकर में फफूंद का प्रकोप हो जाता है. साथ ही नदियों तालाब का पानी कीटाणुओं तथा विभिन्न प्रकार के परजीवियों से प्रदूषित हो जाता है. पशुओं के इस प्रदूषित चारे दाने व पानी के सेवन से पाचन से जुड़ी बीमारियां हो जाती है, जिससे दूध आदि का उत्पादन प्रभावित होता है. ऐसे में भोजन से जुड़े चीजों की लगातार निगरानी करने की जरूरत है.

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भींगा पुआल व पानी में डूबा केला का थम नहीं खिलाएं

एक्सपर्ट के अनुसार काफी संख्या में पशुपालन पुआल भी सहेज कर रखते है. लेकिन बरसात के समय पुआल यदि भींग जाये, तो उसे सूखा कर भी कभी मवेशियों को नहीं देना चाहिये. यह धीरे-धीरे जहर की तरह काम करता है. दूसरी ओर इस मौसम में खास कर भैंस को केला का थम काट कर खिलाया जाता है. ऐसे में यदि केला का थम लंबे समय से पानी में गिरा हो, तो उसे काट नहीं खिलाना चाहिए. यह काफी नुकसान करता है.

15 सितंबर तक विशेष सावधानी

15 जून से लेकर 15 सितंबर तक बारिश का मौसम रहता है. इस दौरान वातावरण में अधिक आद्रता होने की वजह से वातावरण के तापमान में अधिक उतार चढाव देखने को मिलता है. जिसका कुप्रभाव प्रत्येक श्रेणी के पशुओं पर भी पड़ता हैं. इसी मौसम के दौरान परजीवियों की संख्या में अत्यधिक वृद्धि देखने को भी मिलती है, जिनके द्वारा पशुओं को प्रोटोजन व पेरासिटिक रोग हो जाते हैं. बरसात के मौसम में जगह–जगह पानी भरने से पशुओं द्वारा मिट्टी और पानी भी संक्रमित हो जाते हैं. जिसके संपर्क में आने से स्वस्थ पशुओं के संक्रमित होने की संभावना बढ़ जाती है. ऐसे में खास कर गाय को 20 मिनट से अधिक बारिश में नहीं छोड़े. वहीं माॅनसूनी हवा के बीच यदि भैंस को भी घंटों बारिश में छोड़ दिया जाये, तो परेशानी हो सकती है.

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पशुओं के चार दुश्मन

गलघोटू- पशु के शरीर का तापमान तेजी से बढ़ता है. आंखें लाल हो जाती है व दोनों टांगों के बीच सूजन आ जाती है.

लंगड़ा बुखार- यह बेहद संक्रामक रोग है. जो बारिश में मिट्टी के अंदर पैदा होता है. इस रोग का खतरा उन पशुओं को अधिक रहता है. जिनके शेड का फर्श मिट्टी वाला होता है.

खुरपका, मुंहपका रोग- इसमें पशु के मुंह और जीभ के आस पास छाले पड़ जाते हैं. इस मौसम में भूसा, हरा चारा, दाना, दलिया, चोकर में फफूंद लग जाती है.

दुधारू पशुओं में थनैला रोग- इसमें फर्श के गीले होने व सूक्ष्म जीवाणुओं से भरे होने से दुधारू पशुओं में नीचे बैठने से रोग हो जाता है.

इन पर रखें विशेष निगरानी

पशु बाड़े में पानी का रिसाव पशुओं के आराम को प्रभावित करता है.

बरसात में उत्पन्न घास की गुणवत्ता- अधिक आद्रता मतलब अधिक जीवाणु एवं परजीवी

बरसात में दुधारू पशुओं के थनों का रखे खास ख्याल

बरसात के मौसम में दाने के भंडारण का रखे ख्याल

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