पिछले कुछ वर्षों से नागरिकों की निजी जानकारियों की सुरक्षा के बारे में कानून बनाने के प्रयास हो रहे हैं. केंद्रीय मंत्रिमंडल ने अब डिजिटल व्यक्तिगत डेटा सुरक्षा विधेयक को मंजूरी दे दी है. आधिकारिक सूत्रों के हवाले से बताया गया है कि इसे इसी महीने की 20 तारीख से शुरू हो रहे संसद के मानसून सत्र में पेश किया जायेगा. लगभग छह साल पहले सुप्रीम कोर्ट ने निजता को संविधान के अनुच्छेद 21 में प्रदत्त मूलभूत अधिकार का हिस्सा बताया था. इसके बाद सरकार ने जस्टिस बीएन श्रीकृष्णा की अध्यक्षता में एक समिति गठित की. उसकी अनुशंसा के आधार पर सरकार वर्ष 2019 में एक विधेयक लेकर आयी. लेकिन, पिछले वर्ष अगस्त में इस विधेयक को वापस ले लिया गया. तीन महीने बाद सरकार एक नये विधेयक का मसौदा लायी जिस पर विभिन्न तबके के लोगों की राय ली गयी.
यह बिल जब तक संसद में पेश नहीं हो जाता तब तक इसमें शामिल प्रावधानों का आधिकारिक ब्यौरा नहीं मिल सकता. मगर, चर्चा है कि यह प्रस्तावित कानून भारत में डिजिटल निजी डेटा के इस्तेमाल के अतिरिक्त वस्तु व सेवाओं की पेशकश करने की स्थिति में विदेश में डेटा के इस्तेमाल पर भी लागू होगा. निजी डेटा का इस्तेमाल केवल कानून सम्मत उद्देश्यों के तहत हो सकेगा जिसकी उस व्यक्ति ने अनुमति दी हो. इस कानून को लेकर सबसे ज्यादा चिंता सरकारी एजेंसियों को सुरक्षा, कानून व्यवस्था तथा अपराध को रोकने के नाम पर अनुमति लेने से छूट देने की संभावना को लेकर जतायी जाती रही है. इसके अतिरिक्त, एक डेटा सुरक्षा बोर्ड के गठन की भी चर्चा है जिसमें तकनीकी विशेषज्ञ रहेंगे.
आम लोगों को यदि लगेगा कि उनके आधार और फोन नंबर जैसी जानकारियां बिना उनकी अनुमति के इस्तेमाल की गयी हैं, तो वे बोर्ड में शिकायत कर सकेंगे. निजी डेटा के दुरुपयोग की कीमत आज भारत में खास और आम सभी लोगों को चुकानी पड़ रही है. शायद ही कोई ऐसा होगा जिन्हें रोज अनचाहे फोन कॉल या संदेश नहीं आते. सख्त कानूनों की कमी से लोगों की निजी जानकारियां दफ्तरों या मोबाइल फोन कंपनियों से आसानी से लीक हो जा रही हैं. बैंकों से पैसे चुराने से लेकर ब्लैकमेल करने जैसे अनेक अपराधों में भी इनका इस्तेमाल हो रहा है. सूचना क्रांति के वरदान को अभिशाप में बदलने से बचाने के लिए जल्द-से-जल्द निजी डेटा की सुरक्षा की व्यवस्था की जानी चाहिए.