Kalsarp Dosha: सावन मास में कालसर्प दोष के निवारण के लिए बहुत ही महत्वपूर्ण समय होता है. सावन मास में भगवान शिव का पूजन करने से कालसर्प दोष में कमी होता है. भारतीय ज्योतिष में राहू को सर्प के मुख के आकार का तथा केतु को पूंछ के आकार का माना गया है यह दोनों ग्रह वक्री होते है जब जन्मकुंडली के सभी ग्रह राहु केतु के मध्य भावों में पड़े हो उसे कालसर्प दोष कहा जाता है. ऐसे कुंडली कालसर्प योग वाली जन्मकुंडली मानी जाती है. इस जन्म में जन्मे व्यक्ति राज्याधिकार, नौकरी, व्यापार धन, परिवार एवं संतान आदि के कारण सैदव ही अनेकानेक परेशानियों तथा दुखों से पीड़ित रहते है.
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बाल्यकाल में किसी भी प्रकार की बाधा का उत्पन्न होना. अर्थात घटना-दुर्घटना, चोट लगना, बीमारी आदि का होना.
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विद्या अध्ययन में रुकावट होना या पढ़ाई बीच में ही छूट जाना. पढ़ाई में मन नहीं लगना या फिर ऐसी कोई आर्थिक अथवा शारीरिक बाधा जिससे अध्ययन में व्यवधान उत्पन्न हो जाए.
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विवाह में विलंब भी कालसर्प दोष का ही एक लक्षण है. यदि ऐसी स्थिति दिखाई दे तो निश्चित ही इसका पूजन करना चाहिए इसके साथ ही इस दोष के चलते वैवाहिक जीवन के पहले और विवाह के बाद तलाक की स्थिति भी पैदा हो जाती है.
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संतान का न होना और यदि संतान हो भी जाए तो उसकी प्रगति में बाधा उत्पन्न होती है.
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परिजन तथा सहयोगी से धोखा खाना, खासकर ऐसे व्यक्ति जिनका आपने कभी भला किया हो.
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घर में कोई सदस्य यदि लंबे समय से बीमार हो और वह स्वस्थ नहीं हो पा रहा हो साथ ही बीमारी का कारण पता नहीं चल रहा है.
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आए दिन घटना-दुर्घटनाएं होते रहना.
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रोजगार में दिक्कत या फिर रोजगार हो तो बरकत न होना.
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इस दोष के चलते घर की महिलाओं को कुछ न कुछ समस्याएं उत्पन्न होती रहती हैं.
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रोज घर में कलह का होना. पारिवारिक एकता खत्म हो जाना.
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घर-परिवार में मांगलिक कार्यों के दौरान बाधा उत्पन्न होना.
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यदि परिवार में किसी का गर्भपात या अकाल मृत्यु हुई है तो यह भी कालसर्प दोष का लक्षण है.
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घर के किसी सदस्य पर प्रेतबाधा का प्रकोप रहना या पूरे दिन दिमाग में चिड़चिड़ापन रहना.
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अत्यधिक परिश्रम के बाद भी कार्यों में मन मुताबिक सफलता न पाना आदि बहुत से सामान्य लक्षण है जिससे कुंडली में कालसर्प का पता लगाया जा सकता है.
जब कुण्डली के पहले भाव में राहु और सातवें भाव में केतु स्थित हो. इस दोष से पीड़ित जातकों को विवाह में परेशानियों का सामना करना पड़ता है.यह योग बीमारियों का भी कारण है साथ ही मानसिक रोग होने की भी संभावना रहती है.
जब कुंडली के दूसरे भाव में राहु स्थित हो और आठवें भाव में केतु स्थित हो. इस दोष से पीड़ित जातकों को शारीरिक कष्ट होते हैं यह दोष होने पर खराब स्वास्थ्य के साथ साथ वैवाहिक जीवन में भी मुश्किलों का सामना करना पड़ सकता है.
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जब कुंडली के तीसरे भाव में राहु और नवम भाव में केतु स्थित हो इस योग के कारण जातकों को कई प्रकार की समस्याओं का सामना करना पड़ता है, यह योग जातक के जीवन में नौकरी व रोजगार संबंधित समस्याएं लाता है.
जब कुंडली के चौथे भाव में राहु और दशम भाव में केतु स्थित हो. इस योग के कारण जातक के बुरे कार्यों में संलिप्त होने के आसार रहते हैं. इस दोष में व्यक्ति बुरी संगति में पड़करबुरे कार्य करता है व अपना जीवन कष्टमय बनाता है. ऐसे लोगों को चोरी की बुरी लत लग जाती है.
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जब कुंडली में राहु पांचवें भाव में और केतु ग्यारहवें भाव में स्थित हो. इस योग के कारण जातक को संतान संबंधी परेशानियो का सामना करना पड़ता है.
जब कुंडली के छठे भाव में राहु और बारहवें भाव में केतु स्थित हो. यह दोष भी जातक के लिए कष्टकारी होता है. इसमें पति पत्नी को एक दूसरे से दूर रहना होता है. इससे ग्रसित जातक एक लम्बा समय विदेश में रहने के बाद भी कोई लाभ प्राप्त नहीं कर पाते.
जब कुंडली के सातवें भाव में राहु और पहले भाव में केतु स्थित हो. इस योग के कारण जातकों का वजन बढ़ जाता है लम्बाई कम होती है व अत्यधिक मोटापा भी होता है मानसिक दुर्बलता भी इसका प्रमुख लक्षण है.
जब कुंडली में आठवें भाव में राहु और दूसरे भाव में केतु विराजमान हो. इस योग से पीड़ित जातकों को बचपन में शारीरिक रोगों का सामना करना पड़ता है. साथ ही ऐसे जातकों को नौकरी मिलने में कठिनाइयां आती हैं. व्यापार में भी क्षति होती रहती है. इस योग के परिणामस्वरूप जातक को बचपन से ही कष्ट का सामना करना पड़ता है. वह कई बार अपने माता पिता का प्रेम नहीं पाते हैं.
जब राहु कुंडली के नवम भाव में और केतु तीसरे भाव में स्थित हो इस योग से पीड़ित जातकों को पितृ दोष होता है इस योग के कारण पिता का सुख नहीं मिलता है और कारोबार में अक्सर नुकसान उठाना पड़ता है. इस दोष की वजह से जातक के भाग्य में ग्रहण लग जाता है. उसके हर प्रयास विफल हो जाते हैं. किसी भी कार्य में सफलता प्राप्त नहीं होती.
जब राहु कुंडली में दसवें भाव में और केतु चौथे भाव में स्थित हो. यह योग अपने नाम के अनुरूप जातकों के लिए घातक होता है.इस योग के कारण गृहस्थ जीवन में कलह बनी रहती है. साथ ही नौकरी में कठिनाईयों का सामना करना पड़ता है. ऐसे जातक के माता पिता से संबंध अच्छे नहीं होते. इस दोष के प्रबल होने पर जातक के माता पिता का देहांत हो जाता है.
जब कुंडली के ग्यारहवें भाव में राहु और पांचवें भाव में केतु स्थित हो. इस योग के कारण व्यक्ति गैरकानूनी कार्यों में लिप्त हो जाता है. ऐसे लोगों को नेत्र और हृदय से जुड़ी समस्याओं का सामना करना पड़ता है. ऐसे व्यक्ति को बार बार नौकरी व रोजगार के कारण इधर उधर जाना पड़ता है. उसके जीवन में स्थायित्व नहीं आता है.
जब जन्म कुंडली में राहु बारहवें भाव में और केतु छठे भाव में स्थित होता है. यह योग अन्य काल सर्प योगों की तुलना में ज्यादा भयावह है. इस योग में व्यक्ति को गुप्त शत्रुओं का सामना करना पड़ता है और मानसिक अशांति बनी रहती है. यह दोष व्यक्ति को आत्महत्या के लिए प्रेरित करता है.
1. राहु तथा केतु स्तोत्र एवं मंत्रों का जाप करें.
2.सर्प मंत्र या सर्प गायत्री एवं नाग स्तोत्र का पाठ करें .
3. मनसा देवी के मन्त्र एवं स्तोत्र का पाठ करें.
4. महामृत्युंजय मंत्र का जप करें.
5. प्रदोष व्रत और रुद्राभिषेक करें.
ज्योतिषाचार्य संजीत कुमार मिश्रा
ज्योतिष वास्तु एवं रत्न विशेषज्ञ
8080426594/9545290847