झारखंड के युवा नशे के नये-नये रूप का इस्तेमाल कर रहे हैं. इसका एडिक्शन होने पर युवा इलाज के लिए आने लगे हैं. कई युवा इसकी चपेट में आकर बीमार हो रहे हैं. फील गुड (अच्छा महसूस करने) से फील बेटर (राहत महसूस करने) की स्थिति में जाने की इच्छा रखनेवाले युवा धीरे-धीरे नशे की लत का शिकार हो रहे हैं. राज्य में नशे का स्पेशल क्लिनिक केंद्रीय मनोचिकित्सा संस्थान (सीआइपी) में चलता है.
यहां नशे की लत वाले शिकार लोगों की संख्या करीब 40 फीसदी की दर से बढ़ रही है. 2021 में संस्थान के नशा मुक्ति केंद्र में 1500 नये मरीजों का इलाज हुआ था. 2022 में यह संख्या करीब 2300 पहुंच गयी. 2023 में मई तक 900 नये मरीज आ चुके हैं. वहीं, हर माह करीब पांच से छह हजार मरीज फॉलोअप के लिए आते हैं.
नये मरीजों में 40 से 50 फीसदी 30 साल से नीचे वाले हैं. इनमें अब शराब की लत वालों की संख्या के बराबर दूसरे नशे के आदी लोग आने लगे हैं. इसमें ब्राउन शुगर युवाओं का सबसे पसंदीदा नशा होता जा रहा है. संस्थान में 70 बेड हैं, जो हमेशा भरे रहते हैं.
नशा नहीं मिलने पर शरीर में कई तरह की परेशानी होने लगती है
अधिकतर समय लोग नशे की जुगाड़ में लगे रहते हैं.
नशे के प्रभाव से उबरने के लिए फिर नशा खोजने लगते हैं
अन्य घरेलू, सामाजिक या पारिवारिक जिम्मेदारियों से भागने लगते हैं
आसपास के लोग या परिचित उनके नशे से परेशान होने लगते हैं.
तुपुदाना निवासी 28 साल का युवक संस्थान में इलाजरत है. ब्राउन शुगर की लत के कारण उसकी शारीरिक और मानसिक स्थिति बिगड़ गयी है. इलाज के दौरान उसने बताया कि आसपास के दूसरे लड़के ही उसको ब्राउन शुगर की पुड़िया पहुंचाते थे. एक पुड़िया की कीमत 100 से लेकर 200 रुपये तक होती है.
गांधीनगर, कांके रोड का एक युवक (20 साल से कम) भी यहां भर्ती है. उसने बताया कि एक भइया (नाम नहीं जानता) उसको पुड़िया पहुंचाते थे. नशा न मिलने पर वह बेचैन हो जाता था. कहा कि रातू रोड व अपर बाजार समेत कई स्कूली इलाकों में ब्राउन शुगर मिलता है.
झारखंड के लोग कुछ साल पहले तक नशे के रूप में ज्यादातर शराब का ही सेवन करते थे. शराब की लत लगने पर लोग यहां इलाज के लिए आते थे. अब स्थानीय युवा भी नशे के दूसरे रूप का उपयोग करने लगे हैं. अब ब्राउन शुगर की लत के शिकार युवा आने लगे हैं. यह राज्य के लिए अच्छा संकेत नहीं है. युवाओं को इससे बचना चाहिए.
डॉ संजय कुमार मुंडा, प्रभारी, नशा मुक्ति केंद्र, सीआइपी