सुप्रीम कोर्ट के फैसले से दिल्ली सरकार और अरविंद केजरीवाल को बड़ी राहत मिली है, इसके साथ ही एलजी वीके सक्सेना को बड़ा झटका लगा है. दरअसल देस की सर्वोच्च अदालत ने उपराज्यपाल विनय कुमार सक्सेना को यमुना पुनर्जीवन परियोजना पर एक उच्च स्तरीय समिति का अध्यक्ष नियुक्त किया गया था, जिस पर केजरीवाल सरकार ने एनजीटी के इस फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी थी.
वहीं केजरीवाल नीत आम आदमी पार्टी की सरकार ने सुप्रीम कोर्ट से एनजीटी के आदेश पर तुरंत रोक की मांग की थी कोर्ट में सरकार ने कहा था कि इससे दोनों अथॉरिटी के बीच और अधिक संघर्ष होगा. इधर मामले की सुनवाई कर रहे सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़ और जस्टिस पीएस नरसिम्हा ने केजरीवाल सरकार की याचिका पर अंतरिम आदेश देते हुए एनजीटी के फैसले पर स्टे लगा दिया. कुछ ही कोर्ट ने साफ किया कि वह एनजीटी के 9 जनवरी के आदेश के उसी हिस्से पर स्टे लगा रही है जिसमें एलजी को यमुना पैनल का मुखिया नामित किया गया था.
वरिष्ठ वकील अभिषेक मनु सिंघवी जो कि दिल्ली सरकार की तरफ से अपना पक्ष रहे थे उन्होंने बेच के सामने दलील दी कि यमुना की सफाई से डीडीए का कुछ लेनादेना नहीं है और एलजी को शामिल करने में एनजीटी पूरी तरह गलत है. कोर्ट ने पूछा था कि, ‘हम मानते हैं कि असली मुद्दा यह है कि क्या ट्राइब्यूनल एलजी को पैनल का मुखिया नियुक्त कर सकता है या नहीं। एनजीटी का मानना है कि चूंकि वह डीडीए के चेयरमैन हैं इसलिए पैनल का मुखिया बनाया जाए.
फिलहाल इस मामले में स्टे लगा दिया गया है अगली सुनवाई चार सप्ताह के बाद होगी. आप सरकार ने मई के अंतिम सप्ताह में सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया था। एनजीटी के आदेश को असंवैधानिक बताते हुए इस पर रोक की मांग की ती. दिल्ली सरकार ने जुलाई 2018 और इस साल 11 मई को सुप्रीम कोर्ट की संवैधानिक बेंच की ओर से दिए गए फैसले का भी जिक्र किया था.