झारखंड हाइकोर्ट ने 1000 करोड़ से अधिक के अवैध खनन मामले में प्रवर्तन निदेशालय (इडी) के गवाह अशोक यादव की ओर से दायर क्रिमिनल रिट याचिका पर सुनवाई की. जस्टिस एस चंद्रशेखर व जस्टिस रत्नाकर भेंगरा की खंडपीठ ने प्रार्थी और राज्य सरकार का पक्ष सुनने के बाद सीसीए लगाने के आदेश को निरस्त कर दिया. खंडपीठ ने सीसीए को अवैध करार देते हुए प्रार्थी को तत्काल रिहा करने का आदेश दिया.
खंडपीठ ने कहा कि राज्य सरकार ने अशोक यादव के आवेदन पर विचार करने में विलंब किया है, जो सही नहीं है. अदालत ने विभागीय मंत्री और गृह सचिव के खिलाफ सख्त टिप्पणी की और कहा, मंत्री ने संयुक्त सचिव के प्रस्ताव पर बिना सोचे-समझे अपनी स्वीकृति प्रदान की है. अदालत ने कहा : गृह सचिव के खिलाफ विभागीय कार्यवाही की जानी चाहिए. उल्लेखनीय है कि यह मामला जिस समय का है, उस समय वंदना डाडेल गृह सचिव के प्रभार में थीं.
अशोक यादव को वर्ष 2022 में सीसीए के तहत नजरबंद किया गया था. साहिबगंज के पुलिस अधीक्षक व उपायुक्त की अनुशंसा पर 15 दिसंबर तक के लिए उसे क्राइम कंट्रोल एक्ट (सीसीए) के तहत निषिद्ध किया गया था. अशोक यादव को दाहू यादव के जहाज पर गोलीबारी मामले में साहिबगंज मुफ्फसिल थाने में दर्ज केस में 30 जुलाई को गिरफ्तार किया गया था.
उस पर आधा दर्जन केस हैं, जो अवैध खनन, बिजली चोरी व आर्म्स एक्ट आदि से संबंधित हैं. वह साहिबगंज के मुफ्फसिल थाना क्षेत्र के सकरीगली स्थित समदा नाला का निवासी है. अवैध खनन से जुड़े मनी लांउंड्रिंग मामले के अनुसंधान के दौरान इडी ने आठ जुलाई 2022 को साहिबगंज में सीएम के विधायक प्रतिनिधि पंकज मिश्रा व उनके सहयोगियों से के 20 ठिकानों पर छापेमारी की थी. छापेमारी में 5.32 करोड़ रुपये नगद बरामद हुए थे.
इडी ने जब्ती सूची तैयार की थी. इडी के जब्ती सूची पर तब अशोक यादव ने बताैर गवाह हस्ताक्षर किये थे. सुनवाई के दौरान खंडपीठ ने कहा कि अभिलेखों से पता चलता है कि संयुक्त सचिव द्वारा तैयार प्रस्ताव पर विभागीय मंत्री ने बिना सोचे-समझे स्वीकृति दे दी. संयुक्त सचिव द्वारा तैयार प्रस्ताव को आगे बढ़ाने में विभागीय सचिव का यह गैरजिम्मेदाराना कृत्य था, जिसमें से बंदी का एक मूल्यवान संवैधानिक अधिकार गंभीरता से क्षीण हो रहा था.
खंडपीठ ने 15 दिसंबर 2022 को अशोक यादव के आवेदन को रद्द करने के आदेश को अवैध ठहराया. उल्लेखनीय है कि सीसीए के तहत बंद अशोक यादव ने गृह विभाग को आवेदन दिया था. इसमें कहा था कि जो कार्रवाई उसके खिलाफ की गयी है, वह दुर्भावना से ग्रसित है. उसके खिलाफ कोई साक्ष्य नहीं है, जिसे खारिज कर दिया गया था.
खंडपीठ ने अपने 15 पेज के फैसले में कहा है कि तीन नवंबर 2022 को बंदी अशोक यादव का आवेदन गृह विभाग को प्राप्त हुआ था और दो दिसंबर को फाइल विभागीय मंत्री के समक्ष रखा गया. 29 दिनों की देरी के लिए गृह सचिव द्वारा कोई स्पष्टीकरण भी नहीं दिया गया है. सचिव की यह कार्यशैली कर्तव्य के प्रति लापरवाही और कर्तव्य के प्रति समर्पण की कमी का प्रतिबिंब है, जिससे उनके खिलाफ विभागीय कार्यवाही शुरू करने का मामला बनता है.
खंडपीठ ने ‘उत्तर प्रदेश बनाम नीरज अवस्थी केस’ में सुप्रीम कोर्ट के फैसले का जिक्र करते हुए कहा है कि राज्य सरकार द्वारा प्रयोग की जानेवाली शक्ति अपराध नियंत्रण अधिनियम (सीसीए) एक वैधानिक शक्ति है, जिसका प्रयोग केवल संबंधित अथॉरिटी द्वारा ही किया जा सकता है, किसी अन्य प्राधिकार द्वारा नहीं.