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अगर पहले से करें बरसात की तैयारी, तो सालों भर हरी-भरी रहेगी आपकी रसोई

पिछले दिनों एक खबर राष्ट्रीय मीडिया में छायी रही- ‘मैकडॉनल्ड्स ने बर्गर से टमाटर हटाया’. जाहिर तौर पर जब टमाटर की महंगाई से एक बड़ी कंपनी का ये हाल है, तो एक आम गृहिणी की रसोई का संकट समझा जा सकता है. बरसात का मौसम तो पहले भी आता था, मगर पहले हमारी दादी-नानी की रसोई इन सबसे शायद ही प्रभावित होती थी.

रचना प्रियदर्शिनी

मेरे घर में किसी भी एक सब्जी से कोई एक व्यंजन नहीं बनता. लगभग हरेक सब्जी से एक से अधिक व्यंजन बनाने का रिवाज है. मसलन, आजकल मिलनेवाले परवल की ही बात करें, तो मां इससे सब्जी, भुजिया, चटनी, चोखा, अचार और मिठाई बनाती हैं. इसी तरह, लौकी की तीन तरीके की सब्जी, पकौड़े और उसके छिलके की भुजिया बना देती है. अगर कभी सब्जी पकाने का मन न हो, तो दाल पकाते वक्त उसमें 4-5 आलू धोकर डाल देती हैं. उनमें से 2-3 आलुओं का चोखा बना देती हैं और बाकी को पतले टुकड़ों में काट कर दही, काला नमक तथा जीरा पाउडर मिला कर रायता बना बन जाता है. सूखे चना दाल को तवे पर रोस्ट करके कच्चे लहसुन, नमक तथा सरसों तेल के साथ पीस कर चटनी बना ली जाती है. कहने का तात्पर्य यह कि सब्जी महंगी हो या सस्ती, मां की रसोई से निकलने वाले भोजन की थाली हमेशा चार-पांच व्यंजनों से भरी होती है.

दिखावे में न बिगाड़ें अपना बजट

खान-पान की गहरी जानकारी रखनेवाली पटना की गृहिणी सविता कुमारी बताती हैं- ‘‘हम बचपन से बरसात में सुखौता यानी सब्जियों को सुखा कर बड़ी आदि के रूप में खाते आये हैं. इस मौसम में टमाटर, हरी साग-सब्जी खाने से लोग परहेज करते थे, क्योंकि बरसात में सब्जियों में कीड़े लग जाते हैं. कहावत भी है कि सावन में साग और भादो में दूध-दही नहीं खाना चाहिए. अब बात इन दिनों टमाटर के महंगाई की, तो आधुनिकता ने हमें आडंबर के बाजार में ढकेल दिया है. दिखावे में अपने घर का बजट न बिगाड़ें, क्योंकि जिस टमाटर के बिना आपकी रातों की नींद हराम है, उसे उत्पादन करने के लिए न तो पर्याप्त पॉलीहाउस हैं और न व्यवस्था. कृषि वैज्ञानिक बताते हैं कि अत्यधिक गर्मी के कारण टमाटर की फसल खराब हुई है. इस कारण उत्पादन पर असर पड़ा है. अब टमाटर की नर्सरी लगाने का समय आया है. दो महीने बाद टमाटर का फिर से मजा लीजिए.

इन उपायों से समृद्ध होगी आपकी थाली

हमारी दादी-नानी की रसोई हमेशा भरी-पूरी रहती थी. कोई भी, कभी भी आ जाये, वह भूखा नहीं जा सकता था. न ही उसकी थाली के स्वाद से कोई समझौता होता था. हालांकि आजकल सालों भर हर तरह की सब्जियां मिलती हैं. ये बेमौसमी सब्जियां एक तो बहुत महंगे होते हैं और दूसरे, उनमें प्राकृतिक स्वाद का भी अभाव होता है. कुछ घरेलू उपायों से आप भी किफायती तरीके अपनाकर अपने खान-पान को समृद्ध बनाये रख सकती हैं.

  • आलू को धोकर उबालें और टुकड़ों में काट लें. फिर उन्हें सूती कपड़े या बोरे पर रख कर धूप में अच्छी तरह सूखाएं और एयरटाइट डिब्बे में भर कर रख लें. उपयोग करने से पहले गर्म पानी में धोकर पकाएं.

  • फूलगोभी, बंदगोभी, मटर, प्याज, लहसुन, करेला, सेम, टमाटर, कुंदरी, सहजन, मेथी आदि मौसमी सब्जियां जब सस्ती हों, तो उन्हें अच्छी तरह धो-काट कर धूप में सूखा लें. इन्हें एयरटाइट डिब्बों में पैक करके रखने पर छह महीने तक उपयोग किया जा सकता है. सब्जी पकाने से पहले इन्हें गर्म पानी में दो मिनट जरूर उबाल लें.

  • चना/खेसारी साग को बना कर उसका पानी निथार लें और फिर उसकी छोटी-छोटी टिकिया बना कर रख लें. उसमें लहसुन, नमक, पानी और भूना हुआ लाल मिर्च डाल कर मिक्सी या सिलबट्टा पर पीस लें. मजेदार चटनी तैयार है.

  • चना दाल/ मसूर दाल/ उड़द दाल/ मूंग दाल को अच्छी तरह धोकर छह-सात घंटे भीगो कर रख दें. अब मिक्सी में दरदरा पीस कर इनकी बड़ियां बनाएं और धूप में सूखा लें. आलू, लौकी, बैंगन, तोरई आदि सब्जियों के साथ इन्हें पका सकती हैं.

  • मटर, बकुला, सेम आदि को पीस कर उसकी बड़ियां बना लें. फिर उन्हें कड़े धूप में सूखा कर एयरटाइट डिब्बे में पैक करके रख लें. पकाने से पहले बस गुनगुने पानी में एक मिनट डाल कर निकालें और आलू या साग आदि के साथ मिला कर स्वादिष्ट व्यंजन पकाएं.

  • चना दाल/मूंग दाल/मूंगफली/सूखा मटर/ सूखी धनिया को तवे पर भून लें. ठंडा होने पर नमक, कच्चा लहसुन और जरा-सा सरसों तेल मिला कर पीस लें. स्वादिष्ट चटनी तैयार हो जायेगी.

तुर्की में वृहद पैमाने पर होता है सुखौता की तैयारी

तुर्की के इजमिर में टमाटर को सुखाने का काम धूमधाम से चलता है. भारत में भी यदि टमाटर को सुखाया जाये, उसका पेस्ट, जूस और अन्य उत्पाद बनाये जायें, तो किसानों को पूरा लाभ मिल सकता है और अभाव में कीमतें भी नहीं बढ़ेंगी. जब टमाटर सस्ते मिलते हैं तब सूखा कर पाउडर बनाकर एयर टाइट जार में रख कर फ्रीज में स्टोर करें और जब चाहे उपयोग कर सकते हैं. इसी तरह अमरूद, शरीफा, पपीता आदि अनेक ऐसे फल हैं, जिनसे देश में ज्यादा उत्पाद नहीं बनाये जाते, लिहाजा किसानों को ज्यादा लाभ नहीं मिलता.

समय की मांग पारंपरिक खान-पान

रांची में ‘अजम-एम्बा’ नामक ट्राइबल फूड रेस्टोरेंट चलानेवाली अरुणा तिर्की कहती हैं- ‘‘फिर से ग्रामीण और आदिवासी खान-पान की मांग बढ़ रही है. आदिवासी भोजन परंपरा में भोज्य पदार्थों के संरक्षण की पारंपरिक पद्धति हमेशा से ही मौजूद रही है. हमलोग फूल, फल, पत्ते, मछली, मांस, कच्चा बांस (हरुआ) आदि कई चीजों को सुखा कर जरूरत के अनुसार उपयोग करते हैं. इस तरीके से खाद्य सामग्रियों की पौष्टिकता नष्ट नहीं होती और उनका स्वाद भी बरकरार रहता है.’’

कंकड़बाग, पटना की 68 वर्षीया राधा रानी अंबष्ठा बताती हैं- ‘‘गर्मी के मौसम में ही हमलोग बरसात की तैयारी शुरू कर दिया करते थे. सब्जियों का सुखौता बना कर उन्हें स्टोर कर लेते थे. इसके अलावा चनौरी (चावल की बड़ियां), दनौरी (दाल की बड़ियां), अदौरी (भुआ का बड़ी), पापड़, अचार आदि भी बना कर रख लेते थे. फिर बरसात का मौसम हो या जाड़े का, हर मौसम में इनका उपयोग किया जाता था. नयी पीढ़ी इस परंपरा से वंचित दिख रही है, जबकि मैं अब भी यथासंभव बनाती ही हूं.’’

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