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मनरेगा योजना में गड़बड़झाला : लाभुकों को कागज पर बांटे बत्तख, बिना शेड बनाये निकाल लिये 72 लाख रुपये

विभिन्न गांवों के लाभुकों का बकरी, सुअर व ब्रॉयलर मुर्गी के अंडा शेड का निर्माण अभी तक नहीं हो पाया है. दो- चार जगहों पर सुअर शेड का निर्माण नियमों को ताक पर रखकर किया गया है. ग्रामीणों ने बताया के वेंडर मनमानी कर लाल की जगह काली ईंट गिरा दिया है.

चाईबासा, सुनील कुमार सिन्हा : पश्चिमी सिंहभूम के खूंटपानी में पशुधन वितरण में गड़बड़ी का मामला सामने आया है. महात्मा गांधी ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना (मनरेगा) के तहत बकरी व सूअर शेड बनाने के नाम पर करीब 72 लाख रुपये की निकासी कर ली गयी. पड़ताल में यह बात सामने आयी कि पशुधन योजना के तहत महिलाओं व सहियाओं को लाभुक तो बना दिया गया है, लेकिन अभी तक उन्हें इसका लाभ नहीं मिल पाया है. जिन लाभुकों को बकरियां दी गयी, वह 10 दिन भी जीवित नहीं रह सकी. अधिकतर बकरियां मर गयी हैं.

मनरेगा के लोकपाल बोले – गड़बड़ी हो रही तो जांच करायेंगे

यही हाल शेड निर्माण का भी है. प्रखंड के विभिन्न गांवों के लाभुकों का बकरी, सुअर व ब्रॉयलर मुर्गी के अंडा शेड का निर्माण अभी तक नहीं हो पाया है. दो- चार जगहों पर सुअर शेड का निर्माण नियमों को ताक पर रखकर किया गया है. ग्रामीणों ने बताया के वेंडर मनमानी कर लाल की जगह काली ईंट गिरा दिया है. वहीं, मनरेगा लोकपाल अरुणाभ कर ने कहा कि यदि योजना में गड़बड़ी हो रही है, तो इसकी जांच की जायेगी.

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बत्तख पालन योजना से लाभुक अनजान

पड़ताल में पता चला कि लाभुकों को कागज पर ही बत्तख दे दिये गये हैं. कई लाभुकों को यह पता भी नहीं है कि उनका चयन बत्तख पालन के लिए हुआ है. वहीं जिन लाभुकों को बकरियां दी जा रही है वह 10 दिन भी जीवित नहीं रह पाती हैं. लाभुकों के घर पहुंचते ही बकरियां खाना- पीना बंद कर कुछ ही दिन में दम तोड़ देती हैं. लाभुक के पास बकरियों की जगह उसके कान में लगाये गये सिर्फ टैग ही बच गये हैं.

शेड का फाउंडेशन भी काली ईंट से करायी जा रही

जानकारी के अनुसार, सूअर पालन शेड का निर्माण प्राक्कलन के तहत लाल ईंट से किया जाना है, लेकिन इसका निर्माण काली ईंट से कराया जा रहा है. इससे लाभुकों में रोष है. लाभुकों की मानें तो ट्रैक्टर से जमीन पर गिराते ही काली ईंट टूट जा रही है. वहीं शेड का फाउंडेशन भी काली ईंट से बनायी जा रही है. इससे बारिश में यह शेड गिर सकता है.

बकरियां मर गयीं, पर नहीं बना शेड

लाभुक दशमा बोदरा ने बताया कि मैं भोया गांव में रहती हूं. जून में पांच बकरियां मिली थी. मेरे यहां आते ही बकरियों ने खाना- पीना बंद कर दिया. 10 दिन भी नहीं हुआ था कि बकरियों के मरने का सिलसिला शुरू हो गया. अब तक तक तीन बकरियां मर चुकी हैं. एक बकरी बीमार है.

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न बत्तख मिला, न शेड बना

फूलमाई बेसरा भी एक लाभुक हैं. फूलमाई की सास पानबुई महाली बताती हैं कि उनकी बहू फूलमाई बेसरा का नाम बत्तख पालन के लाभुकों की लिस्ट में है, लेकिन उन्हें और उनकी बहू को इसकी जानकारी नहीं है. फूलमाई को आज तक न तो बत्तख मिला और न ही उनके यहां कोई शेड बना है.

सहिया को बनाया लाभुक, उसे मालूम नहीं

लाभुकों की सूची में एक और नाम है- सुनीता महाली. सुनीता महाली कहती हैं कि मुझे बत्तख पालन के लिए लाभुक चयन किये जाने की जानकारी नहीं है. प्रखंड कार्यालय या फिर मुखिया ने इसकी जानकारी नहीं दी है. मैं आंगनबाड़ी में सहिया का काम करती हूं. मुझे आज तक न तो बत्तख मिला है और न ही शेड बना है.

वेंडर खुद बनाना चाहता है शेड : मालती कुई

मालती कुई ने प्रभात खबर को बताया कि मैं पासेया गांव में रहती हूं. सुअर शेड की लाभुक हूं. सुअर शेड का निर्माण लाभुकों द्वारा कराया जाना है, लेकिन वेंडर खुद बनाना चाह रहा है. ग्रामीणों के विरोध के बाद भी वेंडर ने काली ईंट गिरा दी है.

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वेंडर ने जबरदस्ती काली ईंट गिरायी : गांगी कुई

एक अन्य लाभुक गांगी कुई ने बताया कि मैं पासेया गांव की रहने वाली हूं. मुझे सूअर पालन का लाभुक बनाया है. मुझे अब तक न तो सूअर मिला है और ना ही शेड बना है. वेंडर ने मनमानी करते हुए काली ईंट गिरायी है.

न सुअर मिला, न शेड बना, जांच होनी चाहिए : लाभुक

मेजंती कुई बोदरा ने कहा कि मैं खूंटपानी प्रखंड के पासेया गांव में रहती हूं. मुझे सुअर पालन का लाभुक बनाया गया है, लेकिन अब तक न तो सुअर मिला है और न ही शेड बना है. इसकी जांच होनी चाहिए.

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