पटना. बिहार में कम बारिश के कारण सूखे के हालात पैदा हो गये हैं. मानसून सक्रिय होने के बाद भी खेती लायक पानी नहीं दे पा रहा है. उत्तर बिहार में भी खेत सूखे हैं, दक्षिण बिहार का हाल तो और बुरा है. किसानों की नजरें आसमान पर हैं. सामान्य से कम वर्षापात होने के कारण किसानों की चिंता बढ़ने लगी है. धान की रोपनी की स्थिति भी बेहद चिंताजनक है. सीतामढ़ी जिले में अबतक महज 38 फीसदी ही धान की रोपनी हुई है. वहीं गया में धान की रोपनी के लक्ष्य से 97 प्रतिशत दूर है. गया में मात्र 2.9 प्रतिशत ही धान की रोपनी हो पायी है.
सीतामढ़ी से मिली जानकारी के अनुसार किसानों की माने तो अच्छी बारिश होती तो अबतक 50 फीसदी से अधिक रोपनी सम्पन्न हो जाती, क्योंकि जुलाई माह का यह समय रोपनी के लिए काफी महत्वपूर्ण होता है. अबतक सबसे अधिक रोपनी परसौनी प्रखंड में हुई है. यहां रोपनी का प्रतिशत 64.85 फीसदी है. जबकि सबसे कम रोपनी सुरसंड प्रखंड में हुआ है. यहां रोपनी का प्रतिशत 25.36 फीसदी है. कृषि विभाग के अनुसार धान रोपनी का लक्ष्य 104864.920 हेक्टेयर है. जिसके विरुद्ध अबतक 32015.385 हेक्टेयर में धान की रोपनी हुई है.
मानसून के इस मौसम में कई जिलों में पर्याप्त बारिश हुई है, वहीं सीतामढ़ी में अबतक यानी 15 जुलाई तक महज 58.41 एमएम बारिश रिकॉर्ड किया गया है. जबकि जुलाई माह का सामान्य वर्षापात 388.10 एमएम है. इस माह में सबसे अधिक बारिश 2 एवं 6 जुलाई को रिकॉर्ड किया गया है. इन दोनों दिनों में क्रमशः 11.8 एवं 15.3 एमएम बारिश हुई है. बताया गया है कि शीघ्र ही अच्छी बारिश नहीं होती है तो धान के उत्पादन पर इसका असर पड़ सकता है.
प्रखंड लक्ष्य (हेक्टेयर ) उपलब्धि
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बैरगनिया 2887.000 39.00 फीसदी
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बाजपट्टी 9418.000 27.05 फीसदी
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बथनाहा 7515.000 35.81 फीसदी
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बेलसंड 2908.000 63.02 फीसदी
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बोखरा 4460.000 50.13 फीसदी
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चोरौत 2336.000 28.60 फीसदी
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डुमरा 9714.500 34.29 फीसदी
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मेजरगंज 4207.420 39.00 फीसदी
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नानपुर 5424.000 45.06 फीसदी
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परिहार 10600.000 29.88 फीसदी
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परसौनी 2830.000 64.85 फीसदी
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पुपरी 4359.000 44.57 फीसदी
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रीगा 5927.000 43.00 फीसदी
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रुन्नीसैदपुर 12695.000 44.04 फीसदी
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सोनबरसा 9278.000 32.82 फीसदी
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सुप्पी 4515.000 42.52 फीसदी
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सुरसंड 5791.000 25.36 फीसदी
प्रभात खबर के साथ विशेष बातचीत में धान रोपनी के संबंध में डीएओ ब्रजेश कुमार कहते हैं कि जिले में अबतक 38 फीसदी धान की रोपनी हुई है. किसान चिंतित न हो मानसून अभी सक्रिय है. पूरे जुलाई माह तक धान की रोपनी होती है. सामान्य से कम वर्षापात के कारण किसानों के समक्ष यह समस्या बनी हुई है. जिले में अबतक 59 एमएम ही औसत वर्षापात हुई है. हम उम्मीद करते हैं कि आनेवाले दिनों में हालात इससे बेहतर होंगे और हम धान रोपनी में लक्ष्य के करीतब पहुंचेंगे.
इधर,गया में इस वर्ष सुखाड़ के संकेत मिलने शुरू हो गए हैं. किसान मूसलाधार बारिश नहीं होने से चिंतित है. वहीं सरकारी आंकड़ों के मुताबिक अब तक अब तक सिर्फ 2.9% ही धान की रोपनी की जा सकी है. इसमें भी डीजल पंप के सहारे से ही यह संभव हो पाया है. वर्षा की बात की जाए तो 32% कम वर्षा इस बार के खरीफ फसल के सीजन में हुई है.
सावन माह में धान की रोपनी होती है. हालांकि एक पखवारे से ज्यादा सावन माह बीत चुका है. गया जिले में अब तक 2.9% ही धान की रोपनी हो सकी है. वहीं बारिश के बगैर किसानों के चेहरे पर शिकन आ गई है. इस बार उनके धान की फसल की उम्मीद टूटने लगी है. जिले में बारिश रुक-रुक कर छिटपुट हो रही है. मूसलाधार बारिश नहीं होने से धान की रोपनी नहीं हो पा रही है.
गया जिले में धान की रोपनी 1 लाख 90 हजार 186 हेक्टेयर में है, किंतु अब तक यह लक्ष्य एकदम पीछे है. जिले में धान की रोपनी सिर्फ 4352 हेक्टेयर में ही हो सकी है. वहीं, वर्षा की बात करें तो कम से कम 300 से अधिक मिलीमीटर वर्षा होनी चाहिए थी, किंतु 200 मिलीमीटर के करीब ही वर्षा हो पायी है. यह आंकड़ा 1 जून से 17 जुलाई 2023 तक का है. इस तरह बारिश करीब 32% कम हुई है.
वहीं कृषि से जुड़े वैज्ञानिकों की मानें तो अगले 5 दिन तेज बारिश नहीं होगी. यह किसानों के लिए चिंता का विषय निश्चित तौर पर है. वहीं, बारिश नहीं होने से बिचड़े भी काफी उम्र के हो गए हैं और जलने भी लगे हैं. मोरी की उम्र बढ़ने से यदि फसल किसी प्रकार से लग भी जाए तो उत्तम किस्म की उत्पाद नहीं होगी और किसान को फायदा कम होगा. वैकल्पिक खेती करने की सलाह भी अब कृषि से जुड़े वैज्ञानिक दे रहे हैं.
वहीं किसान हताश और परेशान दिख रहे हैं. मूसलाधार बारिश नहीं होने की शिकन उनके चेहरे पर साफ देखी जा सकती है. वो आसमान की ओर इशारा करके भी अपना दुख बताते दिख रहे हैं. किसान कहते हैं बिचड़े तैयार हैं, लेकिन बारिश का इंतजार है. बारिश नहीं हो रही है. बिचड़े भी मर रहे हैं. ऐसे में धान की रोपनी संभव नहीं प्रतीत हो रही है. धान की रोपनी नहीं करते हैं तो भूखे मर जाएंगे. किसान उपेंद्र पासवान ने स्थानीय मीडिया को बताया कि बारिश नहीं होने से बिचड़े झुलस कर मर रहे. ऐसा ही चलाता रहा तो हम किसानों की परेशानी बढ़ जाएगी. हम चाहते हैं कि सरकार हमारे लिए क्षतिपूर्ति करे. वहीं महिला किसान गोरी खातून बताती है कि 3 बीघा में खेती करनी थी. पानी नहीं है. धान की रोपनी नहीं कर पा रही है. बिचड़ा भी जल रहा है. आधा सावन चला गया है, अब तक रोपनी कर देते थे.
वहीं, संबंध में कृषि विज्ञान केंद्र के कृषि वैज्ञानिक देवेंद्र मंडल बताते हैं, कि धान की रोपनी को लेकर गया की स्थिति अच्छी नहीं है. वर्षा कम हो रही है. 32% वर्षा अभी तक तक कम हुई है. आच्छादन 1.90 लाख हेक्टेयर का था, जिसमें से अब तक 4352 हेक्टेयर में ही धान की रोपनी हो पाई है. यह 2.9 प्रतिशत है. धान की रोपनी में यह बहुत बड़ा गैप है. जुलाई के 17 दिन बीत चुके हैं. अगले 5 दिन पानी के आसार नहीं दिख रहे हैं. यदि किसान देर से किसी तरह फसल लगा भी लेते हैं तो रबी का उत्पादन भी प्रभावित होगा. वहीं उत्तम किस्म के धान की उपज नहीं हो सकेगी. कृषि विज्ञान केंद्र मानपुर के वैज्ञानिक देवेंद्र मंडल ने कहा कि वर्षा कम होने के बीच किसानों के पास कई विकल्प हैं, जिसमें मोटे अनाज की खेती करना है. धान की रोपनी नहीं होने की स्थिति में किसान बाजरा, ज्वार, मड़ुआ, कांगड़ी, कोदो की खेती कर सकते हैं, जो कि फायदेमंद भी है. मोरी पुरानी हो रही है, उम्र बढ़ने से वह जल भी रही. ऐसे में धान की रोपनी निश्चित तौर पर जिले में व्यापक पैमाने पर प्रभावित हुई है. किसानों को वैकल्पिक कृषि करनी चाहिए.