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नीतीश कुमार बने विपक्षी एकता के सूत्रधार, देश में दिख रहा नया सियासी ध्रुवीकरण

भाजपा के खिलाफ जिन दलों ने एक छतरी में आने का फैसला किया है, उनके प्रभाव वाले राज्यों में यूपी को छोड़ दिया जाये तो बाकी के नौ राज्य बिहार, बंगाल, झारखंड, छत्तीसगढ़, कर्नाटक, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, राजस्थान, तमिलनाडु में लोकसभा की 276 सीटें आती हैं. इनमें 155 सीटें भाजपा को आयी थीं.

मिथिलेश,पटना. विपक्षी दलों को एक सूत्र में बांधने को निकले बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार भाजपा के खिलाफ बनी ‘इंडिया’ के सूत्रधार बन कर उभरे हैं. भाजपा के खिलाफ तैयार गठबंधन में शामिल 26 दलों के प्रभाव वाले राज्यों में वोटरों का रुख बदला तो अगले साल 2024 में होेने वाले लोकसभा चुनाव में भाजपा को एक मजबूत विकल्प का सामना करना पड़ सकता है. भाजपा के खिलाफ जिन दलों ने एक छतरी में आने का फैसला किया है, उनके प्रभाव वाले राज्यों में यूपी को छोड़ दिया जाये तो बाकी के नौ राज्य बिहार, बंगाल, झारखंड, छत्तीसगढ़, कर्नाटक, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, राजस्थान, तमिलनाडु में लोकसभा की 276 सीटें आती हैं. इन राज्यों में 2019 के लोकसभा चुनाव में भाजपा की झोली में 155 सीटें आयी थीं. लोकसभा में बहुमत का आंकड़ा 272 का है. यानी 272 सांसदों के समर्थन से ही केंद्र में नयी सरकार बन सकेगी. भाजपा के पास फिलहाल 303 सांसद हैं.

भाजपा के बढ़ने की गुंजाइश नहीं

राजनीतिक जानकारों का मानना है कि भाजपा के पास इन राज्यों में सांसदों की संख्या अधिकतम पहुंच चुकी है. अब इसमें बढ़ोतरी की शायद ही गुंजाइश है. यूपी में कुल 80 सीटों में भाजपा के पास 62 सांसद हैं. ऐसे में मौजूदा सीटों में तनिक भी कमी आयी तो भाजपा को अपनी सरकार बचाने के लिए एंडी चोटी एक करनी होगी. इन्ही परिस्थितियों में विपक्ष की ‘इंडिया’ में शामिल दलों ने भाजपा के खिलाफ साझा उम्मीदवार उतारे जाने का फैसला लिया तो देश में अगले साल नये समीकरण के बनने की संभावना प्रबल है. हालांकि, विपक्षी दलों की गोलबंदी पर भाजपा की भी पैनी नजर है. गैर भाजपा दलों की एकजुटता को देखते हुए ही भाजपा ने एनडीए का दायरा बढ़ाने का फैसला लिया है. पटना में भाजपा के अध्यक्ष जेपी नड्डा ने क्षेत्रीय दलों को लेकर जो सवाल उठाये थे, उसके इतर भाजपा छोटे और क्षेत्रीय दलों को भी अपनी छतरी के नीचे लाने की पहल करने को मजबूर हुई है. यह सब नीतीश कुमार की उस मुहिम के कारण संभव हो रहा, जिसमें उन्होंने भजपा के खिलाफ विपक्षी दलों को गोलबंद करने के लिए कई राज्यों की यात्राएं की थीं.

किसी पद की लालसा नहीं

नीतीश कुमार बार-बार दोहरा रहे कि उन्हें किसी पद की लालसा नहीं है. कांग्रेस भी कह रही कि वह प्रधानमंत्री पद की रेस में नहीं है. मसलन यह साफ है कि विपक्ष इस बार पीएम पद को लेकर विवाद की स्थति पैदा नहीं होने देना चाहता. अगले साल 2024 की चुनावी जंग की कहानी बिहार से शुरू करें तो यहां लोकसभा की चालीस सीटें हैं. 2019 के चुनाव में भाजपा और जदयू 17-17 सीटों पर चुनाव लड़ी थी. छह सीटें लोजपा को दिये गये थे. इनमें भाजपा को 17, जदयू को 16 और लोजपा छह सीटें जीती. किशनगंज की मात्र एक सीट पर कांग्रेस की जीत हासिल हुई थी. इस बार भाजपा ने दलित, कुशवाहा वोटरों पर निशाना साधा है. उसके साथ जदयू की जगह लोजपा के दोनों धड़े खड़े हैं. इनके अलावा जीतन राम मांझी की पार्टी हम, उपेंद्र कुशवाहा की पार्टी रालोजद भी आयी है. वोटों के बटवारे में एनडीए औ इंडिया में दिलचस्प मुकाबला होने से इनकार नहीं किया जा सकता.

पुराने जनाधार को मजबूत करने की कोशिश में भाजपा

पश्चिम बंगाल में लोकसभा की 42 सीटें हैं. इनमें पिछली दफा भाजपा को 18 सीटें मिली थी. ममता बनर्जी की तृणमूल कांग्रेस को 22 सीटें मिली और दोक सीटों पर कांग्रेस के उम्मीदवार चुनाव जीते. यह परिणाम तब था जब भाजपा के खिलाफ टीएमसी,कांग्रेस और वाम दल अलग-अलग चुनाव मैदान में खड़े थे. इस बार भाजपा को सभी सीटों पर साझा उम्मीदवार से मुकाबला करना पड़ सकता है. इसी तरह झारखंड में लोकसभा की 14 सीटों में 11 पर भाजपा काबिज है. बाकी की तीन सीटों पर एक कांग्रेस, जेएमएम और अन्य दल के सांसद है. यहां भी स्थितियां बंगाल की तरह बनी दिख रही है. हालांकि भाजपा ने बाबूलाल मरांडी को प्रदेश अध्यक्ष बना कर अपने पुराने जनाधार को मजबूत करने की कोशिश की है. फिर भी भाजपा के खिलाफ संयुक्त उम्मीदवार चुनाव मैदान में आये तो मुकाबला रोचक हो सकता है.

अंदरुनी गुटबाजी से पार्टी को नुकसान

छत्तीसगढ़ और मध्य प्रदेश की राजनीतिक स्थतियां बदली हुई है. छत्तीसगढ़ में 2019 के लोकसभा चुनाव में भाजपा की कुल 11 सीटों में नौ पर जीत हुई थी. दो सीटें कांग्रेस की झोली में गयी थी. यहां एक साल पहले हुई विधानसभा के चुनाव में भाजपा परास्त हो गयी थी और अरसे बाद कांग्रेस की सरकार बनी. इस बार भी अगले कुछ महीने में विधानसभा के चुनाव होने हैं. कांग्रेस को उम्मीद है कि विधानसभा के साथ साथ लोकसभा के चुनाव में भी उसे सफलता मिलेगी. जबकि भाजपा का दावा है कि जिस तरह 2019 के लोकसभा चुनाव में भाजपा अधिकतर सीटों पर चुनाव जीतने में सफल रही, उसी तरह 2024 के चुनाव में भी उसे जनत का समर्थन हासिल होगा. इसी प्रकार मध्य प्रदेश में भाजपा फिलहाल बेहतर स्थिति में है. यहां भाजपा की सरकार है. 2019 के लोकसभा चुनाव में मध्य प्रदेश में भाजपा को कुल 29 सीटों में 28 पर जीत मिली थी. इस बार विपक्ष के साझा उम्मीदवार होने से सीधी टक्कर होगी. हांलाकि मध्य प्रदेश भाजपा का गढ़ रहा है. इस बार ज्योतिरादित्य सिंघिया के साथ होने का भी उसे लाभ मिल सकता है. लेकिन, मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के खिलाफ चल रही अंदरुनी गुटबाजी से पार्टी को नुकसान पहुंचने से इनकार नहीं किया जा सकता.

दक्षिण को फिर करना होगा मजबूत

महाराष्ट्र में लोकसभा की 48 सीटें हैं. 2019 के लाेकसभा चुनाव में भाजपा को इनमें 23 सीटें मिली थीं और शिवसेना की झोली में 18 सीटें आयी थीं. इस बार गठबंधनों के समीकरण बदले हुए हैं. भाजपा और शिवसेना में छत्तीस का रिश्ता दिन-प्रतिदिन कटु होता जा रहा है. शिवसेना दो फाड़ हो चुकी है और मराठा राजनीति का एक ठोस केंद्र बन चुके शरद पवार फिलहाल महाविकास अघाड़ी के साथर खड़े हैं. इस अघाड़ी में एनसीपी, शिवसेना और कांग्रेस है. कर्नाटक में लोकसभा की 28 सीटें हैं. पिछली दफा भाजपा को यहां भारी सफलता मिली थी और उसके 25 उम्मीदवार चुनाव जीतने में सफल रहे. लेकिन, इस बार ग्रह नक्षत्र भाजपा के खिलाफ चल रहे हैं. कर्नाटक विधानसभा चुनाव में भाजपा परास्त हो चुकी है. प्रदेश की सरकार कांग्रेस के पास है. लोकसभा चुनाव में ऊंट किस करवट बैठेगा, यह तो आने वाला समय ही बतायेगा लेकिन, भाजपा की यहां उम्मीद नहीं टूटी है. उसे भरोसा है कि लोकसभा चुनाव में कर्नाटक की जनता का उसे ही इस बार भी साथ मिलेगा.

तमिलनाडु में भाजपा के एक भी सांसद नहीं

राजस्थान में कांग्रेस को पिछले लोकसभा चुनाव में नुकसान उठाना पड़ा था. यहां कुल सीट 25 में मात्र एक पर ही उसके उम्मीदवार चुनाव जीत पाये थे और 24 पर भाजपा का कब्जा हुआ था. हालांकि, राजस्थान कांग्रेस में अशोक गहलोत और सचिन पायलट की गुटबाजी का असर चुनाव परिणाम पर दिख सकता है. लेकिन, भाजपा की स्थिति भी यहां ठीक नहीं दिख रही. भाजपा को नरेंद्र मोदी के करिश्में पर भरोसा है तो कांग्रेस के साझा उम्मीदवार पर विश्वास है. तमिलनाडु में लोकसभा की 39 सीटें हैं. इनमें से स्टालिन की डीएमके के 24 सांसद हैं. डीएमके विपक्षी गठबंधन इंडिया का मजबूत घटक है. भाजपा के साथ यहां जयललिता की पार्टी एआइडीएमके है. भाजपा के तमिलनाडु में एक भी सांसद नहीं है. पार्टी इस बार एआइडीएमके साथ तालमेल कर अपना खाता खोलने की कोशिश कर सकती है.

नीतीश कुमार दे सकते हैं मुकम्मल जवाब

जहां तक नीतीश कुमार की बात है उन्होंने अपने को किसी पद की चाहत से अलग कर लिया है. हालांकि जानकारों का कहना है कि पीएम मोदी के विकल्प के तौर पर नीतीश कुमार को विपक्ष की ओर से खड़ा कर उस सवाल का मुकम्मल जवाब दिया जा सकता है जिसमें पूछा जाता है कि विपक्ष के पास ‘पीएम फेस’ कहां है? लेकिन यह इतना आसान भी नहीं होगा. विपक्षी एकता की धुरी कांग्रेस बनती है तो उसकी ‘भूमिका’ और ‘चाहत’ पर बाकी दलों को सहमत होना होगा.

नरेंद्र मोदी के सामने नीतीश मजबूत चेहरा

नीतीश कुमार 2024 में विपक्ष की अगुवाई करते हैं तो उनके सामने कम से कम बिहार, यूपी, झारखंड, बंगाल, महाराष्ट्र की सम्मिलित विपक्षी ताकत एकजुट दिख सकती है. दूसरे अन्य प्रदेशों में उन्हें कांग्रेस की ताकत के भरोसे आगे बढ़ना होगा.

भाजपा के खिलाफ 26 दल का आना भाजपा के लिए चिंता की घंटी

नीतीश कुमार ने कहा था कि वह देश के अधिकतर विपक्षी दलों को एक साथ लाना चाहते हैं और 2024 के लोकसभा चुनाव में भाजपा के खिलाफ साझा उम्मीदवार के पक्ष में हैं. बेंगलुरु की बैठक में गैर भाजपा दलों की संख्या बढ़ कर 26 हो गयी. साथ ही नीतीश कुमार की भावना के अनुरूप इंडियन नेशनल डेवेलपमेंटल इन्क्लुसिव एलायंस (इंडिया) नाम की एक छतरी के नीचे आने को सभी दल तैयार हो गये. यह बड़ी उपलब्धि है. अगली कड़ी में मुंबई में होने वाली बैठक में इंडिया का आकार और भी स्पष्ट दिखने लगेगा. माना जा रहा है कि मुंबई में होने वाली अगली बैठक में इंडियन नेशनल डेवलेपमेंटल इन्क्लुसिव एलायंस इंडिया के संयोजक और 11 सदस्यीय कार्यकरिणी के नाम भी तय होंगे.

मुंबई में दिख सकता है बिहार का दबदबा

इधर, जदयू के राष्ट्रीय अध्यक्ष ललन सिंह ने भी इस बात का संकेत दिया है कि मुंबई में होने वाले अगले महीने गैर भाजपा दलों की बैठक में इंडिया के संयोजक के नाम पर फैसला हो सकता है. मंगलवार को कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे ने मुंबई की बैठक में 11 सदस्यीय कार्यकारिणी के नाम तय करने की बात कही थी.

एनडीए का कुनबा बढ़ा, भाजपा की मजबूरी या विपक्ष की परेशानी

कर्नाटक की राजधानी बेंगलुरु में दो दिनों की बैठक का ही नतीजा माना जा रहा है कि भाजपा जैसी पार्टियां क्षेत्रीय क्षत्रपों को अपने साथ लाने को तैयार हुई. भाजपा के लिए जहां दक्षिण के राज्यों में पांव पसारने की चुनौती अब भी कायम है. वहीं हिंदी हार्ट लाइन में विपक्षी दलों की एकजुटता से सीटों की संख्या प्रभावित हो सकती है. बिहार,झारखंड, पश्चिम बंगाल, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, राजस्थान में विपक्ष बिहार के महागठबंधन के फार्मूले को उतारने की हर संभव कोशिश करेगा.

यूपी में भाजपा को राहत

भाजपा के लिए संतोष की बात यूपी को लेकर दिख रही है. यूपी की राजनीतिक गणित भाजपा के पक्ष में दिख रही है. राजनीतिक विश्लेष्कों की नजर में यूपी में भाजपा को बढ़त मिल सकती है या मौजूदा सीटें पुन: हासिल करने में अधिक चुनौती नहीं दिख रही.

बिहार पर सबकी नजर

2019 के लोकसभा चुनाव में एनडीए में जदयू बड़ी पार्टनर के रूप में शामिल था. लोजपा में टूट नहीं हुई थी. इसके चलते राजद जीरो पर आउट हुआ और एक मात्र सीट कांग्रेस को हासिल हुई थी. लेकिन, इस बार परिस्थितियां बदली हुई है. जदयू एनडीए से बाहर हो चुका है. महागठबंधन का आकार भी यहां बढ़ा है. 2015 के विधानसभा चुनाव में जिस गठबंधन ने भाजपा के विजयी रथ को रोक दिया था, वो सभी दल महागठबंधन में शामिल हैं ही, वामदलों की ताकत भी इसमें शामिल हो गयी है. ऐसे में जदयू, राजद,कांग्रेस और वामदलों की सम्मिलित ताकत का मुकाबला नये एनडीए से होने वाला है. नये कलेवर वाले एनडीए में भाजपा के साथ लोजपा के दोनों धड़े, मांझी की पार्टी और उपेंद्र कुशवाहा की पार्टी शामिल है. सूत्र बताते हैं कि देर-सबेर मुकेश सहनी की पार्टी वीआइपी भी एनडीए का हिस्सा बनेगी. ऐसे में 2024 में बिहार का मुकाबला दिलचस्प होनेवाला है.

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