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Explainer: बूढ़ा पहाड़ के बाद दौना को सुरक्षित ठिकाना मान रहे नक्सली, जानें बूढ़ा पहाड‍़ में कैसे लौटी रौनक

छत्तीसगढ़ के अलावा झारखंड के गढ़वा और लातेहार जिले के क्षेत्र में फैला बूढ़ा पहाड़ अब नक्सलियों के चंगुल से मुक्त है. अब नक्सली लातेहार के दौना क्षेत्र को सुरक्षित मान रहे हैं. यही कारण है कि नक्सलियों ने पांच ग्रामीणों के साथ मारपीट कर अपनी उपस्थिति दर्ज करायी है.

महुआडांड़ (लातेहार), वसीम अख्तर : बूढ़ा पहाड़ के माओवादियों से मुक्त होने के बाद जिले में माओवादियों का अब तक कोई सुरक्षित ठिकाना नही बन पाया है. लातेहार जिले की भौगोलिक बनावट काफी अलग है. चारों तरफ जंगल और पहाड़ है. नेतरहाट थाना क्षेत्र का दौना-दूरूप गांव पूर्व से ही अति नक्सल प्रभावित क्षेत्र रहा है. बूढ़ा पहाड़ से भागने के बाद माओवादी जिले में फिर से एक सुरक्षित पनाहगाह तलाश कर रहे हैं. दौना का जंगल गुमला, लोहरदगा व लातेहार जिला की सीमा पर स्थित है, जिसे माओवादी अपना नया ठिकाना बनाने की दिशा में लगातार प्रयासरत है.

कभी नक्सलियों का सेफ जोन माने जाने वाला बूढ़ा पहाड़ आज नक्सलियों के चंगुल से मुक्त है. अब इस क्षेत्र के गांवों में विकास की किरण पहुंच रही है.

नक्सलियों ने ग्रामीणों की पिटाई की थी

बुधवार की रात माओवादियों ने दौना व पुरनाडीह गांव में नक्सलियों ने ग्रामीणों की जमकर पिटाई की. नक्सलियों की पिटाई से ग्रामीण युवक देवकुमार प्रजापति की मौत हो गयी. वहीं, चार अन्य ग्रामीण घायल हो गये है. मृतक टेकर गार्ड का कार्य करता था. रविवार की रात दूरूप पंचायत के लूरगुमी गांव में सौदागार अंसारी को खोजते हुए नक्सलियों का हथियारबंद दस्ता उसके घर पहुंचा था, लेकिन सौदागार अंसारी घर में नहीं मिला. इसके बाद नक्सलियों ने उसके 20 वर्षीय बेटे रौनक अंसारी की पिटाई कर दी.

पहले भी ग्रामीणों की पिटाई कर चुके हैं नक्सली

इससे पहले 30 जून, 2023 की रात लगभग 10 बजे नक्सली दस्ता ने मिशन स्कूल के प्राचार्य सह फादर सिरिल बृजिया और स्कूल में कार्यरत कर्मी रौशन बृजिया की पिटाई कर दी थी. पिटाई का कारण मात्र इतना था कि जब नक्सली स्कूल के बगल से गुजर रहे थे, तब फादर ने टॉर्च जलाकर आवाज लगायी थी.

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दोनों गांवों में दहशत का माहौल

माओवादियों द्वारा दौना व पुरनाडीह में ग्रामीणों की पिटाई के बाद दोनों गांव में दहशत का माहौल है. ग्रामीण कुछ भी बताने से डर रहे हैं. देवकुमार की पिटाई के दौरान उनकी पत्नी और बच्चे ने माओवादियों से उन्हें छोड़ने की विनती की, लेकिन कोई सुनवाई नहीं हुई. इस घटना के बाद गांव के कई घरों में चूल्हा भी नहीं जला. घटना के काफी देर से पुलिस के गांव पहुंचने से ग्रामीणों में काफी गुस्सा था.

नक्सलियों के चंगुल से ऐसे मुक्त हुआ बूढ़ा पहाड़

नक्सलियों के सुरक्षित पनाहगाह बूढ़ा पहाड़ क्षेत्र को झारखंड पुलिस के अलावा सीआरपीएफ, कोबरा बटालियन और झारखंड जगुआर के जवानों की संयुक्त अभियान चलाकर नक्सल मुक्त कराया. इस दौरान ऑपरेशन ऑक्टोपस, ऑपरेशन बुलबुल और ऑपरेशन थंडर चलाकर नक्सलियों को खदेड़ा गया. नक्सलियों के कब्जे से मुक्त करने के बाद सुरक्षाबलों ने स्थायी कैंप स्थापित किये. सीएम हेमंत सोरेन समेत गृह मंत्री अमित शाह ने इस बड़े सफलता को लेकर सुरक्षाबलों को बधाई दी थी.

तीन दशक बाद नक्सलियों के चंगुल से मुक्त हुआ बूढ़ा पहाड़

बूढ़ा पहाड़ क्षेत्र में घने जंगल होने के कारण यह क्षेत्र नक्सलियों का सुरक्षित पनाहगार था. 1990 के दशक से नक्सलियों ने बूढ़ा पहाड़ को अपना ठिकाना बनाया था. लेकिन, तीन दशक बाद बूढ़ा पहाड़ नक्सलियों के चंगुल से मुक्त हुआ. इसके बाद यहां के ग्रामीणों के लिए राज्य सरकार ने विकास की कई योजनाएं लाये. मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन के निर्देश पर बूढ़ा पहाड़ विकास परियोजना लॉन्च किया गया.

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55 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में फैला है बूढ़ा पहाड़ इलाका

बूढ़ा पहाड़ की भौगोलिक स्थिति की बात करें, तो यह इलाका 55 वर्ग किलोमीटर में फैला है. घने जंगल होने के कारण यह इलाका नक्सलियों का सेफ जोन था. वर्ष 2018 के बाद से इस क्षेत्र में सुरक्षाबलों द्वारा ताबड़तोड़ अभियान चलाकर नक्सलियों को यहां से खदेड़ने पर मजबूर किया. कई बार पुलिस-नक्सली मुठभेड़ हुई. सुरक्षाबलों ने कई बंकर को ध्वस्त किया.

बूढ़ा पहाड़ विकास परियोजना से ग्रामीणों की संवरेंगी जिंदगी

नक्सलियों से बूढ़ा पहाड़ को मुक्त करने के बाद झारखंड की हेमंत सरकार ने ग्रामीणों के विकास के लिए बूढ़ा पहाड़ विकास परियोजना की शुरुआत की. गढ़वा की टिहरी पंचायत के 11 गांव और लातेहार की अक्सी पंचायत के 11 गांव यानी कुल 22 गांवों के ग्रामीणों को विकास से जोड़ा जाएगा. राज्य सरकार ने 100 करोड़ की लागत से 175 योजनाएं शुरू की है.

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