लखनऊ: बच्चों में टाइप-1 डायबिटीज के खतरों को देखते हुए योगी सरकार ने क्लास में इंसुलिन और ग्लूकोमीटर ले जाने के आदेश जारी किये हैं. सरकार ने राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण भारत सरकार के निर्देशों को प्रदेश में लागू करने का निर्णय लिया है. इस संबंध में बेसिक शिक्षा विभाग ने सभी मंडलीय शिक्षा निदेशकों (बेसिक) एवं जिला बेसिक शिक्षा अधिकारियों को इंसुलिन और ग्लूकोमीटर ले जाने के निर्देश की जानकारी दी है.
राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग के अध्यक्ष ने 0 से 19 वर्ष के छात्रों में टाइप-1 डायबिटीज रोग के नियंत्रण के लिए प्रदेश सरकार से कार्रवाई करने की अपील की थी. इसी के तहत महानिदेशक स्कूल शिक्षा विजय किरण आनंद की ओर से संयुक्त शिक्षा निदेशक (बेसिक) गणेश कुमार को इस पर आवश्यक दिशा निर्देश जारी करने के लिए पत्र लिखा गया है. पूरे प्रदेश में बेसिक शिक्षा द्वारा संचालित विद्यालयों में इसे लागू किए जाने का निर्णय लिया गया है.
इन निर्देशों के अनुसार चिकित्सक की सलाह दिए जाने पर टाइप-1 डायबिटीज वाले बच्चों को ब्लड शुगर की जांच करने, इंसुलिन का इंजेक्शन लगाने, मध्य सुबह या मध्य दोपहर का नाश्ता लेने या डायबिटीज एवं देखभाल गतिविधियां करने की अवश्यकता हो सकती है. शिक्षकों को परीक्षा के दौरान या अन्यथा भी कक्षा में इसे करने की अनुमति दी जानी चाहिए. इसके अतिरिक्त, बच्चा चिकित्सीय सलाह के अनुसार खेलों में भाग ले सकता है.
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परीक्षाओं के समय भी ले जा सकेंगे चिकित्सीय उपकरण
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टाइप-1 डायबिटीज से पीड़ित बच्चे जो स्कूली परीक्षा और अन्य प्रतियोगी परीक्षा दे रहे हैं उन्हें ये छूट दी जा सकती हैं.
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अपने साथ चीनी की टैबलेट ले जाने की अनुमति दी जाए
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दवाएं, फल, नाश्ता, पीने का पानी, कुछ बिस्किट, मूंगफली, सूखे फल परीक्षा हाल में शिक्षक के पास रखे जाएं जिससे कि आवश्यकता पड़ने पर परीक्षा के दौरान बच्चों को दिया जा सके
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स्टाफ को बच्चों की परीक्षा हॉल में अपने साथ ग्लूकोमीटर और ग्लूकोज परीक्षण स्ट्रिप्स ले जाने की अनुमति देनी चाहिए, जिन्हें पर्यवेक्षक या शिक्षक के पास रखा जा सकता है।
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बच्चों को ब्लड शुगर का परीक्षण करने और आवश्यकतानुसार उपरोक्त वस्तुओं का सेवन करने की अनुमति दी जानी चाहिए
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सीजीएम (सतत ग्लूकोज मॉनिटरिंग), एफजीएम (फ्लैश ग्लूकोज मॉनिटरिंग) और इंसुलिन पंप का उपयोग करने वाले बच्चों को परीक्षा के दौरान इन उपकरणों को रखने की अनुमति दी जानी चाहिए, क्योंकि वे बच्चों के शरीर से जुड़े होते हैं. यदि इनकी रीडिंग के लिए स्मार्टफोन की आवश्यकता पड़ती है तो यह स्मार्टफोन शिक्षक या पर्यवेक्षक को ब्लड शुगर के लेवल की मॉनिटरिंग के लिए दिया जा सकता है.
राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग द्वारा प्रदेश सरकार के शक्षा विभाग को लिखे गए पत्र में कहा गया है कि इंटरनेशनल डायबिटीज फेडरेशन (IDF) के डायबिटीज एटलस 2021 के डेटा के अनुसार दुनिया भर में सर्वाधिक टाइप-1 डायबिटीज से पीड़ित बच्चों की संख्या भारत में है. भारत में कुल 8.75 लाख लोग इससे जूझ रहे हैं. साउथ ईस्ट एशिया में 0 से 19 वर्ष के बीच इस बीमारी से जूझ रहे बच्चों की यह संख्या 2.4 लाख से अधिक हो सकती है.
टाइप-1 डायबिटीज से जूझ रहे लोगों को प्रतिदिन 3-5 बार इंसुलिन इंजेक्शन लेने व 3-5 बार शुगर टेस्ट की आवश्यकता होती है. इसमें लापरवाही फिजिकल एवं मेंटल हेल्थ के साथ ही अन्य चुनौतियों का कारक बन सकती है. बच्चे अपने एक तिहाई समय स्कूलों में बिताते हैं, ऐसे में स्कूलों की ड्यूटी बनती है कि टाइप-1 डायबिटीज से जूझ रहे बच्चों की स्पेशल केयर सुनिश्चित की जाए.
टाइप वन डायबिटीज को बच्चों का मधुमेह (Juvenile Diabetes) भी कहते हैं. यह बीमारी वंशानुगत कारणों से हो सकती है. इसके सही कारणों का अभी पता नहीं चला है. लेकिन टाइप-1 डायबिटीज के रोगी को जीवन भर इंसुलिन पर आधारित होना पड़ता है, क्योंकि इसका कोई इलाज नहीं है. इस बीमारी के लक्षण बचपन में ही पता चल जाते हैं, बस जरूरत उसे पहचानने की है. इस बीमारी पैंक्रियाज इंसुलिन नहीं बनाता है या फिर बहुत कम मात्रा में बनाता है. इसलिए मरीज को बाहर से इंसुलिन शॉट्स लेने पड़ते हैं.
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सामान्य से अधिक प्यास या भूख लगना
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बार-बार पेशाब करना
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चिड़चिड़ापन महसूस होना
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थका हुआ और कमजोर महसूस होना
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धुंधला नजर आना
टाइप-2 डायबिटीज निष्क्रिय जीवनशैली (Life Style) के कारण होती है. आराम तलब जीवनशैली जीने वाले लोगों तेजी से टाइप-2 डायबिटीज की चपेट में आते जा रहे हैं. टाइप-2 डायबिटीज का एक महत्वपूर्ण कारण तनाव भी है. इसमें भी पैंक्रियाज इंसुलिन का निर्माण बंद कर देता है. जिससे शरीर में शुगर की मात्रा बढ़ जाती है. संतुलित आहार, जीवनशैली और व्यायाम से टाइप-2 डायबिटीज को कंट्रोल में रखा जा सकता है.
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शरीर का वजन तेजी से घटना
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सामान्य से अधिक प्यास या भूख लगना
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बार-बार पेशाब करना
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चिड़चिड़ापन महसूस होना
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थका हुआ और कमजोर महसूस होना
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धुंधला नजर आना