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आपसी संघर्ष में निशाना बनतीं महिलाएं

हर वर्ष नौ दिनों तक नारी स्वरूपा देवी की उपासना की जाती है. हमारे यहां कन्या जिमाने और उनके पैर पूजने की भी परंपरा है. एक तरह से यह त्योहार नारी के समाज में महत्व और सम्मान को भी रेखांकित करता है,

हाल में मणिपुर में मैतेई और कुकी समुदाय के बीच जारी हिंसक संघर्ष के बीच दो महिलाओं के साथ यौन उत्पीड़न का एक भयावह वीडियो सामने आया है. इसके पहले और बाद में भी महिलाओं के उत्पीड़न की कई घटनाएं सामने आयी हैं. पश्चिम बंगाल के मालदा और अन्य राज्यों से भी महिलाओं के उत्पीड़न के वीडियो सामने आये हैं. मणिपुर की घटना हृदय विदारक है. यह घटना बताती है कि आज भी हमारा समाज मर्दवादी समाज है, जो मर्दानगी का क्रूर प्रदर्शन करने से कभी नहीं चूकता है.

कोई भी घटना या विवाद हो, उनका निशाना सिर्फ और सिर्फ महिलाएं ही होती हैं. दुर्भाग्यपूर्ण यह है कि मानवता को शर्मसार करने वाली ऐसी कई घटनाएं देश के विभिन्न राज्यों से सामने आ रही हैं. चिंताजनक पहलू यह है कि इन सभी मामलों में भारी राजनीति हो रही है और महिलाओं के सम्मान का मुद्दा पीछे छूटता जा रहा है. वीडियो सामने आने के बाद से केंद्र से लेकर विपक्षी दलों के प्रमुख नेताओं की ओर से इस मुद्दे पर कड़ी प्रतिक्रिया देखी जा रही हैं.

कांग्रेस समेत दूसरे विपक्षी दलों ने इस मामले में भाजपा को घेरने की कोशिश की है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने संसद के मानसून सत्र से पहले मीडिया से बात की और कहा कि मणिपुर की घटना से उनका हृदय पीड़ा से भरा हुआ है. उन्होंने स्पष्ट शब्दों में कहा कि दोषियों को बख्शा नहीं जायेगा. सुप्रीम कोर्ट ने भी इस मामले का स्वतः संज्ञान लिया है और पूरे मामले पर 28 जुलाई को सुनवाई की तारीख तय की है.

यह तथ्य किसी से छुपा हुआ नहीं है कि किसी भी संघर्ष में सबसे प्रतिकूल असर महिलाओं पर ही पड़ता है. इस घटना से भी यह स्पष्ट है कि मणिपुर की जातीय हिंसा की सबसे बड़ी शिकार भी महिलाएं ही हैं. खबरों के मुताबिक महिलाओं को भीड़ के सामने निर्वस्त्र होकर चलने के लिए विवश किया गया और जब एक महिला के 19 वर्षीय भाई ने उसे बचाने की कोशिश की, तो उसे मार दिया गया. अन्य सभी आदिवासी समाजों की तरह मणिपुर में भी सामाजिक तौर पर महिलाएं ज्यादा सक्रिय हैं.

एशिया का सबसे बड़ा महिला बाजार एमा मार्केट भी राजधानी इंफाल में ही है. यहां की महिलाओं का अंग्रेजों के खिलाफ आंदोलन का लंबा इतिहास रहा है. राज्य में शराबबंदी में भी उनकी महत्वपूर्ण भूमिका रही थी. राज्य में जब उग्रवाद चरम पर था, उस दौरान भी महिलाओं के साथ सार्वजनिक रूप यौन उत्पीड़न की ऐसी कोई घटना सामने नहीं आयी थीं. इस जातीय हिंसा ने मणिपुर में महिलाओं के प्रति सम्मान की सदियों पुरानी परंपरा को भी तार-तार कर दिया है.

हमारे देश में महिलाओं के साथ बलात्कार, यौन शोषण और छेड़छाड़ कोई नयी बात नहीं है. पहले भी इस तरह के अनेक मामले सामने आते रहे हैं. इन मामलों को बेहतर ढंग से सुलझाने के लिए भारत में प्रोटेक्शन ऑफ चिल्ड्रेन फ्रॉम सेक्सुअल ऑफेंस यानी पॉक्सो एक्ट बनाया गया.

इसके तहत 18 साल से कम उम्र के बच्चों और बच्चियों से दुष्कर्म, यौन शोषण और पोर्नोग्राफी जैसे मामलों में सुरक्षा प्रदान की जाती है. आरोपी को सात साल से लेकर उम्र कैद की सजा का प्रावधान है. कहने का आशय यह कि हमारे पास एक मजबूत कानून उपलब्ध है. बावजूद इसके ऐसी घटनाएं रुक नहीं रही हैं. महिलाओं के खिलाफ अपराध लगातार बढ़ रहे हैं. इसका पता राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो की वर्ष 2021 की रिपोर्ट से लगता है.

रिपोर्ट के अनुसार 2021 में दुष्कर्म के कुल 31,677 केस दर्ज हुए. इस तरह लगभग हर घंटे औसत 86 केस दर्ज हुए. एनसीआरबी के अनुसार वर्ष 2020 में दुष्कर्म के कुल 28,046 केस दर्ज किये गये थे. वर्ष 2021 में राजस्थान में दुष्कर्म के सर्वाधिक 6,337 मामले दर्ज हुए. मध्य प्रदेश दूसरे स्थान पर रहा. वहां इस दौरान दुष्कर्म के 2,947 केस दर्ज हुए. महाराष्ट्र में 2,496 और उत्तर प्रदेश में 2,845 केस दर्ज किए गए.

राजधानी दिल्ली में वर्ष 2021 में दुष्कर्म के 1,250 मामले दर्ज किए गए. वर्ष 2021 में देश भर में महिलाओं के खिलाफ अपराध के कुल 4,28,278 मामले दर्ज किये गये, जबकि वर्ष 2020 में महिलाओं के खिलाफ कुल अपराधों की संख्या 3,71,503 रही थी. महिलाओं के खिलाफ अपराधों में दुष्कर्म, दुष्कर्म व हत्या, दहेज हत्या, एसिड हमले, आत्महत्या के लिए उकसाना, अपहरण, जबरन शादी, मानव तस्करी, ऑनलाइन उत्पीड़न जैसे अपराध शामिल हैं.

यूं तो भारतीय परंपरा में महिलाओं को उच्च स्थान दिया गया है. हर वर्ष नौ दिनों तक नारी स्वरूपा देवी की उपासना की जाती है. हमारे यहां कन्या जिमाने और उनके पैर पूजने की भी परंपरा है. एक तरह से यह त्योहार नारी के समाज में महत्व और सम्मान को भी रेखांकित करता है, लेकिन वास्तविकता में आदर का यह भाव समाज में केवल कुछ समय तक ही रहता है. महिला उत्पीड़न की घटनाएं बताती हैं कि हम जल्द ही इसे भुला देते हैं.

देश में महिलाओं के साथ दुष्कर्म, यौन शोषण और छेड़छाड़ के बड़ी संख्या में मामले इस बात के गवाह हैं. भारत का संविधान भी सभी महिलाओं को समान अधिकार की गारंटी देता है. इसके अलावा संविधान में राज्यों को महिलाओं और बच्चों के हित में विशेष प्रावधान बनाये जाने का अधिकार भी दिया गया है, लेकिन इन सब के बावजूद देश में महिलाओं को अब भी अक्सर निशाना बनाया जाता है. झारखंड जैसे राज्यों को कुछ अलग तरह की समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है.

पिछले कुछ वर्षों में झारखंड से नवयुवतियों की तस्करी के कई मामले सामने आये हैं, जिसमें लड़कियों को बहला-फुसला कर दिल्ली और उससे सटे नोएडा व गुरुग्राम ले जाया गया है. देशभर में ऐसे एजेंट सक्रिय हैं, जो गरीब माता-पिता को फुसला कर लड़कियों को प्लेसमेंट एजेंसियों तक पहुंचाते हैं. ऐसी अनेक घटनाएं सामने आयी हैं कि इनमें से कुछ लड़कियां का शारीरिक शोषण तक किया गया. इनका न्यूनतम वेतन निर्धारित नहीं है. काम के घंटे, छुट्टियां, कुछ भी निर्धारित नहीं है.

दूसरी गंभीर समस्या अमानवीय व्यवहार की है. कानूनन 18 वर्ष से कम उम्र की लड़कियों से घरेलू कामकाज नहीं कराया जा सकता है, लेकिन देश में ऐसे कानूनों की कोई परवाह नहीं करता. महिलाओं के साथ दुर्व्यवहार व दुष्कर्म की घटनाएं सभ्य समाज को शर्मसार करती हैं. ये घटनाएं सभ्य समाज पर एक कलंक हैं. सरकारों, न्यायपालिका और समाज का यह दायित्व है कि वह यह सुनिश्चित करे कि दुष्कर्म की घटनाओं का कोई भी दोषी बच कर नहीं निकल पाना चाहिए.

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