सुप्रीम कोर्ट ने निर्वाचन आयोग द्वारा असम की लोकसभा की 14 और विधानसभा की 126 सीट के लिए मौजूदा परिसीमन कवायद पर रोक लगाने से सोमवार को इनकार कर दिया और केंद्र तथा निर्वाचन आयोग से जवाब मांगा. प्रधान न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़, न्यायमूर्ति जे बी पारदीवाला और न्यायमूर्ति मनोज मिश्रा की पीठ जन प्रतिनिधित्व अधिनियम, 1950 की धारा-आठ(ए) की संवैधानिक वैधता पर गौर करने के लिए सहमत हुई, जो निर्वाचन आयोग को निर्वाचन क्षेत्रों के परिसीमन का अधिकार देती है.
पीठ ने आदेश में क्या कहा ?
पीठ ने अपने आदेश में कहा, ‘इस चरण में जब परिसीमन शुरू हो गया है, 20 जून, 2023 को मसौदा प्रस्ताव जारी करने के मद्देनजर प्रक्रिया पर रोक लगाना उचित नहीं होगा. इसलिए संवैधानिक चुनौती बरकरार रखते हुए हम निर्वाचन आयोग को कोई और कदम उठाने से रोकने वाला आदेश जारी नहीं कर रहे हैं.’ शीर्ष अदालत ने तीन याचिकाओं पर केंद्र और निर्वाचन आयोग से तीन सप्ताह में जवाब भी मांगा तथा कहा कि याचिकाकर्ता इसके बाद अगले दो सप्ताह में अपना जवाब दाखिल कर सकते हैं.
राजनीतिक दलों की ओर से पेश हुए वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल
पीठ ने याचिकाएं दायर करने वाले राजनीतिक दलों की ओर से पेश हुए वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल की इन दलीलों का संज्ञान लिया कि अब सभी राज्य इसका अनुसरण करेंगे और कदम उठायेंगे, क्योंकि अरुणाचल प्रदेश और नगालैंड जैसे राज्यों के लिए परिसीमन की कवायद का रास्ता साफ हो गया है. प्रधान न्यायाधीश ने कहा, ‘‘हम दिल्ली सेवा अध्यादेश मामले के तुरंत बाद इसे सूचीबद्ध करेंगे.’’
असम में नौ विपक्षी दल
असम में नौ विपक्षी दलों के दस नेताओं ने हाल में परिसीमन प्रक्रिया को चुनौती देते हुए शीर्ष अदालत में एक याचिका दायर की है. इस पहलू पर दो अन्य याचिकाएं भी शीर्ष अदालत के समक्ष लंबित हैं.
नौ विपक्षी दल
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कांग्रेस
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रायजोर दल
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असम जातीय परिषद
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मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी (माकपा)
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भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (भाकपा)
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तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी)
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राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (राकांपा)
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राष्ट्रीय जनता दल (राजद)
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आंचलिक गण मोर्चा
जन प्रतिनिधित्व अधिनियम, 1950 की धारा आठ-ए को चुनौती
याचिकाकर्ताओं ने विशेष रूप से निर्वाचन आयोग द्वारा अपनाई गई कार्यप्रणाली और 20 जून, 2023 को अधिसूचित उसके प्रस्तावों को चुनौती दी है. एक याचिका में जन प्रतिनिधित्व अधिनियम, 1950 की धारा आठ-ए को चुनौती दी गई, जिसके आधार पर निर्वाचन आयोग ने असम में परिसीमन प्रक्रिया संचालित करने की अपनी शक्ति का प्रयोग किया.
सिब्बल ने कहा कि असम में परिसीमन की कवायद नियमों और परिसीमन अधिनियम के प्रावधानों को कुछ हद तक नजरंदाज करके की जा रही है, क्योंकि इस कानून में विधायकों-सांसदों की भी भागीदारी का प्रावधान है. उन्होंने कहा कि यह प्रक्रिया उच्चतम न्यायालय के सेवारत या सेवानिवृत्त न्यायाधीश की अध्यक्षता वाले परिसीमन आयोग द्वारा की जानी है.
उन्होंने कहा कि जम्मू-कश्मीर में परिसीमन की कवायद शीर्ष अदालत की पूर्व न्यायाधीश रंजना प्रकाश देसाई की अध्यक्षता वाले आयोग द्वारा की गई थी. वरिष्ठ अधिवक्ता ने कहा, ‘‘जिन कारणों से (असम एवं अन्य राज्यों में परिसीमन प्रक्रिया को) टाला गया था, वे अब मौजूद नहीं हैं और वह प्रक्रिया परिसीमन अधिनियम के तहत एक प्रतिनिधि प्रक्रिया होनी चाहिए. अब अधिसूचना में कहा गया है कि निर्वाचन आयोग इस प्रक्रिया को पूरा करेगा.’
सिब्बल ने पूछा कि कानून मंत्रालय को यह शक्ति कहां से मिलती है? केंद्र और राज्य सरकार की ओर से पेश सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि इसके धारक द्वारा शक्ति का प्रयोग सिर्फ इसलिए अमान्य नहीं हो जाता है कि इसका इस्तेमाल याचिकाकर्ता की दृष्टि से गलत तरीके से किया गया है.
तीन-दिवसीय सार्वजनिक सुनवाई के बाद, निर्वाचन आयोग को 22 जुलाई को विभिन्न समूहों से 1,200 से अधिक आवेदन प्राप्त हुए, जिनमें वे समूह भी शामिल थे, जिन्होंने असम के मसौदा परिसीमन प्रस्ताव पर विधानसभा निर्वाचन क्षेत्रों का नाम बदलने जैसे मामलों पर अलग-अलग विचार साझा किए थे. निर्वाचन आयोग ने 20 जून को परिसीमन के जारी मसौदे में असम में विधानसभा सीट की संख्या 126 और लोकसभा निर्वाचन क्षेत्रों की संख्या 14 बनाए रखने का प्रस्ताव दिया.