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यूपी में राजभर जाति को एसटी में शामिल करने की तैयारी, जाने सियासी दांव के पीछे की हकीकत और कानूनी पहलू

तर्क दिया जा रहा है कि तीन राज्यों महाराष्ट्र, छत्तीसगढ़ और मध्य प्रदेश में 'भर' को एसटी का दर्जा प्राप्त है. भर, राजभर और गोंड एक ही हैं. जब गोंड को उत्तर प्रदेश के 17 जनपदों में एसटी का दर्जा प्राप्त है तो भर और राजभर को यह हक क्यों नहीं दिया जा रहा है.

Lucknow: लोकसभा चुनाव 2024 से पहले यूपी में जातियों की सियासत का खेल तेज हो गया है. भाजपा जहां जातीय समीकरण मजबूत करने के लिए दूसरे दलों के बड़े नेताओं पर फोकस करते हुए उन्हें अपने पाले में लाने की कोशिश में जुटी है, वहीं सरकार के स्तर पर भी रणनीति बनाई जा रही है. इसी कड़ी में योगी सरकार ने भर और राजभर जाति को ओबीसी से अनुसूचित जनजाति (ST) में शामिल करने की कवायद शुरू कर दी है.

इसके लिए योगी आदित्यनाथ सरकार ने प्रदेश के कई जनपदों में सर्वे कराया है. कहा जा रहा है कि अब राजभर समाज को एसटी में शामिल करने के लिए केंद्र सरकार को प्रस्ताव भेजने की तैयारी चल रही है.हालांकि अभी सरकार की ओर से आधिकारिक तौर पर कोई जानकारी नहीं दी गई है. लेकिन, हाल ही में एनडीए में शामिल हुए सुभासपा के अध्यक्ष ओमप्रकाश राजभर लगातार इसकी बात कर रहे हैं.

ओमप्रकाश राजभर के लिए अहम है मुद्दा

सपा के साथ मिलकर विधानसभा चुनाव लड़ने वाले ओम प्रकाश राजभर हाल ही में एक बार फिर एनडीए में शामिल हुए हैं. इससे पहले साल 2017 में बनी योगी आदित्यनाथ की पहली सरकार में राजभर कैबिनेट मंत्री बने थे. बाद में उन्हें भाजपा से किनारा कर लिया और विधानसभा चुनाव में सपा के साथ चले गए.

लोकसभा चुनाव 2024 से पहले वह फिर एनडीए में शामिल होने के बाद जातीय समीकरण साधने में जुट गए हैं. भर और राजभर जाति को एसटीए में शामिल करने का प्रस्ताव इसी की कड़ी है. भाजपा भी सियासी नफा नुकसान का आकलन करने के बाद इस मुद्दे पर उनके साथ हो गई है.

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मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को सौंपा पत्र

ओम प्रकाश राजभर इसे लेकर मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ से मुलाकात भी कर चुके हैं. कहा जा रहा है कि उन्होंने सीएम योगी को राजभर को अनुसूचित जनजाति में शामिल करने का प्रस्ताव केंद्र सरकार को भेजने की मांग की थी. इसे लेकर उन्होंने मुख्यमंत्री को पत्र भी भेजा था. सीएम योगी से मिलने के बाद राजभर ने दावा किया था कि मुख्यमंत्री उनकी मांग से सहमत हो गए हैं. उन्होंने भर और राजभर बिरादरी को एसटी कैटिगरी में सूचीबद्ध किए जाने के प्रस्ताव को केंद्र सरकार को भेजने के लिए समाज कल्याण विभाग को आदेश दे दिया है.

एक ही जाति ही राज्यों में अलग-अलग स्थिति

दरअसल, ओम प्रकाश राजभर का कहना है कि भर और राजभर बिरादरी को यूपी में ओबीसी कैटिगरी में रखा गया है जबकि महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ में वह अनुसूचित जनजाति में रखे गए हैं. मुख्यमंत्री से मिलने के बाद उन्होंने कहा कि जल्द ही यूपी में भी राजभर को एसटी वर्ग का लाभ मिलने लगेगा. साथ ही समाज के युवाओं को शिक्षा और सरकारी नौकरियों में अधिक अवसर मिलने लगेंगे. अब इसे लेकर सियासी चर्चा तेज हो गई है.

यूपी में एसटी में शामिल होगी राजभर जाति

कहा जा रहा है कि योगी सरकार ने उन 17 जनपदों में सर्वे कराया है, जहां गोंड को जनजाति का दर्जा प्राप्त है. डाटा विश्लेषण के बाद यह रिपोर्ट केंद्र को भेजी जाएगी. इसके साथ ही भर और राजभर जातियों को एसटी में शामिल होने के लिए पांच निर्धारित मानकों पर भी खरा उतरना होगा.

दो बार खारिज हो चुका है प्रस्ताव

दरअसल अन्य पिछड़ा वर्ग में शामिल भर और राजभर समेत 18 जातियों को अनुसूचित जाति का दर्जा दिए जाने का प्रस्ताव दो बार भारत के महारजिस्ट्रार एवं जनगणना आयुक्त कार्यालय से खारिज हो चुका है. अब भर और राजभर से जुड़ी संस्था ने ओआरजीआई में पुनः आवेदन देकर उन्हें एसटी का दर्जा दिए जाने की मांग की है.

भर, राजभर और गोंड एक तो एसटी का दर्जा देने में भेदभाव क्यों?

इनका तर्क है कि तीन राज्यों महाराष्ट्र, छत्तीसगढ़ और मध्य प्रदेश में भर को एसटी का दर्जा प्राप्त है. भर, राजभर और गोंड एक ही हैं. जब गोंड को उत्तर प्रदेश के 17 जनपदों में एसटी का दर्जा प्राप्त है तो भर और राजभर को यह हक क्यों नहीं दिया जा रहा है. इससे संबंधित याचिका पर हाईकोर्ट भी दो माह में निर्णय लेने का आदेश दे चुका है. इसे देखते हुए योगी सरकार भी एक्टिव मोड में आ गई है.

दोनों जातियों में समानता होने के कारण रोटी-बेटी के संबंध

दरअसल ब्रिटिश इंडिया में ‘भर’ को क्रिमिनल ट्राइब्स एक्ट में शामिल जातियों के अंतर्गत रखा गया था. बाद में इन्हें विमुक्त जाति के रूप में परिभाषित किया गया और उत्तर प्रदेश में ओबीसी श्रेणी दी गई. राजभर विमुक्त जाति में शामिल नहीं है, पर यह जाति भी यहां ओबीसी में ही शामिल है. पारंपरिक रूप से भर और राजभर को एक ही माना जाता है और दोनों के बीच रोटी-बेटी के भी संबंध हैं.

इन 17 जनपदों में गोंड को एसटी का दर्जा, कराया गया सर्वे

उत्तर प्रदेश में गोंड जाति को महराजगंज, सिद्धार्थनगर, बस्ती, गोरखपुर, देवरिया, मऊ, आजमगढ़, जौनपुर, बलिया, गाजीपुर, वाराणसी, मीरजापुर, सोनभद्र, संत कबीरनगर, कुशीनगर, चंदौली और भदोही में एसटी का दर्जा मिला हुआ है. इसलिए ट्राइबल रिसर्च इंस्टीट्यूट के जरिये इन 17 जनपदों में गोंड और भर व राजभर के बीच रोटी-बेटी के रिश्तों की जानकारी के लिए सर्वे कराया जा चुका है. दोनों समुदायों के लोगों से बातचीत भी की जा चुकी है.

अंतिम निर्णय करने का अधिकार संसद को

इन सबके बीच समाज कल्याण विभाग 17 जनपदों से इकट्ठा किए गए डाटा का विश्लेषण कर रहा है. इस विश्लेषण को आधार बनाते हुए मौजूदा राजनीतिक परिस्तिथियों को देखते हुए राज्य सरकार की ओर से ओआरजीआई को सिफारिश भेजी जाएगी. ऐसा इसलिए क्योंकि इस मामले में अंतिम निर्णय करने का अधिकार संसद को ही है.

एसटी के लिए ये हैं मानक

कानून के मुताबिक किसी भी जाति को अनुसूचित जनजाति में तभी शामिल किया जा सकता है, जब वह पांच मानक पूरे करती हो. ये मानकों के मुताबिक उसकी प्रवृत्ति आदिम हो, विशिष्ट संस्कृति हो, शेष दुनिया से कटे हुए स्थानों पर उसका वास हो, मुख्य धारा में शामिल लोगों से घुलने-मिलने में संकोच हो और समाज में स्पष्ट तौर पर पिछड़ापन दिखता हो. योगी आदित्यनाथ राज्य सरकार की सिफारिश के बाद ओआरजीआई इन पांच मानकों के आधार पर भी प्रस्ताव का आकलन करेगी.

सुभासपा और निषाद पार्टी की राजनीति जातियों पर आधारित

दरअसल यूपी की सियासत में इस समय ये सारी कवायद लोकसभा चुनाव से जुड़ी है. एनडीए में शामिल सुभासपा हो या निषाद पार्टी, दोनों दल अपनी-अपनी जाति के हक से जुड़े मुद्दे उठाकर सियासत मजबूत करने में जुट गए हैं. एनडीए में शामिल होने के बाद से जहां सुभासपा अध्यक्ष ओमप्रकाश राजभर हर फोरम पर राजभर जाति को एसटी का दर्जा दिलाने की मांग उठा रहे हैं, वहीं निषाद पार्टी के अध्यक्ष संजय निषाद ने भी अपनी जाति के आरक्षण का मुद्दा उठाना शुरू कर दिया है.

माना जा रहा है कि इसके पीछे दोनों दल के नेताओं की चिंता इन मुद्दों के जरिये अपनी जाति पर पकड़ बनाए रखने की है।. लोकसभा चुनाव में अपनी जातियों के वोटबैंक में हिस्सेदारी को लेकर दोनों नेताओं की अग्निपरीक्षा भी है. देखा जाए तो मौजूदा सियासत पिछड़ों और दलित वोट बैंक के इर्द-गिर्द घूम रही है. यही वजह है कि भाजपा-कांग्रेस जैसे राष्ट्रीय दलों के अलावा सपा-बसपा में भी जातीय आधार वाली छोटी पार्टियों को अपने पाले में करने की होड़ मची है. छोटे दल भी अपनी अहमियत बढ़ाने के लिए ऐसे दलों का साथ पसंद कर रहे हैं.

दोनों नेताओं पर जातियों का दबाव

इसी कड़ी में ओमप्रकाश राजभर, भर और राजभर जाति को एसटी में शामिल करने समेत जाति से जुड़े तमाम मुद्दों को जोरशोर से उठा रहे हैं. वह इसका हर जगह प्रचार भी कर रहे हैं. इसी तरह राज्य सरकार में मंत्री बनने वाले एनडीए के दूसरे घटक निषाद पार्टी के अध्यक्ष डॉ. संजय निषाद ने भी मझवार और तुरैहा जाति को आरक्षण देने की मांग उठाना शुरू कर दिया है.

उन्होंने हाल में ही भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा और गृहमंत्री अमित शाह से मिलकर इन मुद्दों को फिर उठाया है. माना जा रहा है कि इसके पीछे दोनों नेताओं पर भाजपा नेतृत्व से किए गए दावे के मुताबिक चुनाव में प्रदर्शन का दबाव है.

ओमप्रकाश राजभर और भाजपा का सियासी गणित

सीएम योगी से लेकर बीजेपी के प्रदेश अध्यक्ष तक से मुलाकात के बाद राजभर ने पूर्वांचल के उन छह लोकसभा सीटों पर फोकस करने की बात कर रही कही है. जहां 2019 में बीजेपी को मात मिली थी. उन्होंने कहा कि हमारा प्लान पूर्वांचल में अपने चुनाव अभियान का आगाज उन्हीं सीटों से करने का है, जहां पिछली बार भाजपा हार गई थी. आजमगढ़ जिले के लालगंज लोकसभा क्षेत्र में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की जनसभा करने का प्लान है. सीएम योगी को इसके लिए प्रस्ताव दिया गया.

ओमप्रकाश राजभर ने कहा भाजपा प्रदेश अध्यक्ष के जरिए भी प्रस्ताव जेपी नड्डा को भेजा गया है. उनके इस बयान से संकेत साफ है कि बीजेपी और सुभासपा के गठबंधन का पूरा फोकस पूर्वांचल की एक सीटों पर है, जहां पिछली बार बीजेपी हार गई.

पूर्वांचल के सियासी समीकरण में काम आएगी दोनों की दोस्ती

पूर्वांचल के 25 जिलों में 26 लोकसभा सीटें है. इनमें 18 जिले में राजभर अच्छी संख्या में है. राजभर मतदाता करीब 12 लोकसभा सीटों पर जीत हार तय करने में निर्णायक भूमिका निभाने की स्थिति में हैं. ओमप्रकाश राजभर की पार्टी ने 2019 के चुनाव में 19 लोकसभा सीटों पर उम्मीदवार उतारे थे. भाजपा का यहां एक भी सीट पर जीत नहीं मिली थी. लेकिन, 8 सीटें ऐसी थी, जहां पार्टी तीसरे नंबर पर रही थी.

भाजपा के 19 उम्मीदवार को कुल मिलाकर तीन लाख से कम वोट मिले थे. यह आंकड़ा बताता है। कि सुभासपा अकेले दम पर जीतने की स्थिति में नहीं है. लेकिन, उसका वोट बैंक अगर भाजपा जैसी पार्टी के साथ चला जाए तो जीत की राह आसान हो सकती है.

इन सबके बीच भाजपा नेतृत्व भी अच्छी तरह जानता है कि विपक्ष का मुकाबला करने के लिए उसे यूपी में अच्छा प्रदर्शन करना बेहद जरूरी है. मिशन 80 की कामयाबी के लिए जातीय समीकरण अपने पक्ष में करने लिए नेतृत्व अभी से जुट गया है. इसके लिए उसे अपने गठबंधन के साथियों का भी सहारा चाहिए. ये छोटे दल अपनी अपनी जातियों की सियासत करते आए हैं. इनके जरिए भाजपा बड़ा लक्ष्य साधना चाहती है. इसलिए वह भी सियासी लाभ के लिए उनके साथ है.

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