kargil vijay diwas 2023: आज 26 जुलाई है अर्थात ‘कारगिल विजय दिवस’. यह हम सभी के लिए गौरव का दिन है. क्योंकि इसमें ‘बिहार रेजिमेंट’ की पहली बटालियन ने अदम्य साहस, शौर्य और वीरता का परिचय देकर पाकिस्तानी सैनिकों को खदेड़ते हुए करगिल की पहाड़ियों पर तिरंगा लहराया था. लगभग दो महीने तक चले इस युद्ध में बिहार रेजिमेंट के 18 सैनिकों ने अतिदुर्गम परिस्थितियों में बटालिक सेक्टर में दुश्मनों के कब्जे से पोस्टों को मुक्त कराया, जो सामरिक दृष्टि से काफी महत्वपूर्ण थे. इस लड़ाई में बिहार के कई वीर सपूत थे, जो देश के रियल हीरो के तौर पर जाने जाते हैं. युद्ध के दौरान बिहार रेजिमेंट को ‘किलर मशीन’, ‘जंगल वॉरियर्स’ व ‘बजरंग बली आर्मी’ नाम से भी जाना जाता था.
पटना के संजय कुमार पांडेय बताते हैं कि करगिल युद्ध के समय हमारी पलटन 16 बिहार गलवान पलटन ऑपरेशन रैनौ असम में थी. करगिल युद्ध की खबर मिलते ही हमारी पलटन 72 घंटे की नोटिस पर ‘ऑपरेशन विजय’ के लिए रवाना हो गयी. कच्छ (भुज) पहुंचे ही हमें 24 घंटे के अंदर बंकर खुदाई करने का आदेश मिला. हम लोगों को मोर्चा के लिए रात में ही खुदाई करना पड़ता था. मोर्चे में जवान कम होने के कारण काम काबोझ दुगना हो गया था, लेकिन मनोबल में किसी भी तरह की कमी महसूस नहीं हुई. यह खुदाई हमें रात के अंधेरे में ही करनी होती थी. हमारी नींद भी गायब हो गयी थी. दिन के समय आग जलाना मना था. हम कम-से-कम समय में किसी भी तरह की युद्ध के लिए तैयार हो गये थे.
दानापुर में रह रहें देवी दत्त सिंह कि पोस्टिंग जम्मू कश्मीर में थी. जब पता चला कि करगिल युद्ध की शुरुआत हो चुकी है, सभी उद्दमपुर से चलकर अलग-अलग रास्तों से यहां के लिए निकल गये. उस वक्त एम्यूनिशन (गोला-बारूद और हथियार) पहुंचाने की जिम्मेदारी हमें सौंपी गयी थी. देवी दत्त सिंह कहते हैं, 30-40 गाड़ियों का नेतृत्व करते हुए हम सभी ने इस काम को बखूबी निभाया. वे कहते हैं, हर रेजिमेंट का अपना मोटो होता है, जिसे हम लगातार रास्ते भर सुनते आ रहे थे. बर्फीली हवाओं के बीच बमबारी और जवानों की ललकार आज भी मेरे कानों में गूंजती है. युद्ध में उतरते वक्त बस हमें यहीं याद था, पहली गोली पहला दुश्मन, जिनकी पहल उनकी जीत. मैं 1999 में कैप्टन पद से रिटायर हुआ.
करगिल युद्ध के दौरान बटालिक सेक्टर के प्वाइंट 4268 पर चार्ली कंपनी की अगुवाई कर रहे बिहटा के पाण्डेयचक गांव के नायक गणेश यादव ने हंसते-हंसते अपनी जान न्योछावर कर दी थी. ऑपरेशन विजय के दौरान उनके पराक्रम और बुलंद हौसलों के लिए सेना ने उन्हें वीर चक्र से नवाजा. चार्ली कंपनी में नायक गणेश प्रसाद यादव को आक्रमण दल में सबसे आगे रखा गया था. छिपते-छिपाते वे दुश्मनों के बनाये किलेबंदी तक पहुंचे और अचानक से हमलाबोल दिया, जिससे पाकिस्तानी सेना को सोचने तक का मौका नहीं मिला. करगिल दिवस जब भी आता है, उनकी शहादत की घटना को याद कर पत्नी पुष्पा देवी, पिता रामदेव यादव एवं मां का कलेजा गर्व से चौड़ा हो जाता है. पत्नी पुष्पा कारगिल युद्ध के संस्मरण को याद करते हुए बताती हैं कि वो अप्रैल में छुट्टी लेकर घर आये थे और 29 मई को हमारी शादी की सालगिरह पर आने की बात कह कर गये थे. इसी दौरान युद्ध छिड़ गयी और वे शहीद हो गये. उनकी कमी आज भी खलती है. उनकी पत्नी कहती हैं, इस शहादत के भले ही 24 साल गुजरने को हैं, लेकिन अपने ही घर में सरकार ने शहीद को सम्मान नहीं दिया.
आरा जिला के रहने वाले नायक अखिलेश्वर कुमार सिंह के आंखों में आज भी करगिल युद्ध का मंजर बसा है. प्रभात खबर से बातचीत करते हुए वे कहते हैं, 26 मई 1999 को हमारी बटालियन कारगिल के लिए रवाना हुई थी. यहां चढ़ाई करने से पहले कर्नल ओपी यादव ने कॉन्फ्रेंस कर हमें सारी बातें बतायी और समझाया कि हमें अपने साथ हथियार के साथ जरूरी सामान भी लेकर चलना होगा. हमारी बटालियन मेजर एस शरदानंद के नेतृत्व में आगे बढ़ रही थी. दिन में पहाड़ों पर चढ़ायी नहीं की जा सकती थी, क्योंकि ऊपर से दुश्मन ताक में थे. चांदनी रात की वजह से भी खतरा बना रहता था. हमें बस कुछ घंटे ही मिलते, जब हल्का अंधेरा होता. आगे बढ़ते हुए मोर्चा बनाकर आगे निकले वक्त जवानों से संपर्क भी टूट गया. फिर भी मेजर एस शरदानंद, नायक गणेश प्रसाद यादव, सिपाही प्रमोद समेत अन्य जवान करगिल में चढ़ाई करने लगे. एक जगह लगा कि वे दुश्मनों के बंकर के पास पहुंच गये हैं और यही पीक एक्शन लेने का समय है. उस वक्त मेजर ने हमला बोला, लेकिन पाकिस्तानी सैनिकों ने उन्हें धोखे में रखा की बंकर खाली है, जबकि वे हर वक्त हम पर नजर रखे हुए थे. गोली की बौछार इतनी ज्यादा दी थी गोलियां सीधे जवानों के आर-पार हो रही थी. इस दौरान मेजर सरदानंद, गणेश प्रसाद यादव, प्रमोद समेत पांच जवान शहीद हो गये. बाकी बची हुई बटालियन वापस बेस कैंप आ गयी.
छपरा के रहने वाले अरुण कुमार सिंह (अरुण फौजी) कारगिल युद्द के दौरान वेपन फिटर टेक्नीशियन के तौर पर शामिल हुए थे. उनकी तैनाती वहां हेलीपैड के बेस में बने बैरक में थी. उन्होंने बताया कि नीचे बैठे- बैठे हमें बाहर हो रही हलचल की जानकारी मिलती रहती थी. वॉकी-टॉकी से हमसे संपर्क कर बैरक से बाहर बुलाया जाता था, जहां मैं छोटे हथियार, मशीन गन, रॉकेट लॉन्चर आदि का रिप्लेसमेंट और सर्विसिंग करता था. बाहर आने पर यहां तैनात फौजी बताते थे कि कुछ ही दूरी पर बम गिरा है और कौन शहीद हुए हैं. फिर भी अरुण लगातार वहां अपनी ड्यूटी करते रहे. वे कहते हैं आज भी जब कोई इस मंजर के बारे में पूछता है, सारी बातें और यादें एक-एक कर आंखों के सामने आ जाती है.
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नायक गणेश प्रसाद यादव – पटना
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सिपाही अरविंद कुमार पांडेय – मुजफ्फरपुर
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सिपाही अरविंद पांडेय पूर्वी चंपारण
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सिपाही शिव शंकर प्रसाद गुप्ता – औरंगाबाद
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लांस नायक विद्यानंद सिंह – भोजपुर
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सिपाही हरदवे प्रसाद सिंह – नालंदा
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नायक बिशुनी राय – सारण
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नायक सूबे. नागेश्वर महतो – रांची
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सिपाही रम्बू सिंह – सिवान
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गनर युगबंर दीक्षित – पलामू
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मेजर चंद्रभूषण द्विवेदी- शिवहर
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हवलदार रतन कुमार सिंह – भागलपुर
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सिपाही रमण कुमार झा – सहरसा
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सिपाही हरिकृष्ण राम – सीवान
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गनर प्रभाकर कुमार सिंह – भागलपुर
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नायक सुनील कुमार सिंह – मुजफ्फरपुर
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नायक नीरज कुमार – लखीसराय
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लांस नायक रामवचन राय – वैशाली
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कारगिल दिवस को ‘ऑपरेशन विजय’ के नाम से भी जाना जाता है.
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विश्व के इतिहास में कारगिल युद्ध दुनिया के सबसे ऊंचे क्षेत्रों में लड़ी गयी जंग में शामिल है.
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3 मई 1999 को शुरू हुआ यह युद्ध दो महीने से भी अधिक चला था, युद्ध 26 जुलाई को खत्म हुआ था.
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जुब्बार पहाड़ी से दुश्मनों का कब्जा हटाने के लिए बिहार रेजीमेंट के सैनिक ने दिया था पहला बलिदान.
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बिहार रेजिमेंट के जवानों को ‘किलर मशीन’, ‘जंगल वॉरियर्स’ और ‘बजरंग बली आर्मी’ के नाम से जाना जाता है.
कारगिल में दुश्मनों के कब्जे की जानकारी 17 मई 1999 को हो गयी थी. उन दिनों बिहार रेजीमेंट की प्रथम बटालियन कारगिल जिले के बटालिक सेक्टर में पहले से ही तैनात थी. बटालिक सेक्टर की जुब्बार पहाड़ी पर भारी हथियार के साथ दुश्मनों ने कब्जा कर लिया था. बिहार रेजीमेंट को जुब्बार पहाड़ी को अपने कब्जे में लेने की जिम्मेदारी सौंपी गयी. 21 मई को मेजर एम सरावनन अपनी टुकड़ी के साथ रेकी पर निकल गये. करीब 14,229 फीट की ऊंचाई पर बैठे दुश्मनों ने फायरिंग शुरू कर दी. मेजर सरावनन ने 90 एमएम राकेट लांचर अपने कंधे पर उठाकर दुश्मनों पर हमला बोल दिया. पाकिस्तानी दुश्मनों को इससे भारी नुकसान हुआ. पहले ही हमले में पाक के दो घुसपैठिए मारे गए. यहीं से शुरुआत हुई थी कारगिल युद्ध की.