रांची: मणिपुर में मैतई समुदाय की तरह झारखंड समेत बंगाल और ओडिशा में भी कुड़मी समुदाय लगातार अनुसूचित जनजाति का दर्जा देने की मांग कर रहा है. इसे लेकर वे कई बार सड़क पर उतरे तो कई बार उन्होंने ट्रेनों के परिचालन को ठप कर दिया. इस समुदाय के लोग अपने अपने राज्य में संगठन बनाकर अपनी मांग को मनवाने के लिए लगातार प्रयासरत हैं. झारखंड में निवास कर रहे कुड़मी समुदाय के लोग अपनी मांग को लेकर कई बार बंद बुला चुके हैं.
यहां तक कि, सत्ता पक्ष के कई नेता खुल के इस मांग का समर्थन चुके हैं. लेकिन अब तक इस दिशा में कोई भी ठोस कदम नहीं उठाया गया है. ज्ञात हो कि मणिपुर में भी मैतई समाज के लोग लगातार अनुसूचित जनजाति का दर्जा देने की मांग कर रहे हैं. इसे लेकर वहां बीते 2 माह से अधिक समय से लगातार हिंसक घटनाएं देखने को मिल थी. हालांकि अभी स्थिति नियंत्रण में है. ऐसे में ये जानना जरूरी है कि कैसे किसी भी जाति को अनुसूचित जनजाति का दर्जा मिलता है. इसकी क्या प्रक्रिया है.
किसी भी जाति को अनुसूचित जनजाति दर्जा देने के शुरुआत उनके राज्य से ही होती है. यानि कि राज्य सरकार को ही किसी भी जाति को अनुसूचित जनजाति देने की अनुशंसा करनी होती है. उसके लिए उन्हें वैध दस्तावेज केंद्रीय जनजातीय मंत्रालय को देना पड़ता है. उसके बाद भारत सरकार का जनजातीय मंत्रालय उस दस्तावेज को समीक्षा करने के बाद उसे गृह मंत्रालय को भेजता है. इसके बाद गृह मंत्रालय में फिर से इसकी समीक्षा होती है.
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जिसके बाद वहां से अनुमोदित होकर इसे राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग को भेजा जाता है. वहां से ये प्रस्ताव स्वीकृत होने के बाद वापस इसे केंद्र सरकार को भेजा जाता है. जिसके बाद केंद्र सरकार इसे एक विधेयक के रूप में राज्यसभा और लोकसभा से पारित करती है. इसके बाद बिल को राष्ट्रपति के पास भेजा जाता है. जहां राष्ट्रपति इसकी समीक्षा करने के बाद अनुच्छेद 341 और 342 के तहत अंतिम निर्णय लेते हैं. इसके बाद ही किसी को अनुसूचित जनजाति का दर्जा मिल पाता है.
आदिवासी समुदाय कुड़मियों द्वारा अनुसूचित जनजाति की मांग का विरोध कर चुका है. कुछ माह पहले कई आदिवासी संगठनों के लोगों ने आक्रोश रैली निकाली थी. उनका कहना है कि किसी भी हाल में वे उनके प्रयास को सफल नहीं होने देंगे. वहीं कुड़मी समाज के लोगों का कहना है कि उनकी संस्कृति आदिवासियों से अलग नहीं है. 1950 से पहले हम अनुसूचित जनजाति में शामिल थे. अब हम अपना हक पाने के लिए लगातार संघर्ष करेंगे.
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जगरनाथ महतो ने निधन से पहले इस मामले पर बड़ा बयान दिया था. उन्होंने प्रभात खबर से बातचीत में कहा था कि कुड़मी एसटी में शामिल था. बिना किसी पत्र या गजट के कुड़मी को अनुसूचित जनजाति से बाहर कर दिया गया. केंद्र बताये कि कुड़मी को क्यों एसटी की सूची से बाहर किया गया. कुड़मी अगर एसटी में शामिल नहीं था, तो फिर उसकी जमीन सीएनटी (CNT) में कैसे है. कुड़मी को वर्ष 1931 में एसटी (ST) की सूची से बाहर कर दिया गया था.
वहीं इस मामले में सालखन मुर्मू भी पीछे नहीं रहे. उन्होंने पूर्व शिक्षा मंत्री के सवाल के जवाब में कहा था कि उन्हें जगरनाथ महतो होना चाहिए कि सीएनटी कानून की धारा 46 (बी) के तहत एससी और ओबीसी के भी जमीन की रक्षा के लिए सीएनटी में प्रावधान है. इसे 2010 में झारखंड सरकार के तत्कालीन मुख्यमंत्री अर्जुन मुंडा और उपमुख्यमंत्री हेमंत सोरेन व सुदेश महतो ने तोड़ने का काम किया था.
झारखंड, पश्चिम बंगाल व ओड़िशा के कुड़मी समाज के प्रतिनिधिमंडल ने कुड़मी को आदिवासी (एसटी) की सूची में शामिल करने की मांग कर चुके हैं. साल 2022 में इस संबंध में समाज के प्रतिनिधिमंडल ने राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू (President Draupadi Murmu) को एक ज्ञापन सौंपा थ. प्रतिनिधिमंडल ने राष्ट्रपति को बताया कि 1913 में प्रकाशित इंडिया गजट नोटिफिकेशन नंबर 550 में कुड़मी जनजाति को एवोरिजनल एनिमिस्ट मानते हुए छोटानागपुर के कुड़मियों को अन्य आदिवासियों के साथ भारतीय उत्तराधिकारी कानून 1865 के प्रावधानों से मुक्त रखा गया था.
उक्त ज्ञापन में उन्होंने 1921 तक की जनगणना का हवाला दिया था. कुड़मियों ने कहा था कि रिपोर्ट 1901 (Census Report 1901), जनगणना रिपोर्ट 1911 (Census Report 1911) व जनगणना रिपोर्ट 1921 (Census Report 1921) में भी स्पष्ट रूप से कुड़मी जनजाति को एवोरिजनल एनिमिस्ट (Kurmi Tribe Aboriginal Animist) के रूप में दर्ज किया गया है. इसके अलावा बहुत सारे दस्तावेज होने के बावजूद कुड़मी जनजाति को अनुसूचित जनजाति की सूची से बाहर रखा गया है, जिसके कारण आज यह जनजाति अन्य सभी जनजातियों से रोजगार शिक्षा के साथ-साथ राजनीतिक भागीदारी में अंतिम पायदान पर चल गया है.
झारखंड में कुल 32 जनजातियां पायी जाती हैं, जिनकी जनसंख्या लगभग 86 लाख से अधिक है. इन 32 जनजातियों में से 8 आदिम जनजातियां हैं, जिनकी जनसंख्या 1 लाख से अधिक है. इसमें सबसे बड़ी जनजाति संथाल है. जिनकी जनसंख्या अधिक है. यह जनजाति संथाल परगना में निवास करती है. जिनकी अपनी अलग-अलग रीति-रिवाज और संस्कृति है. झारखंड की अन्य प्रमुख जनजातियों में उरांव, मुण्डा, बिरहोर आदि शामिल हैं.
आदिवासी कुड़मी संघर्ष मोर्चा ने पूर्व सांसद शैलेंद्र महतो के नेतृत्व में आठ फरवरी 2018 को तत्कालीन मुख्यमंत्री रघुवर दास को ज्ञापन दिया था. इसमें कुड़मी जाति को अनुसूचित जनजाति की सूची में शामिल करने की मांग की थी. तब उस ज्ञापन में झामुमो-भाजपा-कांग्रेस के 41 विधायकों व सांसदों के हस्ताक्षर थे. झामुमो के कार्यकारी अध्यक्ष व मौजूदा मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन, सरायकेला के चंपाई सोरेन, डुमरी विधायक जगरनाथ महतो, गोमिया विधायक योगेंद्र प्रसाद, जामताड़ा के डा. इरफान अंसारी,
बगोदर के नागेंद्र महतो, बेरमो के योगेश्वर महतो बाटुल, तमाड़ के विकास कुमार मुंडा, बड़कागांव की निर्मला देवी, पोड़ैयाहाट के प्रदीप यादव, सिंदरी के फूलचंद मंडल, धनबाद विधायक राज सिन्हा, खरसावां के दशरथ गगरई, गांडेय विधायक जयप्रकाश वर्मा, बोकारो विधायक बिरंची नारायण, भवनाथपुर के भानू प्रताप शाही, जरमुंडी के बादल पत्रलेख, गिरिडीह के निर्भय कुमार शाहाबादी, सिल्ली के अमित कुमार, मांडू के जयप्रकाश भाई पटेल, साहिबगंज विधायक अनंत ओझा, रामगढ़ विधायक चंद्रप्रकाश चौधरी, नाला विधायक व मौजूदा विधानसभा अध्यक्ष रविंद्र नाथ महतो, रांची सांसद रामटहल चौधरी ने इस पर हस्ताक्षर किए थे.
बंगाल में दार्जिलिंग पर्वतीय क्षेत्र में रहने वाले गोरखा समुदाय की 11 जनजातियां भी लंबे समय से एसटी का दर्जा देने की मांग कर रही हैं. इनमें गुरुंग, मंगर, राई, सुनवार, मुखिया, जोगी, थामी, याखा, बाहुन, छेत्री और नेवार शामिल हैं. आजादी के बाद गोरखा समुदाय की 18 में से सात जनजातियों को एसटी का दर्जा तो मिल गया, लेकिन 11 को अब तक इसका इंतजार है.
कुछ माह पहले कुड़मी समुदाय के लोगों ने बंगाल में रेल का परिचालन ठप कर दिया था. जिसका असर झारखंड में भी व्यापक तौर पर देखने को मिला था. खास तौर पर दक्षिण पूर्व रेलवे के खड़गपुर रेल डिवीजन और आद्रा रेल डिवीजन के परिचालन पर असर पड़ा था. इन मार्गों पर चलने वालीं लगभग सभी ट्रेनों का परिचालन 5 दिनों तक बंद था. आंदोलन के कारण दक्षिण-पूर्व रेलवे ने 496 ट्रेनों को रद्द कर दिया था. जमशेदपुर के टाटानगर से नई दिल्ली, मुंबई, पुणे, छत्तीसगढ़, गुजरात, मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश, बिहार जाने वाली लंबी दूरी सहित पैसेंजर ट्रेनें रद्द थीं. लगातार पांच दिनों तक ट्रेनों का परिचालन ठप रहने से यात्रियों को भारी परेशानियों का सामना करना पड़ा था.
कुड़मी समाज पश्चिम बंगाल राज्य कमेटी के राजेश महतो ने कहा था कि कुड़मी समाज अपने हक की लड़ाई लड़ रहा है. हमारी लड़ाई आगे भी जारी रहेगी. आमजन की समस्या को देखते हुए आंदोलन समाप्त नहीं किया गया है सिर्फ स्थगित किया गया है.
कुड़मी आंदोलन के कारण रेलवे को 435 ट्रेनों को रद्द करना पड़ा था. एक रिपोर्ट के अनुसार, लगभग 4,32,000 यात्रियों को अपनी यात्रा रद्द करनी पड़ी थी. खड़गपुर मंडल और आद्रा मंडल में ट्रेन सेवा प्रभावित होने से रेलवे को भारी नुकसान उठाना पड़ा था. जानकारी के अनुसार, दक्षिण-पूर्व रेलवे को 1700 करोड़ रुपये से ज्यादा का नुकसान उठाना पड़ा था. इसमें सबसे ज्यादा नुकसान खड़गपुर मंडल को हुआ है.
कुड़मी समाज ने सरकार पर धोखा देने का आरोप लगाया था. कुड़मी नेता राजेश महतो, तरुण महतो, संजय महतो, अजित महतो ने पत्रकारों से बातचीत में कहा था राज्य सरकार द्वारा आश्वासन दिया गया, लेकिन अभी तक जस्टिफिकेशन यह बिल राज्य सरकार ने केंद्र सरकार को नहीं भेजा है. पश्चिम बंगाल सरकार द्वारा हमलोगों को धोखा दिया जा रहा है.