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धनबाद : बालिका आवासीय विद्यालयों में तीन फीट के बेड पर दो छात्राएं सोने को हैं विवश

धनबाद जिला में संचालित बालिका आवासीय विद्यालयों की पड़ताल की. वहां इसमें पता चला कि केजीबीवी व जेबीएवी अपने मूल उद्देश्य समाज के वंचित समूहों की लड़कियों तक गुणवत्तापूर्ण शिक्षा सुनिश्चित कराने में सफल नहीं हो पा रहा है.

बालिका शिक्षा को बढ़ावा देने के लिए देश के शैक्षिक रूप से पिछड़े प्रखंडों में कस्तूरबा गांधी बालिका आवासीय विद्यालय खोला गया. लेकिन इन विद्यालयों का हाल बेहाल है. छात्राओं को मूलभूत सुविधाएं भी उपलब्ध नहीं करायी जाती है. इस वजह से उन्हें परेशानी होती है. प्रभात खबर की टीम ने जिला में संचालित बालिका आवासीय विद्यालयों की पड़ताल की. वहां इसमें पता चला कि केजीबीवी व जेबीएवी अपने मूल उद्देश्य समाज के वंचित समूहों की लड़कियों तक गुणवत्तापूर्ण शिक्षा सुनिश्चित कराने में सफल नहीं हो पा रहा है.

तोपचांची प्रखंड के मानटांड़ मोड़ स्थित कस्तूरबा गांधी आवासीय बालिका विद्यालय में छठी से 12वीं तक 404 छात्राएं अध्ययनरत हैं. उनके रहने, खाने-पीने, दैनिक जरूरत के सामान, स्कूल ड्रेस, किताब, कलम, कॉपी आदि सभी सामान सरकार मुहैया कराती है. विद्यालय में बिजली, शौचालय की व्यवस्था है. सिर्फ पानी की किल्लत है. छात्राओं को सोने के लिए बेड की कमी है. इस कारण तीन फीट की चौड़ाई वाले बेड पर एक साथ दो छात्राएं सोती हैं. इस पतले बेड पर वे इस कदर परेशान होती हैं कि रात उनके लिए मानो किसी सजा की तरह है.

बेड की कमी से पूरी नहीं होती छात्राओं की नींद

कस्तूरबा गांधी बालिका विद्यालय (बागसुमा) गोविंदपुर में 425 छात्राएं अध्ययनरत हैं. विद्यालय में बेड की काफी कमी है. हॉस्टल में केवल 200 बेड है. प्रत्येक बेड पर दो छात्राएं सोती हैं. इस समस्या को दूर करने के लिए प्रखंड विकास पदाधिकारी संतोष कुमार ने 10 बेड उपलब्ध कराये हैं. विद्यालय की वार्डन डॉ रंजू रानी शर्मा ने बताया कि परिसर में पानी की परेशानी है. छह बोरिंग कराये गये थे. इनमें तीन बोरिंग क्रियाशील है और तीन बोरिंग ड्राइ हो गयी है. इस कारण गर्मियों में यहां पानी की समस्या रहती है. विद्यालय का पुराना भवन एवं छात्रावास जर्जर हो गया है. इसकी मरम्मत नहीं होने पर कभी भी बड़ा हादसा हो सकता है. पाइपलाइन भी पुरानी पड़ गयी है. इसकी भी मरम्मत की जरूरत है. इस वर्ष इस विद्यालय में 125 नयी बालिकाओं का दाखिला हुआ है. इस कारण बेंच- डेस्क और बिस्तर की कमी है. पूरे परिसर को कटीला तार से घेरा गया था, परंतु जगह-जगह कटीले तार टूट गए हैं. इस कारण असामाजिक तत्वों के प्रवेश का खतरा बना रहता है.

कक्षा में पर्याप्त संख्या में बेंच-डेस्क नहीं, जमीन पर करती हैं पढ़ाई

बाघमारा में झारखंड आवासीय बालिका विद्यालय पिछले 10 वर्षों से प्रखंड के बीआरसी में संचालित है. फिलवक्त यहां 245 छात्राएं अध्ययनरत है. इनके लिए मात्र 120 उपलब्ध हैं. इसी वजह से किसी बेड पर दो तो किसी बेड पर तीन छात्राएं सोती हैं. कक्षा में पर्याप्त संख्या में बेंच-डेस्क भी नहीं है. वे जमीन पर बैठकर पढ़ती हैं. विद्यालय में पर्याप्त सुरक्षा व्यवस्था भी नहीं है. रात्रि प्रहरी के रूप में सिर्फ एक गार्ड है. दिन में प्राय: गार्ड नहीं होता. वहीं पांडेयडीह में 4.41 करोड़ की लागत से बन रहा स्कूल का नया भवन आठ वर्षों से निर्माणाधीन है. वार्डन सरोज देवी बताती हैं कि इन कमियों को लेकर विभाग को समय-समय पर सूचना दी गयी है.

Also Read: धनबाद : कस्तूरबा गांधी बालिका विद्यालय का हाल बेहाल, जमीन पर गद्दा बिछाकर सोती व दरी पर बैठ पढ़ती हैं छात्राएं

जमीन पर गद्दा डालकर सोती हैं छात्राएं

झारखंड आवासीय बालिका विद्यालय फतेहपुर, पूर्वी टुंडी में अध्ययनरत 236 छात्राओं के लिए मात्र 60 बेड है. इस कारण छात्राएं जमीन पर ही गद्दा डालकर सोती हैं. छात्राओं के अनुपात में शौचालय और बाथरूम की भी कमी है. यहां नौ शौचालय और छह बाथरूम है. विद्यालय में शिक्षिकाओं के लिए सृजित पदों की संख्या 10 है. लेकिन विद्यालय में अभी सिर्फ चार शिक्षिकाएं हैं. छठी से 10वीं तक की छात्राओं के लिए बेंच डेस्क का घोर अभाव है. वार्डन वार्डन लुइस हेंब्रम के अनुसार केवल 10वीं की छात्राओं के लिए ही बेंच डेस्क उपलब्ध है. जबकि छठी से नौवीं तक की छात्राएं जमीन पर बैठकर पढ़ती हैं. विद्यालय को पर्याप्त बिजली आपूर्ति नहीं मिलती है. यहां जेनरेटर की सुविधा नहीं है. इनवर्टर का उपयोग कार्यालय में होता है. 4.41 करोड़ रुपये की लागत से बन रहा भवन पिछले आठ वर्षों से निर्माणाधीन है.

किसी बेड पर दो तो किसी पर सोती हैं तीन छात्राएं

बाघमारा में झारखंड आवासीय बालिका विद्यालय पिछले 10 वर्षों से प्रखंड के बीआरसी में संचालित है. फिलवक्त यहां 245 छात्राएं अध्ययनरत है. इनके लिए मात्र 120 उपलब्ध हैं. इसी वजह से किसी बेड पर दो तो किसी बेड पर तीन छात्राएं सोती हैं. कक्षा में पर्याप्त संख्या में बेंच-डेस्क भी नहीं है. वे जमीन पर बैठकर पढ़ती हैं. विद्यालय में पर्याप्त सुरक्षा व्यवस्था भी नहीं है. रात्रि प्रहरी के रूप में सिर्फ एक गार्ड है. दिन में प्राय: गार्ड नहीं होता. वहीं पांडेयडीह में 4.41 करोड़ की लागत से बन रहा स्कूल का नया भवन आठ वर्षों से निर्माणाधीन है. वार्डन सरोज देवी बताती हैं कि इन कमियों को लेकर विभाग को समय-समय पर सूचना दी गयी है

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