डॉ शहाब आर्यन :
हुसैन, हक और कर्बला. ये तीनों अल्फाज़ आपस में कुछ इस तरह से मिल चुके हैं कि जब तक इस दुनिया में इंसानी वजूद कायम रहेगा, इंसानियत न तो कर्बला की लहूलुहान मिट्टी को फरामोश कर सकती है और न ही हक़ और इंसानियत की खातिर इमाम हुसैन (अ) की अजमत, शहादत और हकीकी इबादत को फरामोश कर सकती है.
इमाम हुसैन की अपने पूरे कुनबे के साथ शहादत इंसानी तारीख का एक ऐसा सोगवार वाक्या है जिस की गहराई तक पहुंच पाना बेहद मुश्किल है. जहां तक इंसानी दिमाग की पहुंच है, हम इतना ही कह सकते हैं कि कर्बला का पूरा वाक्या डिवाइन डिजाइन का हिस्सा था. यानी इंसानियत को कयामत तक बातिल के खिलाफ और हक की खातिर अपनी आवाज़ बुलंद करने और हक की हिफाजत के लिए अपना सब कुछ कुर्बान कर देने का हौसला और जज़्बा देने के लिए कर्बला हुआ.
इमाम हुसैन की शहादत के कई पहलू हैं जिनमें एक बेहद अहम पहलू आध्यात्मिकता बनाम भौतिकवाद का है. इमाम हुसैन रूहानियत के प्रतीक हैं जिनके लिए ईश्वर की इच्छा और सत्य के प्रति अदम्य निष्ठा सर्वोपरि है. नश्वर जीवन और क्षणिक भौतिक सुख सुविधाओं का कोई मोल नहीं है. दूसरी तरफ यजीद असत्य और नश्वर भौतिकवाद का प्रतीक है जिसके लिए भोगविलास और सत्ता सुख सर्वोपरि है.
हुसैन मानवता, परमार्थ और त्याग के प्रतीक हैं तो यजीद अमानवीयता, क्रूरता और स्वार्थ का प्रतीक है. यजीद क्षणिक है, हुसैन स्थाई हैं. यजीद मिट जाता है, हुसैन कायम रहते हैं. यजीद जंग जीत कर भी हार जाता है क्योंकि उसकी जीत भौतिक है, नश्वर है, सांसारिक है. हुसैन अपने पूरे कुनबे और साथियों के साथ शहीद हो जाते हैं लेकिन ये हार नहीं बल्कि एक ऐसी जीत है कि आज चौदह सौ साल बाद भी पूरी दुनिया में या हुसैन के नारे बुलंद हो रहे हैं। यजीद मिट गया, हुसैन कयामत तक के लिए इंसानी वजूद का हिस्सा बन गये.
कर्बला की जंग का एक पहलू ये भी है कि एक कर्बला हर इंसान के दिमाग में मौजूद है. एक जंग हमारे दिमागों में हर पल, हर रोज लड़ी जा रही है. ये जंग यजीदियत और हुसैनियत की जंग है. यजीदी प्रवृत्तियां जैसे लोभ, लालच, स्वार्थ, बेइमानी, जोर जबरदस्ती, हिंसा, अहंकार आदि हमारे दिल और दिमाग को अपने काबू में करने के लिए पूरा जोर लगाते रहते हैं, लेकिन अगर हम सचमुच हुसैन के चाहने वाले हैं और हुसैन हमारे आदर्श हैं तो जीत प्रेम, मानवता, आध्यात्मिकता, परोपकार और शांति की ही होगी. ये जो कर्बला हमारे आपके अंदर है, आइए उसमें इमाम हुसैन का झंडा गाड़ दें, और यजीदी प्रवृत्तियां को हमेशा के लिए दफन कर दें.
(लेखक शहाब इंस्टीट्यूट, रांची के निदेशक हैं)