झारखंड के दुमका जिले में शिकारीपाड़ा के पास बसे एक छोटे से गांव मलूटी में आप जिधर नजर दौड़ाएंगे आपको हर ओर सिर्फ प्राचीन मंदिर ही मंदिर नजर आएंगे. पूर्वोतर भारत में प्रचलित लगभग सभी प्रकार की शैलियों का नमूना दिखा हमें. मलूटी में लगातार सौ वर्षों तक मंदिर बनाये गये. शुरू में यहां सब मिलाकर 108 मंदिर थे जो अब घटकर 65 रह गये हैं. इनकी ऊंचाई कम से कम 15 फुट तथा अधिकतम 60 फुट है. मलूटी के अधिकांश मंदिरों के सामने के भाग के ऊपरी हिस्से में संस्कृत या प्राकृत भाषा में प्रतिष्ठाता का नाम व स्थापना तिथि अंकित है. इससे पता चलता है कि इन मंदिरों की निर्माण अवधि वर्ष 1720 से 1845 के भीतर रही है. हर जगह करीब 20-20 मंदिरों का समूह है. हर समूह के मंदिरों की अपनी ही शैली और सजावट है.
मंदिरों का गांव क्यों है प्रसिद्द
इस गांव को ‘मंदिरों के गांव-मलूटी’ के नाम से जाना जाता है. इस गांव की सबसे बड़ी खासियत यहां बने हुए टेराकोटा शैली के मंदिर हैं. ये मंदिर अलग-अलग नहीं बने हुए हैं वरन एक पूरी श्रृंखला के रूप में बने हुए हैं. इस आकर्षक झांकी की प्रस्तुति से पूरे देश में यह गांव अपनी पहचान स्थापित कर चुका है. जिसे द्वितीय पुरस्कार भी मिला था.
मंदिरों के गांव का इतिहास
मलूटी में पहला मंदिर 1720 ई में वहां के जमीनदार राखड़चंद्र राय के द्वारा बनाया गया था. राजा बाज बसंत के परम भक्त राजा राखड़चंद्र राय तंत्र साधना में विश्वास रखते थे. वह मां तारा की पूजा के लिए नियमित रूप से तारापीठ जाते थे. मलूटी से तारापीठ की दूरी महज 15 किलोमीटर है. बाद में मलूटी ननकर राज्य के राजा बाज बसंत के वंशजों ने इन मंदिरों का निर्माण करवाया. ऐतिहासिक तथ्यों के अनुसार, गौड़ राज्य के बादशाह अलाउद्दीन हुसैन शाह (1493-1519) द्वारा दी गई जमीन पर मलूटी ‘कर मुक्त राज्य’ की स्थापना हुई थी.
इन देवताओं के हैं मंदिर
हिंदू धर्म में पूज्य माने गए लगभग सभी देवी-देवताओं के मंदिर यहां पर मिल जाएंगे. मलूटी गांव के चारों ओर भगवान विष्णु, भगवान शिव, काली, दुर्गा, मनसा देवी, धर्मरा तथा मां मौलिक्षा देवी के मंदिर निर्मित किए गए हैं. राज्य सरकार इस गांव को यूनेस्को की विश्व धरोहरों की सूची में शामिल कराने के प्रयासों में जुटी हुई है. वर्ष 2015 में तत्कालीन अमरीकी प्रधानमंत्री बराक ओबामा भी यहां आकर आश्चर्यचकित हो चुके हैं.
पशु बली के लिए भी प्रसिद्ध है मलूटी गांव
मलूटी पशुओं की बली के लिए भी जाना जाता है. यहां काली पूजा के दिन एक भैंस और एक भेड़ सहित करीब 100 बकरियों की बली दी जाती है. हालांकि पशु कार्यकर्ता समूह अक्सर यहां पशु बली का विरोध करते रहते हैं. मलूटी के मंदिरों की यह खासियत है कि ये अलग-अलग समूहों में निर्मित हैं. भगवान भोले शंकर के मंदिरों के अतिरिक्त यहां दुर्गा, काली, धर्मराज, मनसा, विष्णु आदि देवी-देवताओं के भी मंदिर हैं.
कैसे पहुँचें मलूटी गांव
‘रामपुर हाट’ मलूटी गाँव का निकटतम रेलवे स्टेशन है. यहाँ तक दुमका-रामपुर सड़क पर ‘सूरी चुआ’ नामक स्थान पर बस से उतर कर उत्तर की ओर 5 किलोमीटर की दूरी तय कर पहुंचा जा सकता है.
मलूटी के अतिरिक्त और क्या ?
यहाँ मलूटी के अतिरिक्त देखने के लिए बहुत कुछ है. जैसे मसनजोर बांध, बाबा बासुकीनाथ धाम, कुमराबाद, बाबा सुमेश्वर नाथ मंदिर और मयूराक्षी नदी.
मसनजोर बांध: मयूराक्षी नदी पर बना यह बांध और झील पर्यटकों के लिए विशेष आकर्षण का केंद्र है.
बाबा बासुकीनाथ धाम: महादेव को समर्पित यह धाम देवघर – दुमका मार्ग पर स्थित है. श्रावण माह में यहाँ विशाल मेले का आयोजन होता है.
कुमराबाद: ऊँची पहाड़ियों से घिरा और मयूराक्षी नदी के किनारे पर बसा कुमराबाद एक खूबसूरत पिकनिक स्थल के रूप में उभरा है.
बाबा सुमेश्वर नाथ मंदिर: यह मंदिर भी भगवान शिव को समर्पित है.