बारिश का मौसम अपने साथ कई तरह की बीमारियां लेकर आता है, जिनमें से एक है- आइ फ्लू या कंजक्टिवाइटिस. आमतौर पर इस समय आइ फ्लू की समस्या हर वर्ष देखने को मिलती है. वहीं रिपोर्ट्स के अनुसार, इस वर्ष पिछले 20 वर्ष के मुकाबले आइ फ्लू के सबसे ज्यादा केस सामने आये हैं. इस इंफेक्शन से बड़े ही नहीं, बल्कि छोटे-छोटे बच्चे भी, खासकर स्कूली बच्चे भी चपेट में आ रहे हैं. ऐसे में इससे बचाव के लिए तैयार रहना जरूरी है.
इस वर्ष देश के कई हिस्सों में बारिश ज्यादा होने, जलभराव और बाढ़ की स्थिति देखी जा रही है. इसके बाद ह्यूमिडिटी बढ़ने से वातावरण में माइक्रोऑर्गेनिज्म यानी कई बैक्टीरिया, वायरस पनपने लगते हैं, जो सेहत को नुकसान पहुंचाते हैं. उनमें से एक एडिनोवायरस भी है, जिससे आइ फ्लू या कंजक्टिवाइटिस की समस्या सामने आती है. अभी देश भर में कंजक्टिवाइटिस संक्रमण तेजी से पांव पसार रहा है और इसने महामारी का रूप ले लिया है.
कंजक्टिवाइटिस आंखों की संक्रामक बीमारी है, जो आमतौर पर एडिनोवायरस से होती है. ऐसे में इसे एडिनोवायरल कंजक्टिवाइटिस भी कहा जाता है. असल में हमारी आंखों के अंदर प्राकृतिक रूप से कई तरह के बैक्टीरिया पहले से मौजूद होते हैं. बारिश के मौसम में व्यक्ति की आंखों या शरीर की इम्युनिटी कमजोर होने पर एडिनोवायरस उन पर अटैक कर देता है, जिससे आइ फ्लू इंफेक्शन ट्रिगर हो जाता है.
कंजक्टिवाइटिस आंख के सफेद भाग यानी कंजक्टिवा को संक्रमित करता है. असल में कंजक्टिवा आंखों के सफेद भाग के ऊपर एक ट्रांसपेरेंट लेयर होती है, जिसमें खून की पतली-पतली रक्त नलिकाएं भी होती हैं. इंफेक्शन होने पर आंखों की इस लेयर में सूजन आ जाता है. इसकी वजह से रक्त नलिकाएं सूज जाती हैं, जिससे आंख का सफेद भाग लाल नजर आता है. ऐसे में इसे पिंक फ्लू भी कहा जाता है.
कुछ मामलों में यह इंफेक्शन कंजक्टिवा से आंख के आगे की पुतली कॉर्निया तक आ जाता है. उसे केराटो-कंजक्टिवाइटिस कहा जाता है. इसमें प्रभावित कॉर्निया में छोटे-छोटे स्पॉट्स बन जाते हैं, जिन्हें वायरल एस्पिकेस कहा जाता है. इससे व्यक्ति को धुंधला दिखाई देने लगता है और रात को लाइट में देखने में परेशानी होती है. हालांकि, केवल एक प्रतिशत मरीजों में ही केराटो-कंजक्टिवाइटिस की स्थिति देखी गयी है.
डॉक्टरों का मानना है कि कंजक्टिवाइटिस सेल्फ-लिमिटिंग या बहुत ज्यादा गंभीर बीमारी नहीं है. आमतौर पर इंफेक्शन धीरे-धीरे अपने आप ठीक हो जाता है. आंखों को किसी तरह का स्थाई नुकसान पहुंचाये बिना एक या दो सप्ताह के भीतर पूरी तरह ठीक हो जाता है. मरीज की स्थिति के हिसाब से एंटीबायोटिक आइ ड्रॉप दिन में तीन बार भी डालने के लिए दी जाती है. बहुत कम लोग ऐसे होते हैं, जिनमें संक्रमण से जटिलताएं होती हैं. यानी जिनकी आंख में केराटो-कंजक्टिवाइटिस हो जाता है. फिर भी इसे नजरअंदाज नहीं करना चाहिए. अगर आपको आइ फ्लू के कोई लक्षण दिखायी दें, तो एक बार डॉक्टर से संपर्क जरूर करना चाहिए.
एक से दूसरे व्यक्ति में आइ फ्लू संक्रमण फैलने के कई कारण हैं- ऐसे व्यक्ति के संपर्क में आने पर, जिसे कंजक्टिवाइटिस है. पर्सनल खासकर आंख व हाथ की स्वच्छता और आसपास के वातावरण या सामान्य स्वच्छता में लापरवाही बरतने पर, संक्रमित चीजों या सतह पर हाथ लगाने पर वायरस का हाथ में ट्रांसमिट होना और ह्यूमिडिटी के कारण आये पसीने को पौंछते वक्त या चेहरे को हाथ लगाने पर आंखों का संक्रमित होना, या फिर मरीज की पर्सनल चीजों और सौंदर्य प्रसाधनों का इस्तेमाल करने से संक्रमण फैलता है.
आपके घर में किसी को आइ फ्लू का संक्रमण हो गया है और अपनों को इस बीमारी से बचाना चाहते हैं, तो ज्यादा-से-ज्यादा एहतियात बरतना जरूरी है.
आइ फ्लू होने पर यथासंभव मरीज खुद को आइसोलेट कर लें. स्कूल, कॉलेज या ऑफिस जाना अवॉयड करें.
पर्सनल हाइजीन का पूरा ध्यान रखें. दिन में कम-से-कम 2 से 3 बार चेहरे खासकर आंखों को साफ और ठंडे पानी से धोएं.
आंखों से निकलने वाले पानी को साफ करने के लिए सॉफ्ट टिशू पेपर का इस्तेमाल करें. इन्हें किसी लिफाफे में डालकर फेंकें.
जलन ज्यादा होने पर यथासंभव आंखें मलने से बचें. ठंडे पानी से धोने या ठंडे पानी की सिंकाई करने से आराम मिलेगा. इसके लिए ठंडे पानी में रुमाल या सूती कपड़ा भिगोकर निचोड़ लें. इसे आंखों पर रखने से ठंडक प्रदान होगी.
हैंड हाइजीन का ध्यान रखें. 15-20 मिनट बाद हाथ जरूर धोएं. खासकर आंखों को छूने से पहले और बाद में हाथ जरूर धोएं.
आंखों पर गोगल्स या काले चश्मा पहनें, ताकि आंखों को जल्दी-जल्दी हाथ न लगा सकें. अगर चश्मा पहनते हैं, तो इनकी साफ-सफाई का विशेष ध्यान रखें.
अगर आंखों में असहनीय दर्द महसूस हो रहा हो, आंखों की पलकों में सूजन बहुत ज्यादा महसूस हो रही हो और देखने में किसी तरह की दिक्कत आ रही हो, तो बिना देर किये आइ स्पेशलिस्ट डॉक्टर को कंसल्ट करें.साथ ही खुद दवादयां लेने से बचें.
कंजक्टिवाइटिस बड़ा असुविधाजनक हो सकता है, लेकिन बहुत ही दुर्लभ मामलों में इससे दृष्टि प्रभावित होती है. यह काफी संक्रामक होता है और बहुत तेजी से दूसरे लोगों में भी फैल सकता है. ऐसे में यदि ये लक्षण दिखें तो सतर्क हो जाएं.
एक या दोनों आंखों का लाल या गुलाबी दिखायी देना.
एक या दोनों आंखों में जलन या खुजली होना.
आसामान्य रूप से अधिक आंसू निकलना.
आंखों से पानी जैसा या गाढ़ा डिस्चार्ज निकलना.
आंखों से पानी का डिस्चार्ज ज्यादा होने या उसका रंग पीला होना सीवियर इंफेक्शन की ओर इशारा करता है.
आंखों में लगातार किरकिरी महसूस होना.
आंखों में सूजन आ जाना, यह लक्षण आमतौर पर एलर्जिक कंजक्टिवाइटिस के कारण दिखायी देते हैं.
रोज सुबह-शाम बेलाडोना-200 की दो बूंद दवा दिन में दो बार एक सप्ताह तक लेने से आप इससे बच सकते हैं. अगर आपको आइ फ्लू हो गया है, तो यूफ्रोसिया-200 दिन मे तीन बार चार-चार गोली ठीक होने तक व्यवहार करते रहें, दवा के साथ यूफ्रोसिया ड्रॉप दिन में दो बार डालने से जल्दी फायदा दिखेगा.
जिस तरह कोरोना संक्रमण में परिवार के एक सदस्य के संक्रमित होने पर पूरा परिवार संक्रमित हो जाता था. उसी तरह इस बार एक व्यक्ति को आइ फ्लू होने पर पूरे परिवार में संक्रमण फैल जा रहा है. आइ फ्लू में भी एक संक्रमित से 5-8 लोग संक्रमित हो रहे हैं.
जहां तक हो सके आंखें न छुएं, क्योकि आपको नहीं मालूम कि आपके संपर्क में आने वाली वस्तुएं वायरस से संक्रमित हैं या नहीं.
संक्रमित व्यक्ति से यथासंभव दूरी बना कर रखें. अगर परिवार में कोई संक्रमित है, तो टॉवल, रूमाल, बेडशीट जैसी पर्सनल चीजें अलग रखनी चाहिए, ताकि संक्रमण न फैल पाये. अगर उसकी चीजों को छूना पड़े, तो अपने हाथ अच्छी तरह साफ जरूर करें.
अपने रूमाल, तकिये के कवर, तौलिये आदि चीजों को रोज धोएं.
हैंड हाइजीन का ध्यान रखें. हर 30 मिनट में हाथ जरूर साफ करें. अगर साबुन से न धो पाएं तो सेनेटाइजर इस्तेमाल करें.
Disclaimer: हमारी खबरें जनसामान्य के लिए हितकारी हैं. लेकिन दवा या किसी मेडिकल सलाह को डॉक्टर से परामर्श के बाद ही लें.