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फिल्‍में बनाते और दिखाते समय देश के लोगों की संवेदनशीलता पर विचार करने की आवश्यकता

फिल्मों को प्रमाणित करते समय कट/संशोधन किये जाने चाहिये या विशुद्ध रूप से प्रमाणन(सर्टिफिकेशन) मॉडल के आधार पर बिना किसी कट/संशोधन या परिवर्तन के होने चाहिये. समिति को यह बताया गया कि प्रमाणन दर्शकों को विकल्प प्रदान करता है और सामग्री को जबरदस्ती नहीं दिखाया जाता है क्योंकि फिल्म देखना स्वैच्छिक है

संसद में मंगलवार को केंद्रीय फिल्म प्रमाणन बोर्ड(सीबीएफसी) की रिपोर्ट पेश की गयी जिसमें मुख्य रूप से समिति ने जनता और बच्चों पर फिल्मों की सामग्री के प्रभाव के बारे में विचारशील होने और फिल्मों को प्रमाणित करते समय श्रेणी निर्धारित करने के लिए मापदंडों में निष्पक्षता बढ़ाने पर बल दिया. स्टैंडिंग कमेटी ऑन कम्युनिकेशन एंड इंफार्मेशन टेक्नोलॉजी के चेयरमैन प्रताप राव जाधव की अध्यक्षता में समिति ने फिल्म निर्माण और फिल्म देखने में पूर्ण स्वतंत्रता और विनियमन(रेगुलेशन) पर भिन्न-भिन्न विचार सुने और सीबीएफसी में कुछ बदलावों की आवश्यकता महसूस की. जिसमें सीबीएफसी बोर्ड में प्रतिष्ठित व्यक्तियों के अलावा, आम जनता से भी प्रतिनिधित्व लेने, कलात्मक स्वतंत्रता और रचनात्मकता की सुरक्षा सुनिश्चित करने, किसी भी अधिनियम/ दिशानिर्देश/नीति परिवर्तनों को लाते समय एक संतुलित दृष्टिकोण अपनाने, सरकार को दी जाने वाली पुनर्विचार शक्ति को एक अपवाद की तरह ही प्रयोग करने, फिल्म प्रमाणन अपीलीय अधिकरण (एफसीएटी) का गठन करने, शिकायत निवारण तंत्र बनाने, अंतरराष्ट्रीय प्रथाओं का ख्याल रखने सहित कई सिफारिश की है, जिससे बोर्ड का चेहरा समावेशी हो. समिति में विभिन्न दलों के लोकसभा के 21 और राज्य सभा के 10 सदस्य शामिल हैं.

सेंसरशिप की तुलना में प्रमाणन

चर्चा मुख्य रूप से इस विवाद के इर्द-गिर्द घूमती रही कि क्या फिल्मों को प्रमाणित करते समय कट/संशोधन किये जाने चाहिये या विशुद्ध रूप से प्रमाणन(सर्टिफिकेशन) मॉडल के आधार पर बिना किसी कट/संशोधन या परिवर्तन के होने चाहिये. समिति को यह बताया गया कि प्रमाणन दर्शकों को विकल्प प्रदान करता है और सामग्री को जबरदस्ती नहीं दिखाया जाता है क्योंकि फिल्म देखना स्वैच्छिक है. लेकिन समिति ने पाया कि सीबीएफसी ज्यादातर प्रमाणन पर काम कर रहा है, सेंसरशिप पर नहीं. सीबीएफसी के सदस्य ने समिति को यह भी बताया कि प्रत्येक देश की संस्कृति अलग होती है. इसलिए समिति ने कहा, भारत जैसे सांस्कृतिक विविधता वाले देश में फिल्‍में बनाते और दिखाते समय देश के लोगों की संवेदनशीलता पर विचार करने की आवश्यकता है और इसी कारण विचार-विमर्श और प्रमाणन भी आवश्‍यक हैं. समिति का माना कि हिंसक और अश्लील सामग्री तक आसानी से पहुंच, विशेष रूप से बच्चों की, होने से संवेदनशीलता कम हो जायेगी और इसके परिणामस्वरूप हुई अतिरिक्त क्षति की तुलना पैसे से हुए लाभ से नहीं की जा सकती है.

फिल्म की विषय-वस्तु के प्रभाव के बारे में संवेदनशीलता जरूरी

समिति ने यह भी महसूस किया कि सख्त अंकुश और जरूरत से ज्यादा रेगुलेशन विनियमन सरासर गलत होगा. इसलिए मंत्रालय/सीबीएफसी/फिल्म उद्योग को वाक् / रचनात्मकता / कलात्मक अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के बीच संतुलन बनाना होगा और साथ ही देश की सांस्कृतिक विविधता और फिल्म की विषय-वस्तु के प्रभाव के बारे में संवेदनशील होना होगा. मंत्रालय/सीबीएफसी फिल्म बिरादरी के साथ मिलकर इस संतुलन को कायम करें. क्योंकि यह फिल्म निर्माताओं का अनिवार्य कर्त्तव्ये है कि वे बड़े पैमाने पर जनता और विशेष रूप से बच्चों पर फिल्मों के कंटेन्ट के पड़ने वाले प्रभाव के बारे में विचारशील हों. समिति ने मंत्रालय/सीबीएफसी से यह भी सिफारिश किया है कि फिल्म प्रमाणन के लिये श्रेणी निर्धारित करने के मापदंडों में वस्तुनिष्ठता बढ़ाई जाये क्योंकि नई प्रौद्योगिकियों के आगमन के साथ, डिजिटलीकरण और व्यावहारिक दृष्टिकोण से, मानवीय हस्तक्षेप और व्यक्तिगत पूर्वाग्रह को कम किया जा सकता है और प्रमाणन प्रक्रिया को सामाजिक बदलाव के प्रति उत्तरदायी बनाया जा सकता है.

सीबीएफसी के काम करने के तरीके में कुछ बदलाव की जरूरत

समिति ने पाया कि सीबीएफसी की स्थापना के बाद इसने ‘फिल्म सेंसर बोर्ड’ से ‘केंद्रीय फिल्म प्रमाणन बोर्ड’ तक की लंबी और गतिशील यात्रा तय की है. समिति ने फिल्म निर्माण और फिल्म देखने में पूर्ण स्वतंत्रता और विनियमन की आवश्यकता पर भिन्न विचार सुने.जांच की प्रक्रिया में समिति को पता चला कि सीबीएफसी अपनी वर्तमान व्यवस्था के तहत व्यावहारिक है और हितधारकों/फिल्म उद्योग के साथ परामर्श में विश्वास रखता है. बहरहाल, समिति की राय है कि उभरती प्रौद्योगिकियों और फिल्म उद्योग में परिवर्तनों के साथ तालमेल रखने के लिये सीबीएफसी के कार्यकरण में वास्तव में कुछ बदलावों की विशेष रूप से आवश्यकता है, क्योंकि भारत न केवल सांस्कृतिक रूप से विविध है बल्कि उन्नति और विकास के मामले में भी अद्वितीय है.

प्रमाणन प्रक्रिया के लिए समय-सीमा का हो पालन

समिति ने नोट किया है कि चलचित्र (प्रमाणन) नियम, 1983 के अनुसार फिल्म प्रमाणन प्रक्रिया के लिए 68 दिनों की समय सीमा निर्धारित है अर्थात पूर्ण आवेदन जमा करने से लेकर प्रमाण पत्र जारी करने तक. बहरहाल, हितधारकों द्वारा व्यक्त की गई चिंताओं के आलोक में, समिति मंत्रालय/सीबीएफसी को प्रमाणन प्रक्रिया के लिए समय सीमा का अक्षरशः पालन करने की सिफारिश करती है. समिति मंत्रालय/सीबीएफसी से संपूर्ण प्रमाणन प्रक्रिया को सुव्यवस्थित करके और सीबीएफसी के कामकाज में पारदर्शिता सुनिश्चित करके समय अवधि को कम करने हेतु आग्रह करती है. इसके अलावा, एसएमएस सुविधा के साथ प्रमाणन के सभी चरणों के सिंक्रनाइजेशन से फिल्म निर्माताओं को प्रत्येक चरण के बारे में समवर्ती रूप से अपडेट किया जा सकेगा.

शिकायत निवारण तंत्र बनाने

प्रमाणन हेतु आवेदन के लिए पशु कल्याण बोर्ड से अनापत्ति प्रमाण पत्र प्रस्तुत करने की अनिवार्य आवश्यकता तथा फिल्म निर्माताओं के सामने आने वाली असुविधाओं से संबंधित चिंताओं पर, समिति को आश्वासन दिया गया है कि इन मुद्दों का समाधान किया जाएगा. मंत्रालय ने यह भी जानकारी दी कि जब भी कोई संवेदनशील मुद्दा होता है और विशेषज्ञ टिप्पणियों की आवश्यकता होती है, तो सीबीएफसी के पास एक विशेषज्ञ विंडो होती है जहां वे किसी भी विषय के विशेषज्ञों को आमंत्रित करते हैं. समिति ने मंत्रालय से यह भी आग्रह किया है कि वे फिल्म उद्योग के निर्माताओं/निर्देशकों/अन्य हितधारकों की शिकायतों सहित लंबित सतर्कता मामलों को जल्द से जल्द निपटाने के लिए त्वरित कार्रवाई करें और समिति को इसके बारे में अवगत करायें. शिकायत निवारण के लिए एकल खिड़की/मंच होने और शिकायत निवारण के लिए हेल्पलाइन नंबर के साथ शिकायत की प्रत्येक श्रेणी के निवारण के लिए एक समय सीमा निर्धारित करने और अध्यक्ष या क्षेत्रीय अधिकारी से मिलने का समय मांगने वाले किसी भी पीड़ित पक्ष के लिए इससे स्थिति में सुधार होगा.

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