श्री विष्णु जी की आरती
जय वृहस्पति देवा,ऊँ जय वृहस्पति देवा .
छिन छिन भोग लगाऊँ, कदली फल मेवा ॥
ऊँ जय वृहस्पति देवा, जय वृहस्पति देवा ॥
तुम पूरण परमात्मा,तुम अन्तर्यामी .
जगतपिता जगदीश्वर,तुम सबके स्वामी ॥
ऊँ जय वृहस्पति देवा,जय वृहस्पति देवा ॥
चरणामृत निज निर्मल,सब पातक हर्ता .
सकल मनोरथ दायक,कृपा करो भर्ता ॥
ऊँ जय वृहस्पति देवा,जय वृहस्पति देवा ॥
तन, मन, धन अर्पण कर,जो जन शरण पड़े .
प्रभु प्रकट तब होकर,आकर द्घार खड़े ॥
ऊँ जय वृहस्पति देवा,जय वृहस्पति देवा ॥
दीनदयाल दयानिधि,भक्तन हितकारी .
पाप दोष सब हर्ता,भव बंधन हारी ॥
ऊँ जय वृहस्पति देवा,जय वृहस्पति देवा ॥
सकल मनोरथ दायक,सब संशय हारो .
विषय विकार मिटाओ,संतन सुखकारी ॥
ऊँ जय वृहस्पति देवा,जय वृहस्पति देवा ॥
जो कोई आरती तेरी,प्रेम सहित गावे .
जेठानन्द आनन्दकर,सो निश्चय पावे ॥
ऊँ जय वृहस्पति देवा,जय वृहस्पति देवा ॥
सब बोलो विष्णु भगवान की जय .
बोलो वृहस्पतिदेव भगवान की जय ॥