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भुईंया घटवाल समाज को सरकार से हक-हकूक चाहिए

यहां तक कि अनुसूचित जनजाति की श्रेणी पाने के जिद्दजेहद में ये लोग वर्षों से प्रयासरत हैं. द्रविड़ रेस के भूमिज समुदाय का वासोवास प्रमुखता से झारखंड और बिहार के अलावे पश्चिम बंगाल, असम, ओड़िशा व छत्तीसगढ़ में है

श्यामानंद ‘वत्स’

पोड़ैयाहाट, गोड्डा

द्रविड़ियन मूल के भूमिज लोगों की एक बड़ी आबादी झारखंड के संथाल परगाना में, सदियों से है. खतियानी नाम ‘भूमिज’ से ज़ाहिर है कि जो भूमि से पल -बढ़ रहा हो. इस समुदाय की उपजातियों में भूईंया, खेतौरी, घटवाल, घटवार, क्षत्रिय, सूर्यवंशी, सूर्यवंशी- क्षत्रिय, सूर्यवंशी- राजपूत, बघेल- राजपूत, ठाकुर व बबुआन आदि प्रमुख रूप से शामिल है. इज्जतदार स्वभाव के ये लोग आजादी से पहले शान व शौकत से जीते थे, इनके ‘स्टेट’ हुआ करते थे. पर प्रकारांतर से स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद इनकी हालत पिछड़ती चली गयी.

यहां तक कि अनुसूचित जनजाति की श्रेणी पाने के जिद्दजेहद में ये लोग वर्षों से प्रयासरत हैं. द्रविड़ रेस के भूमिज समुदाय का वासोवास प्रमुखता से झारखंड और बिहार के अलावे पश्चिम बंगाल, असम, ओड़िशा व छत्तीसगढ़ में है. आबादी लाखों में है. आजादी के पूर्व ये जमींदार हुआ करते थे, लेकिन अब ये भयंकर गरीबी, अशिक्षा एवं सामाजिक-आर्थिक व राजनीतिक तौर पर पिछड़ापन के शिकार हैं. इनकी असल तिजोरी ‘भूमि’ है ,जो आबादी बढ़ने के साथ-साथ बंटती चली गयी.

नतीजतन, जोत छोटी होने तथा खेती अलाभकर होने से, इनकी माली हालत पिछड़ती गयी. अन्यथा कभी ये भूमि पर आश्रित होने से प्रतिष्ठित भूईंया -बबुवान कहलाते, खेती-बाड़ी की जोत आवाद करने से खेतौरी तथा बलिष्ट होने एवं घाट-बाट की रखवाली करने से घटवाल या घटवार कहलाते थे. संथाल परगना काश्तकारी अधिनियम के चलते ये गाढ़े वक्त में भी अपनी जमीन बेच नहीं सकते.

आखिरी पंक्ति में खड़े लोगों की असली तस्वीर देखनी हो तो भारत के सुदूर देहाती क्षेत्रों में रहने वाले भूमिजों को देखिये. दुर्दशा का आलम यह है कि सन् 1952 तक यह समाज ‘अनुसूचित जनजाति की श्रेणी’ में शामिल था, लेकिन कहा जाता है कि विभागीय बाबूओं की लापरवाही से पूर्ण अर्हता के बावजूद भी, ‘एसटी श्रेणी’ से इन्हें वंचित होना पड़ा.

1956 में इस समुदाय को पिछड़ी जाति एनेक्सर -2 में डाल दिया गया. तभी से भूमिज समुदाय मौलिक अधिकारों की लड़ाई लड़ रहे हैं. मौजूदा परिस्थिति में भूईया- घटवाल के जुझारू व प्रबुद्ध नेता राजेश सिंह जहां क़ानूनी धरातल पर लड़ाई लड़ रहे हैं, वहीं अर्जुन राय, गिरिजानंद राय, जीडी सिंह, देवेन्द्र सिंह, इंद्रदेव सिंह, सीताराम राय आदि सामाजिक-राजनीतिक तौर पर संघर्षरत हैं.

आश्चर्य है, संसद में भूमिजों के हक़- हकूक के लिए सांसद डॉ निशिकांत दुबे व दूसरों के द्वारा आवाज बुलंद किये जाने का कोई नतीजा अबतक हाथ नहीं आ पाया. ज्ञातव्य है कि संताल परगना के क्षेत्र में संतालों से भी पहले के इन वाशिंदों को आरक्षण के लाभ से वंचित रहना पड़ रहा है. भूईंया घटवाल के वनाश्रित जीवन की दुरुहता, इस बात से जाहिर है कि आज भी हाट बाजार में भूमिज समाज की औरत- मर्द हस्तनिर्मित पत्तों की थाल, दोना, दतुवन, केंदुपत्ता, केन, तूत,

शरीफा, तार का पंखा, तारकुन, जलावन की लकड़ी, जंगली साग-सब्जी, बांस आदि वनोपज बेच- बेच कर किसी तरह जीवन बसर कर रहे हैं. बिजनस- व्यापार प्रायः जानते नहीं, नौकरी पेशा की सलाहियत है नहीं, नतीजतन, पत्थर तोड़ने जैसे श्रम-साध्य काम करना पड़ रहा है. आदिम संस्कार के भूमिजों के पूजा-पाठ और पर्व-त्योहार भी कुछ अलहदा किस्म के हैं, जैसे कर्मा को ये खूब सलीके से मनाते हैं. सूर्य पूजा, पहाड़ पूजा, जंगल पूजा और पिण्डा पूजा बहुतायत में करते हैं. मरंगबुरु इनके इष्टदेव हैं. देवान ठाकुर मुख्य देवता हैं. कुल मिलाकर ये लोग प्रकृति के अनन्य उपासक हैं.

संथाल परगना के सभी जिलों में इनकी खासी आबादी है. छोटानागपुर खासकर गिरिडीह, धनबाद आदि में इस विरादरी की सघन आबादी है . आज़ादी से पूर्व के “घटवाली स्टेट” की आज भी चर्चा है. यहां पूर्व में तीन स्टेट हुआ करते थे. एक घटवाली स्टेट, जिसमें पथरोल स्टेट, लक्ष्मीपुर स्टेट, सारवां स्टेट, मटिहानी स्टेट, पुनासी स्टेट, बुढ़ई स्टेट और गुमरी स्टेट शामिल थे.

दूसरा, खेताऊरी स्टेट जिनमें हंडवा स्टेट, बारकोप स्टेट और चंदवा स्टेट प्रख्यात थे, और तीसरे पहाड़िया स्टेट, जिनमें दामिन क्षेत्र के गांदो स्टेट प्रमुख थे. मालगुजारी वसूलना और दरभंगा राज को पहुंचाना और अपने क्षेत्र की रियाया के सुख दुख में शामिल होना, मुख्य कार्य होते थे.

विदित है कि भूमिज लोग मैक्फरशन और गैंजर सेटलमेंट से आगे से जमीन के मालिक हैं. फिर भी इनमें भारी पिछड़ापन मौजूद है. उपर से सरकार ‘एसटी का दर्जा’ नहीं दे रही, न जाने कब इनके भाग्य बहुरेंगे. प्राचार्य जीडी सिंह सरीखे कई जीवट लोग समाज को शैक्षिक तौर पर समुन्नत करने की भरसक चेष्टारत हैं. कुछ सम्पन्न लोग अपने बच्चों को पढ़ा लिखा रहे हैं. इसके अतिरिक्त सामाजिक धारणा भी विकसित होने लगी है.

राजनीतिक चेतना भी आ रही है. सन् 2000 में झारखंड राज्य अस्तित्व में आया, लेकिन उससे काफी पहले से भूईंया घटवाल समुदाय के लोग सामाजिक संगठन के सहारे संघर्षरत थे. इनकी सरकार से एकमात्र मांग अनुसूचित जनजाति श्रेणी में शामिल करने की है . इसके अभाव में छात्रों को जाति प्रमाणपत्र तक नहीं मिल रहे थे ,आरक्षण तो दूर की बात थी. एतदर्थ , सबसे पहले सन् 2000 ईस्वी में घटवारी चौक के करीब प्रधान महाबीर सिंह की अध्यक्षता में एक व्यापक मीटिंग हुई.

छात्र युवा संगठन की स्थापना हुई जिसमें गजाधर सिंह, राजेश सिंह , खूबलाल राय, इंद्रदेव सिंह ,और संरक्षक कालेश्वर सिंह (निमातांड ) का नेतृत्व स्वीकारा गया. झारखंड बनने के बाद चूंकि घटवाल समाज अलग प्रांत के आंदोलन में अहम भूमिका में था, इसलिए झारखंड सरकार से काफ़ी उम्मीदें बांधी थी कि सरकार “एसटी श्रेणी ” हेतु अनुशंसा आसानी से करेगी. किन्तु विलंब होते देख आदिम जनजाति समूह संघर्ष मोर्चा के बैनर तले 13 जून 2013 को झारखंड बंद की घोषणा की गयी. जिसमें पोड़ैयाहाट के घटवारी चौक पर सड़क जाम में हजारों लोग जुट गये. वाहनों की दोनों तरफ लंबी-लंबी कतारें ख़डी हो गयीं.

आंदोलनकारी वहां डीप्यूट मजिस्ट्रेट की एक नहीं सुन रहे थे. बात बिगड़ने पर पुलिस की गोली चली और चपेट में भरना टोला की तारामनी आ गयी. मौत से आक्रोशित उग्र भीड़ से बचते हुए बीडीओ भाग खडे हुए. भीड़ ने जीप को आग के हवाले कर दिया. 1988 से लगातार कई वर्षों तक पोड़ैयाहाट में संघर्ष मोर्चा का प्रदर्शन और मीटिंगें होती रही. प्रदर्शन में नर-नारियों के हाथों में पारम्परिक हथियार हुआ करते थे. केंद्रीय नेतृत्व में राजेश सिंह और विशेष सक्रिय लोगों में लक्ष्मी नारायण सिंह, बरियार राय,

सीताराम राय, (सतपहाड़ी) गजाधर सिंह, (कमराबांध) सहदेव सिंह, (दीपना) नवलकिशोर सिंह, महादेव राय, बास्की राय आदि शामिल होते. महागामा के जीवन राय और रामदयाल राय, केदार सिंह, नकुलराय (पथरगामा ) दिगंबर सिंह (तेतरिया ) बलरामराय (कारूडीह )आदि अग्रिम पंक्ति के सेना नायकों में थे. झारखंड के पैमाने पर कई सभाएं भूमिज समाज की होती रहतीं हैं, जिनमें गंदुआ (धनबाद ), मारगोमुण्डा आदि खास रहे हैं.

विदित है कि संगठन के नाम अलग अलग जगह पर कुछ कुछ अलग भी रहे हैं. इन बैठकों व सभाओं में जीडी सिंह अपने साथियों के साथ शिरकत करते रहे हैं. उल्लेख्य है कि संगठन जब मज़बूत हुए तो हरिनारायण राय झारखंड प्रान्त बनने पर इस समाज के पहले विधायक बने. उनसे बहुत पहले अविभाजित बिहार में कांग्रेस से खड़गधारी नारायण सिंह और काली प्रसाद सिंह (जामताड़ा) विधायक बन चुके थे.

राजनीति तौर पर विधायकी की रेस में काशीनाथ सिंह (बेरमो ), मनभरण राय (देवघर), देवेंद्र नाथ सिंह (पोड़ैयाहाट) गजाधर सिंह (पोड़ैयाहाट) आदि शामिल हुए, किन्तु सफलता हाथ नहीं लग पायी. बहरहाल , भूमिज समुदाय अपनी विपन्नता के मद्देनजर सरकार से अनुसूचित जनजाति की श्रेणी में शामिल होने की गुहार लगाती रही है, सम्प्रति सरकार को चाहिए कि इनकी वाजिब मांगों को प्रतिपूर्ति करे.

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