Gyanvapi Survey: उत्तर प्रदेश के वाराणसी स्थित ज्ञानवापी मामले में एएसआई सर्वे जारी रहने से मुस्लिम पक्ष को एक बार फिर झटका लगा है. सुप्रीम कोर्ट ने उसकी दलीलों को खारिज करते हुए अपने आदेश में एएसआई के हलफनामे को अहम आधार बनाया, जिसमें कहा गया है कि सर्वेक्षण में इस बात का पूरा ख्याल रखा जाएगा कि परिसर को किसी तरह का नुकसान नहीं पहुंचे. इसके साथ ही मौके पर कोई खुदाई नहीं की जाएगी.
न्यायालय ने ज्ञानवापी मस्जिद का प्रबंधन करने वाली अंजुमन इंतजामिया मस्जिद कमेटी के इलाहाबाद हाईकोर्ट के आदेश को चुनौती देने वाली याचिका का अब निपटारा कर दिया है. इसलिए फिलहाल एएसआई सर्वे को लेकर मामला कोर्ट में लंबित नहीं है. हालांकि ज्ञानवापी का विवाद सिर्फ इतने तक नहीं सीमित है. इस प्रकरण में कई मामले विभिन्न अदालतों में चल रहे हैं, जिनकी अलग अलग तारीखों पर सुनवाई होनी है.
चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस जेबी पारदीवाला और जस्टिस मनोज मिश्रा की पीठ ने पारित आदेश में कहा कि सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने एएसआई की ओर से स्थिति स्पष्ट की है. इसमें कहा गया है कि संपूर्ण सर्वेक्षण, स्थल पर किसी भी खुदाई के बिना और संरचना को कोई नुकसान पहुंचाए बिना पूरा किया जाएगा.
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पीठ ने आदेश में कहा कि सीपीसी के आदेश 26 नियम 10ए के तहत पारित ट्रायल जज के आदेश को इस स्तर पर प्रथम दृष्टया क्षेत्राधिकार के बाहर नहीं कहा जा सकता है. पीठ ने साफ किया कि अदालत की ओर से नियुक्त आयुक्तों की प्रकृति और दायरे को ध्यान में रखते हुए हम हाईकोर्ट के दृष्टिकोण से अलग होने में असमर्थ हैं, खासकर अनुच्छेद 136 के तहत अधिकार क्षेत्र में ऐसा नहीं किया जा सकता.
इस दौरान एएसआई की अंडरटेकिंग के अलावा सुप्रीम कोर्ट ने निर्देश दिया कि एएसआई सर्वेक्षण बिना किसी नुकसान पहुंचाने वाली प्रक्रियाओं के माध्यम से किया जाना चाहिए. एएसआई की तैयार की गई रिपोर्ट ट्रायल कोर्ट को भेजी जाएगी और उसके बाद जिला न्यायाधीश द्वारा पारित किए गए निर्देशों का पालन किया जाएगा.
पीठ ने मस्जिद समिति की ओर से दायर दो विशेष अनुमति याचिकाओं (एसएलपी) पर विचार के दौरान ये टिप्पणी की. पहली हाईकोर्ट के उस आदेश के खिलाफ दायर की गई थी, जिसमें सीपीसी के आदेश 11 नियम 11 के तहत दायर उनकी याचिका को खारिज कर दिया गया था.
दूसरी एसएलपी में एएसआई को संरचना के सर्वेक्षण की अनुमति देने वाले आदेश के खिलाफ याचिका दायर की गई. आदेश 7 नियम 11 मुद्दे के संबंध में पहली एसएलपी पर पीठ ने हिंदू वादी को नोटिस जारी किया और मामले को बाद की तारीख पर सुनवाई के लिए पोस्ट किया. एएसआई के उपक्रम को दर्ज करते हुए, दूसरे एसएलपी का निपटान ऊपर उल्लिखित निर्देशों के अनुसार किया गया था.
जब मामला उठाया गया तो सीजेआई चंद्रचूड़ ने याचिकाकर्ताओं के वकील सीनियर एडवोकेट हुजेफा अहमदी से कहा कि हाईकोर्ट ने एएसआई के हलफनामे को रिकॉर्ड पर ले लिया है, जिसमें कहा गया है कि वे कोई खुदाई नहीं कर रहे हैं.
इस पर अहमदी ने तर्क दिया कि यह प्रक्रिया पूजा स्थल (विशेष प्रावधान) अधिनियम 1991 द्वारा वर्जित है. सर्वेक्षण का आदेश देकर और इतिहास में पीछे जाकर कि 500 साल पहले क्या हुआ था, क्या आप पूजा स्थलों से संबंधित अधिनियम का उल्लंघन नहीं कर रहे हैं. सीजेआई ने कहा कि मुकदमे के सुनवाई योग्य होने से संबंधित मुख्य मामले की सुनवाई करते समय इस मुद्दे पर विचार किया जाएगा. अहमदी ने आग्रह किया कि सर्वेक्षण पूरी तरह से भाईचारे, धर्मनिरपेक्षता और पूजा स्थल अधिनियम की वस्तुओं के बयानों पर प्रभाव डालता है.
इस पर सीजेआई ने कहा कि यह एक अंतरिम आदेश है. सुप्रीम कोर्ट को इसमें हस्तक्षेप क्यों करना चाहिए? हम रखरखाव, आयोग के सबूतों पर आपत्तियों से संबंधित सभी मुद्दों को खुला रखेंगे. ये ऐसे मामले हैं, जिन पर अंततः मुकदमे में बहस होनी चाहिए. सीजेआई ने कहा कि यहां तक कि अयोध्या मामले में, एएसआई सर्वेक्षण के साक्ष्य मूल्य पर बहुत तर्क दिया गया था. ये ऐसे मुद्दे हैं जिन्हें अंतिम सुनवाई में संबोधित किया जाना है कि सर्वेक्षण का साक्ष्य मूल्य क्या है. हम संरचना की रक्षा करेंगे.
इस पर अहमदी ने पूछा कि क्या आप एएसआई से सर्वेक्षण करने के लिए कहेंगे. उन्होंने तर्क दिया कि अगर मैं यह मामला बनाता हूं कि मुकदमा चलने योग्य नहीं है, तो सर्वेक्षण का सवाल कहां है? मैं कह रहा हूं कि जब रखरखाव पर गंभीर संदेह हो तो सर्वेक्षण नहीं करें.
सीजेआई ने हालांकि कहा कि सिविल कोर्ट की अंतरिम आदेश पारित करने की शक्ति केवल इसलिए वर्जित नहीं है क्योंकि सुनवाई योग्य होने पर सवाल उठाया गया है. उन्होंने बताया कि दो अदालतों ने मुकदमे की स्थिरता के पक्ष में फैसला दिया है. सीजेआई ने आश्वासन दिया कि हम संरचना की रक्षा करके आपकी चिंताओं की रक्षा करेंगे.
सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि कोई खुदाई नहीं की जाएगी और एएसआई हाईकोर्ट के समक्ष अपनाए गए रुख का पालन करेगा. अहमदी ने ऐतराज जताते हुए कि इस तरीके को सही नहीं ठहराया. उन्होंने कहा कि ये पूरी प्रक्रिया ऐसी है कि आप अतीत के घावों को फिर से खोल रहे हैं. जब आप एक सर्वेक्षण शुरू करते हैं, तो आप अतीत के घावों को उजागर कर रहे हैं. यह वही चीज है जिसे पूजा स्थल प्रतिबंधित करना चाहते हैं.
अहमदी ने अपने तर्कों को देते हुए हवाला दिया कि इसी तरह का आदेश 1991 में दायर एक मुकदमे में पारित किया गया था, जिस पर हाईकोर्ट ने रोक लगा दी थी. उन्होंने कहा कि (1994) 2 एससीसी 48 के रूप में रिपोर्ट किए गए आदेश में संरचना के संबंध में यथास्थिति बनाए रखने के लिए सुप्रीम कोर्ट द्वारा पहले एक आदेश पारित किया गया था.
इसके अलावा मस्जिद के अंदर ‘शिवलिंग’ होने का दावा करने वाली संरचना की कार्बन-डेटिंग की अनुमति देने वाले आदेश के खिलाफ एक अलग एसएलपी दायर की गई है, जिसे मई में सुप्रीम कोर्ट ने स्थगित रखा था.
इसके साथ ही अहमदी ने पीठ का ध्यान उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के कुछ दिन पहले दिए गए एक बयान की ओर भी आकर्षित किया. ये बयान तब दिया गया, जब मामला लंबित था. उन्होंने मुख्यमंत्री के बयान वाला एक पेपर कोर्ट को सौंपा और उसे कोर्ट में नहीं पढ़ा. अहमदी ने कहा कि यह बेहद दुर्भाग्यपूर्ण था. मुख्यमंत्री ने यह बयान तब दिया जब मामला काफी गर्म था और लंबित था. राज्य को तटस्थ और गैर-पक्षपातपूर्ण माना जाता है.
इस बीच ज्ञानवापी परिसर में एएसआई सर्वे की प्रक्रिया शुक्रवार को समय पूरा होने के बाद रोक दी गई. शनिवार सुबह सात बजे से सर्वे फिर शुरू किया जाएगा. सर्वे के कारण विश्वनाथ मंदिर परिक्षेत्र में चप्पे-चप्पे पर चौकसी बरती जा रही है. इस मामले में सुप्रीम कोर्ट ने मुस्लिम पक्ष की याचिका को खारिज करते हुए एसएसआई सर्वे पर रोक लगाने से इनकार कर दिया है.
इस मामले में एएसआई सर्वे रिपोर्ट चार अगस्त को जिला जज डॉ. अजय कृष्ण विश्वेश की अदालत में पेश करना था. लेकिन, मामला कोर्ट के पेंच में फंस गया. इसलिए शुक्रवार को हुई सुनवाई में एएसआई ने रिपोर्ट दाखिल करने के लिए चार सप्ताह की मोहलत मांगी. कोर्ट में पेश हुए एएसआई के अधिवक्ता अमित श्रीवास्तव ने कहा कि जिला जज डॉ. अजय कृष्ण विश्वेश की अदालत ने ज्ञानवापी की मौजूदा संरचना को नुकसान पहुंचाए बगैर एएसआई को सर्वे का आदेश देकर चार अगस्त तक रिपोर्ट देने को कहा था.
इस बीच वाराणसी में ज्ञानवापी को लेकर इंतजामिया कमेटी की रिवीजन याचिका पर अब 10 अगस्त को बहस होगी. इसमें ज्ञानवापी परिसर हिंदुओं को सौंपने की मांग की गई है.
ज्ञानवापी परिसर में हिंदुओं को सौंपने सहित तीन मामलों में सिविल जज के आदेश के खिलाफ अंजुमन इंतजामिया कमेटी की ओर से जिला अदालत में दाखिल रिवीजन याचिका पर शुक्रवार को सुनवाई टल गई. जिला जज डॉ. अजय कृष्ण विश्वेश की अदालत ने इस मामले में बहस के लिए अगली तिथि 10 अगस्त तय की है.
प्रकरण के मुताबिक ज्ञानवापी परिसर हिंदुओं को सौंपने, बरामद शिवलिंग की पूजा करने का अधिकार देने और मुस्लिमों का प्रवेश प्रतिबंधित करने की मांग करते हुए किरन सिंह ने अदालत में वाद दाखिल किया था. इस वाद पर अंजुमन इंतजामिया कमेटी की तरफ से वाद की पोषणीयता को चुनौती दी गई.
दोनों पक्षों की बहस सुनने के बाद सिविल जज ने 17 नवंबर 2022 को वाद को सुनवाई योग्य पाते हुए अंजुमन इंतजामिया कमेटी की आपत्ति को खारिज कर दिया. सिविल जज के इस आदेश को चुनौती देते हुए जिला जज की अदालत में अंजुमन इंतजामिया की ओर से रिवीजन याचिका दायर की गई.
किरन सिंह के अधिवक्ता मानबहादुर सिंह ने दलील में कहा कि जिला जज को यह रिवीजन सुनने का अधिकार नहीं है. जिस पर कोर्ट ने कहा कि यह सिविल जज के कोर्ट के आदेश के खिलाफ रिवीजन याचिका दाखिल है. ऐसे में कोर्ट को सुनवाई का अधिकार है. इसी के साथ कोर्ट ने अंजुमन इंतजामिया कमेटी को बहस करने के लिए 10 अगस्त की तिथि तय कर दी.