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बिहार का 27% इलाका है बाढ़ ग्रस्त, पांच जिलों में हर साल आता है सैलाब

बाढ़ का 75 फीसदी इलाका उत्तरी बिहार में है. ये तथ्य आइसीएआर (भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद का पूर्वी अनुसंधान परिसर) पटना की ओर से डेवलप किये गये हाइ रिजाॅल्यूशन मैप में सामने आये हैं. इसके माध्यम से बाढ़ प्रभावित क्षेत्रों को पांच वर्गों में विभाजित किया गया है.

रिपोर्ट: मनोज कुमार

पटना. बिहार के कुल 94 हजार 163 स्कवायर किलोमीटर में से 26हजार 073 स्कवायर किलोमीटर क्षेत्र में बाढ़ आता है. इसमें दरभंगा, मुजफ्फरपुर, समस्तीपुर, पूर्वी चंपारण और खगड़िया के सर्वाधिक बाढ़ग्रस्त क्षेत्र हैं. राज्य का लगभग 27.5 फीसदी इलाका बाढ़ से प्रभावित होता है. 525 स्कवायर किलोमीटर क्षेत्र में हर साल बाढ़ आता है. इसमें कुछ एरिया को छोड़कर अधिकांश में बहुत खतरे वाली स्थिति नहीं होती है. बाढ़ का 75 फीसदी इलाका उत्तरी बिहार में है. ये तथ्य आइसीएआर (भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद का पूर्वी अनुसंधान परिसर) पटना की ओर से डेवलप किये गये हाइ रिजाॅल्यूशन मैप में सामने आये हैं. इसके माध्यम से बाढ़ प्रभावित क्षेत्रों को पांच वर्गों में विभाजित किया गया है. इन क्षेत्रों में बाढ़ के दौरान भी खेती की क्या संभावनाएं हैं, इसकी योजना भी बतायी गयी है. हालांकि, इस साल फिलहाल बिहार में बाढ़ जैसी स्थिति नहीं है.

तीव्रता के आधार पर पांच वर्गों में बांटे गये बाढ़ प्रभावित एरिया

शोध पत्र में बाढ़ प्रभावित क्षेत्रों को पांच वर्गों में बांटा गया है. 525 स्कवायर किलोमीटर में बाढ़ की गति अति तीव्र, 804 में तीव्र, 2461 में मध्यम तीव्र, 5738 में निम्न तीव्र तथा 16544 स्कवायर किलोमीटर क्षेत्र में अति निम्न तीव्रता का बाढ़ आता है. अति तीव्र वाले एरिया में हर साल बाढ़ आता है. इसमें अति तीव्र और तीव्र गति वाले एरिया में बाढ़ की गहराई 1.50 मीटर से अधिक होती है. इस कारण इन क्षेत्रों में धान की खेती की संभावना न के बराबर है.

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2461 स्कवायर किमी में 53 फीसदी तक बर्बाद हो जाता है धान

राज्य में 2461 स्कवायर किलोमीटर क्षेत्र मध्यम गति के बाढ़ जोन में है. इस इलाके में 14 से 53 फीसदी धान की खेती को नुकसान होता है. निम्न तीव्र के 5738 तथा अति निम्न के 16544 स्कवायर किलोमीटर वाले बाढ़ क्षेत्र में चिंताजनक स्थिति नहीं होती है. इन दोनों एरिया में धान की खेती को नुकसान नहीं होता है. तीव्र और अति तीव्र वाले बाढ़ प्रभावित एरिया में बागवानी फसल लगाने की योजना बनायी जा सकती है. मध्यम तीव्र वाले बाढ़ प्रभावित एरिया में मछली पालन भी किया जा सकता है.

बाढ़ प्रबंधन कार्य में मिलेगी सहायता

वैज्ञानिक डॉ अकरम अहमद ने बताया कि आइसीएआर के भूमि व जल प्रबंधन विभाग के प्रमुख डॉ आशुतोष उपाध्याय के गाइडेंस में यह कार्य किया गया है. इस प्रोसेस में कई गांवों का स्पॉट निरीक्षण किया गया. इसके आधार पर शोध की आकलन रिपोर्ट तैयार की गयी. वहीं, आइसीएआर के निदेशक डॉ अनुप दास ने बताया कि इस कार्य से बिहार में बाढ़ प्रबंधन के कार्य में सहायता मिलेगी. इससे आपदा के दौरान आजीविका की बेहतर प्लानिंग हो पायेगी.

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उत्तर बिहार आठ प्रमुख नदियां

  • घाघरा

  • गंडक

  • बूढ़ी गंडक

  • बागमती

  • कमला

  • भुतही बलान

  • कोसी

  • महानंदा

बाढ़ का कारण क्या है?

नेपाल की मध्य पहाड़ियों में जंगलों का कृषि और चारागाह भूमि में रूपांतरण बढ़ गया है, जो भारत में बाढ़ से होने वाले नुकसान में महत्वपूर्ण योगदान देता है. 1950 से 1980 के दशक तक सप्त कोसी में वार्षिक अपवाह में वृद्धि हुई, लेकिन बेसिन के कई स्टेशनों पर वर्षा में भी तदनुसार वृद्धि हुई.

बाढ़ से होने वाली क्षति का एक अन्य कारण यह है कि लोग तेजी से बाढ़ के मैदानों पर कब्जा कर रहे हैं और यह मान रहे हैं कि नदी की मात्रा काफी हद तक बढ़ गई है.

राज्य सरकार ने लगभग 3000 किलोमीटर लंबे तटबंध बनाए हैं, लेकिन नदी का प्रवाह 2.5 गुना बढ़ गया है, जिसके परिणामस्वरूप हर बाढ़ में तटबंध टूट जाते हैं.

राज्य में कई संरचनात्मक उपाय किये जा सकते हैं

निरोध बेसिन : राज्य क्षेत्र में कई अवसाद हैं जिन्हें स्थानीय रूप से चौर कहा जाता है जो निरोध बेसिन के रूप में कार्य करते हैं. ये चौर मौसम की पहली बाढ़ का काफी मात्रा में पानी सोख लेते हैं. किसी भी मानव निर्मित निरोध बेसिन या प्राकृतिक चौर में सुधार नहीं किया गया है.

तटबंध : राज्य में सभी नदियों के तटबंध बनाये गये हैं. कोसी नदी दोनों तरफ तटबंधित है, लेकिन इन तटबंधों में कुछ अंतराल हैं जो इसकी प्रभावशीलता को कम कर देते हैं. इन तटबंधों के रख-रखाव एवं मरम्मत पर अवश्य ध्यान दिया जाना चाहिए.

चैनल सुधार : यह सामान्य अभ्यास नहीं है.

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