राज्य सरकार ने वित्तीय वर्ष में 2021-22 में घाटा कम दिखाने के लिए सही वित्तीय आंकड़ा नहीं दिया. 74वें संविधान संशोधन के कार्यान्वयन के अनुरूप राज्य वित्त आयोगों का गठन देर से किया गया. चार आयोग में से सिर्फ एक ने ही अपनी अनुशंसा भेजी. ड्रेनेज-सीवरेज और हरमू नदी जीर्णोद्धार की योजनाओं में बड़े पैमाने पर गड़बड़ी पायी गयी. राज्य सरकार द्वारा अपने निगमों में किये गये निवेश का कोई लाभ नहीं मिला.
प्रधान महालेखाकार उदय शंकर प्रसाद ने विधानसभा में ऑडिट रिपोर्ट पेश किये जाने के बाद आयोजित प्रेस वार्ता में ये बातें कही. राज्य सरकार के वित्तीय प्रबंधन का उल्लेख करते हुए श्री प्रसाद कहा कि वित्तीय वर्ष 2021-22 के दौरान सरकार ने 6943.94 करोड़ रुपये का राजस्व सरप्लस और 2604.21 करोड़ रुपये का राजकोषीय घाटा बताया. हालांकि, ऑडिट के दौरान सरकार द्वारा दिये गये आंकड़े सही नहीं पाये गये.
ऑडिट में यह पाया गया कि 6611.08 करोड़ का सरप्लस रेवेन्यू था और 2937.07 करोड़ का राजकोषीय घाटा हुआ. वित्तीय वर्ष 2021-22 के अंत में सरकार पर कुल देनदारी 1.10 लाख करोड़ रुपये का हो गया. वित्तीय वर्ष 2001-02 से 2020-21 तक की अवधि में विभिन्न मदों में किये गये बजटीय प्रावधान के मुकाबले 3473.63 करोड़ रुपये का अधिक खर्च हुआ, लेकिन विधानसभा से इसे नियमित नहीं किया गया है.
यह संवैधानिक प्रावधानों का उल्लंघन है. सरकार ने 31 मार्च 22 तक 10,3459.14 करोड़ रुपये के खर्च का उपयोगिता प्रमाण पत्र नहीं दिया है. जिसमें अरबन लोकल बॉडिज, टीआरआइ, ग्रामीण विकास विभाग, प्राथमिक शिक्षा द्वारा उपयोगिता प्रमाण पत्र नहीं दिया गया है. ग्रामीण विकास विभाग के पास 14400 करोड़ और प्राथमिक शिक्षा के पास 6400 करोड़ का उपयोगिता प्रमाण पत्र बकाया है.
प्रधान महालेखाकार ने कहा कि झारखंड बिजली वितरण निगम लिमिटेड (जेबीवीएनएल) टेंडर के नियमों का पालन नहीं कर रहा है. नॉमिनेशन पर ही ज्यादा टेंडर दे रहा है, जो गलत है. जेबीवीएनएल द्वारा निर्धारित समय सीमा में काम नहीं किये जाने की वजह से बिजली से जुड़ी आधारभूत संरचनाओं का निर्माण नहीं हो पा रहा है.