Explainer: उत्तर प्रदेश के झांसी जनपद में एक बेटे ने कमरे में सो रहे शिक्षक पिता और मां की लोहे के तवे और डंडे से पीट-पीटकर हत्या कर दी. युवक पबजी गेम की लत में फंसकर अपना मानसिक संतुलन खो बैठा था. वह कई दिनों से मोबाइल पर गेम खेल रहा था. इस पर पिता ने उससे मोबाइल छीनकर घर में छुपा दिया. इसके बाद रात में युवक ने सोते माता पिता को मौत के घाट उतार दिया.
मृतकों में बंगरा निवासी 58 वर्षीय लक्ष्मी प्रसाद झा और उनकी 55 वर्षीय पत्नी विमला शामिल हैं. लक्ष्मी प्रसाद झा पलरा स्थित प्राथमिक विद्यालय में प्रधानाचार्य थे. वह अपनी पत्नी और एकलौते बेटे 28 वर्षीय अंकित के साथ पिछोर में रहते थे. तीन बेटियों में बड़ी बेटी नीलम एवं सुंदरी की शादी हो चुकी है, जबकि छोटी बेटी शिवानी यूपी के उरई में रहकर पढ़ाई करती है.
झांसी के एसएसपी राजेश एस ने बताया कि अब तक की पड़ताल और गिरफ्तार अंकित से पूछताछ में उसने अपना जुर्म कबूल कर लिया है. अंकित के मुताबिक रात को करीब दो बजे अचानक वह कमरे में आया. उसने हाथ में लोहे का तवा लिया हुआ था. इसी तवे से अपने पिता लक्ष्मी प्रसाद के चेहरे एवं सिर पर कई वार कर दिए. चीख पुकार सुनकर पास में सो रही मां विमला की आंख खुल गई. जैसे ही वह बीच-बचाव के लिए आगे आईं अंकित ने उनके ऊपर भी तवे और डंडे से हमला कर दिया.
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मां विमला भी खून से लथपथ होकर वहीं पर गिर पड़ी. लक्ष्मी प्रसाद की मौके पर ही मौत हो गई जबकि विमला गंभीर रूप से घायल हो गई. बाद में बेटी ने पिता को फोन किया तो रिसीव नहीं होने पर उसने पड़ोसी को जानकारी दी. इसके बाद जब वह उन्होंने किसी तरह से दरवाजा खोला तो देखा कि लक्ष्मीप्रसाद की मौत हो चुकी है और विमला की सांसें चल रही हैं. सूचना पर पहुंची पुलिस ने विमला को मेडिकल कालेज में भर्ती कराया जहां, इलाज के दौरान उनक भी मौत हो गई. पुलिस ने घर से ही आरोपी युवक अंकित को गिरफ्तार कर लिया.
पबजी और इस तरह के मोबाइल गेम्स को लेकर हिंसा का ये पहला मामला नहीं है. पहले भी इससे जुड़े हत्या और खुदकुशी के कई मामले यूपी सहित देश के अन्य हिस्सों में आ चुके हैं. लखनऊ में बीते वर्ष मोबाइल गेम खेलने से रोकने के कारण 16 साल के बच्चे ने न सिर्फ अपनी मां की ही हत्या कर दी थी, बल्कि शव को दो दिनों तक घर में छिपाकर भी रखा.
पबजी और इस तरह के अन्य मोबाइल गेम्स को विशेषज्ञ और अध्ययनकर्ता बड़े खतरे के तौर पर देखते हैं. भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन के पूर्व अध्यक्ष जी. माधवन नायर इस लेकर अहम टिप्प्णी कर चुके हैं. उनके मुताबिक पबजी की लत बच्चों के लिए किसी खतरनाक दुश्मन से कम नहीं है.
ऐसे गेम्स बच्चों में हर तरह के नकारात्मक सोच को बढ़ावा देते हैं, इतना कि बच्चों में समय के साथ आपराधिक मानसिकता पोषित होती चली जाती है. माता-पिता को इस बात का विशेष ध्यान रखना चाहिए कि बच्चे मोबाइल पर किस तरह के कंटेंट देख रहे हैं और इसका उनके जीवन में कैसा प्रभाव हो सकता है?
पीएमसी जर्नल में प्रकाशित एक अध्ययन के मुताबिक पबजी की लत, हत्या और आत्महत्या की प्रवृत्ति को बढ़ावा देती है. वैज्ञानिकों का कहना है कि किशोरों और वयस्कों में मनोवैज्ञानिक पूर्वाग्रह की स्थिति हो सकती है. इस तरह के वीडियोगेम्स पर दिन में कई घंटे बिताना मस्तिष्क की प्रवृत्ति को इस खेल के रूप में परिवर्तित करती जाती है. पबजी जैसे गेम्स आक्रामकता को बढ़ावा देते हैं ऐसे में इसकी लत गंभीर हो सकती है.
मनोचिकित्सकों के मुताबिक मोबाइल गेम्स के कारण बच्चों के व्यवहार में बीते कुछ वर्षों में बड़ा बदलाव देखने को मिला है. उनका व्यवहार आक्रामक हो गया है. दरअसल बालपन-युवावस्था में हम जिस तरह की चीजों का अधिक देखते, सुनते और पढ़ते हैं, उसका दिमाग पर सीधा असर होता है. पबजी गेम के साथ भी यही मामला है.
मनोचिकित्सकों के मुताबिक ये लत का कारण बन जाते हैं और एडिक्शन के कोर में व्यावहारिक परिवर्तन प्रमुख होता है. अगर घरवाले इसे अचानक से छुड़ाने की कोशिश करते हैं, तो यहां विड्रॉल की स्थिति में आ जाती है, उसी तरह जैसे अल्कोहल विड्रॉल होता है जिसमें अगर किसी शराबी से अचानक शराब छुड़वाई जाए तो उसके व्यवहार में आक्रामक परिवर्तन हो सकता है.
मनोचिकित्सक कहते हैं, बच्चे में ऑब्जर्वेशन लर्निंग की क्षमता अधिक होती है. बच्चे स्वाभाविक रूप से किसी चीज को समझने से ज्यादा चीजों को देखकर सीखने में अधिक निपुड़ता वाले होते हैं. ऐसे में अगर बच्चे का समय मोबाइल फोन पर अधिक बीत रहा है, साथ ही वह पबजी जैसे गेम्स पर अधिक समय बिता रहे हैं तो इसका सीधा असर मस्तिष्क को प्रभावित करता है.
दरअसल मोबाइल-वीडियो गेम्स का नेचर बच्चों को और प्रभावित करता है क्योंकि गेम खेलते समय उनका पूरा ध्यान टास्क पर होता है. ऐसे में अगर इसकी प्रवृत्ति हिंसात्मक, मार-पीट, गोली-बारी वाली है तो यह बच्चे के दिमाग को उसी के अनुरूप परिवर्तित करने लगती है.
रोज घंटों मोबाइल में इस तरह के गेम्स पर समय बिताने से बच्चों में इसकी लत लग जाती है. लत का मतलब, उस गेम के बिना वह रह नहीं पाते, इस दौरान जो भी उन्हें उस गेम से दूर करने की कोशिश कर रहा होता है, वह बच्चों का दुश्मन बन जाता है. इस तरह के विकारों से बच्चों को मुक्त रखने के लिए माता-पिता को बच्चों की मॉनिटरिंग करते रहना जरूरी हो जाता है. आप देखिए कि बच्चे कि तरह का व्यवहार कर रहे हैं, किस तरह के गेम्स खेल रहे हैं, उनका दूसरों के साथ व्यवहार कैसा है.
चिकित्सकों के मुताबिक मोबाइल फोन से बच्चों की बढ़ती दोस्ती उनके मानसिक स्वास्थ्य के लिए नुकसानदायक आदत है. साथ ही इससे शारीरिक समस्याओं का खतरा भी काफी बढ़ जाता है. आजकल पढ़ाई के लिए भले ही ये बेहद जरूरी माध्यम हो गया हो. लेकिन, इसके नुकसान भी बढ़ते जा रहे हैं.
चिकित्सकों के मुताबिक मोबाइल फोन पर बहुत अधिक समय बिताने के कारण बच्चों में शारीरिक निष्क्रियता बढ़ती जाती है, जो मोटापा और अन्य आंतरिक स्वास्थ्य जटिलताओं के जोखिम को बढ़ाती है. इसके अलावा अमेरिकन मेडिकल एसोसिएशन जर्नल के अनुसार, मोबाइल के अधिक इस्तेमाल से मस्तिष्क और शरीर के अन्य भागों पर गंभीर प्रभाव पड़ सकता है. मोबाइल फोन्स की लत को अध्ययनों में विशेषज्ञ कैंसर, मस्तिष्क पर नकारात्मक प्रभाव, ट्यूमर जैसी समस्याओं को बढ़ावा देने वाला मानते हैं.
इसके साथ ही मोबाइल पर ज्यादा समय बिताने वाले बच्चों में नींद की कमी और नींद की गुणवत्ता में गिरावट जैसी दिक्कतें अधिक देखने को मिली हैं. शोध से पता चलता है कि सेल फोन की नीली रोशनी मेलाटोनिन के उत्पादन में बाधा डालती है. मेलाटोनिन वह हार्मोन है जो नींद-जागने के चक्र को नियंत्रित करता है. जब यह हार्मोन असंतुलित हो जाता है, तो इसके कारण नींद संबंधित विकारों की शिकायत बढ़ जाती है.
बच्चों सहित सभी आयुवर्ग के लोगों में बढ़ते मोबाइल के इस्तेमाल को विशेषज्ञ मानसिक स्वास्थ्य के लिहाज से भी काफी हानिकारक मानते हैं. विशेषज्ञों के मुताबिक पहले के समय में बच्चे बाहर खेलते थे, प्रकृति के साथ जुड़ाव था, एक दूसरे से मिलते थे. वहीं अब मोबाइल ने इन सभी आदतों को सीमित कर दिया है. ऐसे में बच्चों में कई तरह की मानसिक स्वास्थ्य की समस्याएं विकसित होने लगी हैं.
किसी भी चीज की लत मस्तिष्क के रसायनों को प्रभावित करती है, इसी तरह मोबाइल की लत के कारण बच्चों में डोपामाइन न्यूरोट्रांसमीटर से संबंधित विकार बढ़ रहे हैं. डोपामाइन एक न्यूरोकेमिकल संदेशवाहक है, यह आपको रिवार्ड फील कराने वाले अनुभव देने में मददगार है. मोबाइल ने इस संदेशवाहक की गतिविधि को प्रभावित कर दिया है. यही कारण है कि एक दशक के पहले के बच्चों की तुलना में अब के बच्चे ज्यादा आक्रामक, झगड़ालू, सुस्त और बात-बात पर परेशान और चिड़चिड़े प्रवृत्ति वाले बनते जा रहे हैं.