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मोबाइल उपयोग सीमित करने की जरूरत

अब बच्चे किशोर, नवयुवक जैसी उम्र की सीढ़ियां चढ़ने के बजाए सीधे वयस्क बन जाते हैं. शारीरिक रूप से भले ही वे वयस्क नहीं होते हैं, लेकिन मानसिक रूप से वे वयस्क हो जाते हैं. उनकी बातचीत, उनके आचार-व्यवहार में यह बात साफ झलकती है.

भारतीय दृष्टिकोण से देखें, तो चीन किसी भी क्षेत्र में हमारा आदर्श नहीं है और हमें उससे कुछ सीखने की आवश्यकता भी नहीं है, लेकिन हाल में उसने जो कदम उठाया है, हम उससे जरूर कुछ सीख सकते हैं. चीन चाहता है कि बच्चे मोबाइल फोन पर कम समय बिताएं. इसको देखते हुए चीन ने बच्चों के मोबाइल फोन के इस्तेमाल पर नियंत्रण लगाने का प्रयास किया है. चीन के साइबर स्पेस वॉचडॉग ने सिफारिश की है कि बच्चों द्वारा स्मार्टफोन के उपयोग को दिनभर में दो घंटे तक सीमित किया जाए.

चीन ने पांच अलग-अलग आयु समूहों- तीन से कम, 3-8, 8-12, 12-16 और 16-18 वर्ष- के लिए प्रतिबंधों का सुझाव दिया है. तीन वर्ष से कम उम्र के बच्चों के लिए प्रतिदिन केवल 40 मिनट इस्तेमाल की अनुमति होगी. 8-16 वर्ष के बच्चों के लिए यह समय सीमा एक घंटे निर्धारित की गयी है. 16-18 वर्ष के बच्चे मोबाइल फोन का इस्तेमाल केवल दो घंटे तक कर सकेंगे. इस आयु वर्ग के बच्चे रात 10 बजे से सुबह छह बजे तक इंटरनेट इस्तेमाल नहीं कर सकेंगे.

इन प्रतिबंधों को सफल करने के लिए सभी तकनीकी कंपनियों को ऐसा तरीका लाना होगा, जिससे बच्चे इंटरनेट का इस्तेमाल न कर सकें. दिशा निर्देशों में कहा गया है कि माता-पिता को माइनर मोड पर हस्ताक्षर करना होगा और दिशा निर्देश लागू होने के बाद उन्हें इस अभियान का समर्थन करने के लिए कहा जायेगा. प्रतिबंधों को लागू करने की जिम्मेदारी तकनीकी कंपनियों पर भी होगी. उन्हें सरकारी अधिकारियों को नियमित डेटा उपलब्ध कराना होगा और उनकी नियमित जांच की जायेगी.

अगर आप गौर करें, तो तकनीक ने पूरा परिदृश्य ही बदल दिया है. मोबाइल चुपके से हमारे जीवन में प्रवेश कर गया और हमें पता ही नहीं चला. अब स्थिति यह है कि मोबाइल फोन के बिना जैसे हमारा जीवन ही अधूरा है. युवा पीढ़ी को तो इसने व्यापक रूप से प्रभावित किया है. उनके सोने, पढ़ने के समय, हाव भाव और खानपान सब बदल चुका है. वे घर के किसी अंधेरे कमरे में हर वक्त मोबाइल में उलझे रहते हैं. अब खेल के मैदानों में आपको गिने-चुने बच्चे ही नजर आयेंगे.

अब बच्चे किशोर, नवयुवक जैसी उम्र की सीढ़ियां चढ़ने के बजाय सीधे वयस्क बन जाते हैं. शारीरिक रूप से भले ही वे वयस्क नहीं होते हैं, लेकिन मानसिक रूप से वे वयस्क हो जाते हैं. उनकी बातचीत, उसके आचार-व्यवहार में यह बात साफ झलकती है. एक गंभीर स्थिति निर्मित होती जा रही है. दिक्कत यह है कि हम सब यह चाहते हैं कि देश में आधुनिक टेक्नोलॉजी आए, लेकिन उसके साथ किस तरह तारतम्य बिठाना है, इस पर कोई विमर्श नहीं होता है.

डॉक्टरों का कहना है कि मोबाइल की लत इतनी गंभीर है कि यदि किसी बालक के हाथ से मोबाइल छीन लिया जाता है, तो वह आक्रामक हो जाता है. देखने में आया है कि कुछेक मामलों में तो वे आत्महत्या करने तक की धमकी देने लगते हैं. स्थिति यह हो गयी है कि माता-पिता भी मोबाइल को लेकर बच्चे से कुछ कहने से डरने लगे हैं कि वह कहीं कुछ न कर ले. कुछ पुरानी खबरें स्थिति की गंभीरता दर्शाती हैं.

राजस्थान के अजमेर में एक बेटी से पिता ने मोबाइल वापस लिया, तो उसने आत्महत्या कर ली. लड़की 11वीं क्लास में पढ़ती थी. पिता को उसका ज्यादा मोबाइल इस्तेमाल करना पसंद नहीं था. मोबाइल वापस लेने के बाद लड़की अवसाद में चली गयी और एक अतिरेक कदम उठा लिया. उत्तर प्रदेश के ग्रेटर नोएडा में 15 वर्षीय एक लड़के ने आत्महत्या कर ली, क्योंकि उसके माता-पिता ने उसे मोबाइल फोन पर गेम खेलने की अनुमति नहीं दी थी.

कुछ अरसा पहले लखनऊ में एक बेटे ने मोबाइल फोन पर पब्जी खेलने से मना करने पर मां पर गोली चला कर उसे मार डाला. ऐसे ही मुंबई में मोबाइल गेम खेलने से मना करने पर 16 वर्षीय एक बच्चे ने ट्रेन के सामने कूद जान दे दी.

ये घटनाएं दर्शाती हैं कि मोबाइल का नशा इतना गहरा है कि बच्चे इसके लिए कुछ भी कदम उठाने से नहीं हिचक रहे. अब किसी बच्चे या युवा के मोबाइल की लत से मानसिक रोगी बन जाने की खबरें चौंकाती नहीं हैं. यह सही है कि टेक्नोलॉजी की ताकत इतनी है कि उसके प्रभाव से कोई भी मुक्त नहीं रह सकता है. नवयुवकों को छोड़िए, हम आप भी इससे मुक्त नहीं रह सकते हैं.

शायद आपने अनुभव किया हो कि यदि आप कहीं मोबाइल भूल जाएं या उसकी बैटरी खत्म हो जाए, सिग्नल नहीं आ रहा हो या किसी तकनीकी खराबी से वह बंद हो जाए, तो आप कितनी बेचैनी महसूस करते हैं. दरअसल, मोबाइल फोन की हम सभी को लत लग गयी है. हम मौका मिलते ही मोबाइल के नये मॉडल की बातें करने लगते हैं. व्हाट्सऐप, फेसबुक, ट्विटर, इंस्टाग्राम तो जीवन की जरूरतों में कब शामिल हो गये, हमें पता ही नहीं चला. मैंने पाया कि कुछेक लोगों को रील और वीडियो की इतनी लत लग गयी है कि वे थोड़ी-थोड़ी देर बाद अगर उसे नहीं देख पाते, तो परेशान हो उठते हैं.

कुछ समय पहले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने मोबाइल उपवास की बात कही थी. मैंने भी मोबाइल उपवास पर एक लेख लिखा था. वह लेख मध्य प्रदेश के रायसेन जिले की खबर से प्रेरित था. वहां से खबर आयी थी कि सैकड़ों लोगों ने एक दिन के लिए मोबाइल, लैपटॉप सहित अन्य इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों से दूरी बनाने का संकल्प लिया था और ऐसे सभी उपकरण एक दिन के लिए मंदिर में जमा कर दिये थे. इसे ई-उपवास अथवा डिजिटल फास्टिंग का नाम दिया गया था. जैन समाज ने पर्यूषण के दौरान इस ई-उपवास की शुरुआत की थी.

यह जैन समुदाय द्वारा आत्म-शुद्धि के लिए प्रतिवर्ष मनाया जाने वाला प्रमुख त्योहार है. ई-उपवास में लगभग 600 लोगों ने एक दिन के लिए और 400 लोगों ने 10 दिन के लिए अपने सभी इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों को हाथ न लगाने का संकल्प लिया था. इस डिजिटल उपवास की बड़ी खासियत यह देखने को मिली कि इसमें बड़ी संख्या में युवक-युवतियों ने हिस्सा लिया. जैन समाज की इस पहल को सभी ने सराहा था. यह जीवन की सच्चाई है कि मोबाइल हम सभी के लिए एक लत बन चुका है. समय आ गया है कि मोबाइल के इस्तेमाल पर एक व्यापक विमर्श हो और इसके संयमित इस्तेमाल की दिशा में पहल की जाए.

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