लखनऊ: मुरादाबाद दंगे के 43 साल बाद मंगलवार 8 अगस्त को विधान मंडल में पेश की गयी.13 अगस्त 1980 को हुए इस दंगे में 200 से ज्यादा लोगों की मौत की बात कही जा रही है. लेकिन सरकारी दस्तावेजों में मौतों का आंकड़ा 83 बताया गया था. उस समय देश में कांग्रेस की सरकार थी और इंदिरा गांधी प्रधानमंत्री थी. वहीं उत्तर प्रदेश में मुख्यमंत्री वीपी सिंह थे.
496 पन्ने की रिपोर्ट बताया गया है कि 13 अगस्त 1980 को ईद थी. पूरा देश ईद मना रहा था. मुरादाबाद ईदगाह में भी हजारों की संख्या में लोग नमाज अता करने के लिये जुटे थे. इसी बीच किसी ने अफवाह फैला दी कि ईदगाह में एक प्रतिबंधित जानवर छोड़ दिया गया है. जिससे नमाजियों के कपड़े खराब हो गये हैं. इस अफवाह के बाद वहां हंगामा हो गया. पत्थरबाजी हुई. पुलिस थाना फूंक दिया गया. कई लोग इस दौरान मार दिये गये. इसमें एक अधिकारी भी बताया जा रहा था.
तत्कालीन कांग्रेस सरकार ने दंगे की भीषणता को देखते हुए, पूरे मामले की जांच के लिये जस्टिस एमपी सक्सेना की अध्यक्षता में एक कमेटी बना दी थी. इस कमेटी ने तीन साल में अपनी जांच पूरी की और 20 नवंबर 1983 को रिपोर्ट सरकार को सौंप दी. लेकिन यह रिपोर्ट सार्वजनिक नहीं की गयी और किसी को पता नहीं चला कि दंगे का कारण क्या था? कौन इन दंगों के पीछे था?
जांच रिपोर्ट के लगभग साल बाद योगी सरकार ने मुरादाबाद दंगों की रिपोर्ट को विधानमंडल के मानसून सत्र के दूसरे दिन सार्वजनिक कर दिया है. इस रिपोर्ट के अनुसार एक समुदाय के नेता ने राजनैतिक लाभ के लिये दंगा भड़काया था. हालांकि सरकार ने जानकारी दी थी कि मुरादाबाद के दंगे में 112 लोग घायल हुए थे और 83 की मौत हुई थी. जबकि लोगों का दावा था कि लगभग 200 लोगों की इस दंगे में मौत हुई थी. प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने इसे विदेशी साजिश बताया था.
मंगलवार को विधानमंडल में पेश की गई रिपोर्ट के अनुसार यह दंगा पूर्व नियोजित था. डॉ. शमीम अहमद के नेतृत्व वाली मुस्लिम लीग और डॉ. हामिद हुसैन के भाड़े लोग इस दंगे के पीछे थे. अफवाह फैलायी गयी थी कि प्रतिबंधित पशु नमाजियों के बीच छोड़ा गया है. इस अफवाह के फैलने के बाद सांप्रदायिक दंगा फैल गया. पुलिस थाना फूंक दिया गया. एक समुदाय के लोगों ने दूसरे पर हमला कर दिया.
रिपोर्ट के अनुसार हिंसा भड़काने में मुस्लिम लीग के नेता डॉ. शमीम अहमद खान, डॉ. हामिद हुसैन व उनके समर्थक प्रमुख थे. ईदगाह में गड़बड़ी के षडयंत्र को बढ़ावा देने के लिये 12 अगस्त 1980 को पहली एफआईआर थाना मुगलपुरा में डॉ. हामिद हुसैन ने की. उसी रात एक अन्य मुकदमा थाना कटघर में काजी फजुलुर्रहमान ने कराया था. इन मुकदमों में आरोप थे कि दूसरे समुदाय के लोगों ने उनसे निपटने की धमकी दी है. हालांकि यह दोनों ही रिपोर्ट झूठी पायी गयी थीं. यह एफआईआर दूसरे समुदाय पर पेशबंदी के रूप में लिखायी गयी थीं.
रिपोर्ट में यह भी है कि जिस प्रतिबंधित पशु को लेकर अफवाह फैली और दंगा हुआ, वह ईदगाह में कहीं नहीं दिखा. जबकि ईद की नमाज के दौरान यह अफवाह फैलायी गई थी कि प्रतिबंधित पशु के घुस आने से कई नमाजियों के कपड़े खराब हो गये. इसके बाद वहां हंगामा मच गया, जिसका परिणाम दंगे के रूप में सामने आया. रिपोर्ट के अनुसार इस अफवाह का उद्देश्य था कि दूसरे समुदाय को बदनाम करके आरोपी अपने लोगों के बीच स्वयं की छवि सुधार सकें.
मुरादाबाद में दंगों के बाद कुल 108 मुकदमें दर्ज हुए थे. इनमें से जांच के बाद 32 मामलों में आरोप पत्र कोर्ट में दाखिल किये गए. 75 मामलों में फाइनल रिपोर्ट दाखिल की गयी. मुगलपुरा, कोतवाली, नागफनी थाने में हिंदू पक्ष ने 62 एफआईआर, मुस्लिम पक्ष ने 32 एफआईआर लिखाई. पुलिस, पीएसी और होमगार्ड ने 13 एफआईआर लिखाई थीं.
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ईदगाह सहित 20 स्थानों पर हुई हिंसा
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डीएम और एसएसपी ने शांति व्यवस्था के किये थे प्रबंध
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पुलिस का गोली चलाना न्यायोचित
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ईदगाह, बर्फखाना, भूरा चौराहा पर अधिकतर लोगों की मौत भगदड़ से
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अल्पसंख्यक समुदाय के अधिक लोग मारे गये, इनमें बच्चे भी
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सभी जाति, धर्म के लोगों में सद्भाव पैदा किया जाए
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अपासी सद्भाव के लिये मनोवैज्ञानिक दृष्टिकोण अपनाना जरूरी
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संवेदनशील क्षेत्रों में गड़बड़ी करने वालों और अपराधियों पर निगरानी
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तनाव होने पर अफवाहों के खंडन की व्यवस्था
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मुस्लिम समुदाय को वोट बैंक समझने की प्रवृत्ति को सरकार हतोत्साहित करे
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वीर बहादुर सिंह 13 मार्च 1986
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वीर बहादुर सिंह 06 जून 1987
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वीर बहादुर सिंह 22 दिसंबर 1987
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एनडी तिवारी 17 सितंबर 1988
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एनडी तिवारी 31 जुलाई 1989
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मुलायम सिंह यादव 20 अक्तूबर 1990
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कल्याण सिंह 24 जुलाई 1992
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मुलायम सिंह यादव 01 फरवरी 1994
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मुलायम सिंह यादव 30 मई 1995
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राम प्रकाश गुप्त 15 फरवरी 2000
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राजनाथ सिंह 17 फरवरी 2002
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मुलायम सिंह यादव 31 मई 2004
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मुलायम सिंह यादव 9 अगस्त 2005
विधान सभा में पेश की रिपोर्ट के अनुसार मुस्लिम लीग के अध्यक्ष डॉ. शमीम अहमद इन दंगों के पीछे थे. 1971 का लोकसभा चुनाव हारने के बाद भी उन्होंने सांप्रदायिक तनाव फैलाने की कोशिश की थी. 1974 का विधान सभा चुनाव भी कम वोटों से हारने के बाद उन्होंने अपने समुदाय के लोगों की सहानुभूति पाने का प्रयास किया. 1980 में उन्हें फिर से विधानसभा का टिकट मिल गया. इससे वह फिर से ध्रुवीकरण में जुट गये.
एक दलित लड़की के रेप के मामले में वह आरोपियों के पक्ष में रहे. यहां तक कि पीड़ित लड़की की बारात को लेकर भी विवाद पैदा किया गया. इससे भी दोनों समुदाय के बीच विवाद हुआ. यहां तक कि इस मामले में भी प्रतिबंधित पशु का मामला उठाया गया. जिससे दूसरे समुदाय में इसे पालने वालों पर शक जाए. इसीलिये ईद के दिन जब हजारों की भीड़ ईदगाह में रहती है, तब भी प्रतिबंधित पशु की अफवाह फैलायी गयी. जिसके कारण तेजी से अफवाह फैली और दंगा हो गया.