रांची: बिरसा मुंडा स्मृति उद्यान में आयोजित झारखंड आदिवासी महोत्सव-2023 में आज बुधवार को झारखंड फिल्म फेस्टिवल में राष्ट्रीय एवं अंतरराष्ट्रीय मंच पर प्रदर्शित संथाली, मुंडारी सहित हिंदी भाषाओं की फिल्मों का प्रदर्शन किया गया. राष्ट्रीय फिल्म अवार्ड से सम्मानित फिल्मकार मेघनाथ और बीजू टोप्पो की फिल्म नाची से बांची और मुंडारी सृष्टिकथा के साथ श्रीप्रकाश की फिल्म ईर दिखायी गयी. स्नेहा मुंडारी की फिल्म आबुआ पाइका मुंडा समाज की पहली फिल्म है, जिसे राष्ट्रीय एवं अंतरराष्ट्रीय मंच पर प्रदर्शित किया जा चुका है. निरंजन कुमार कुजूर की फिल्म डिबी दुर्गा, सतीश मुंडा की जादूगोड़ा फिल्म समेत कई अन्य फिल्मों का प्रदर्शन किया गया. झारखंड आदिवासी महोत्सव में गुरुवार को पेनल्टी कॉर्नर, रावह, बवाडू जैसी फिल्मों को दिखाया जायेगा.
ट्राइबल फिल्म फेस्टिवल में इन फिल्मों का प्रदर्शन
राष्ट्रीय फिल्म अवार्ड से सम्मानित फिल्मकार मेघनाथ और बीजू टोप्पो की फिल्म नाची से बांची व श्रीप्रकाश की फिल्म ईर दिखायी गयी. ट्राइबल फिल्म फेस्टिवल में स्नेहा मुंडारी की मुंडारी फिल्म आबुआ पाइका, निरंजन कुजूर की संथाली फिल्म डीबी दुर्गा, दीपक कुमार बेसरा की फिल्म मोहोट, सेराल मुर्मू की फिल्म सोनधायनी, सतीश मुंडा की फिल्म जादूगोड़ा सहित कई फिल्मों का प्रदर्शन किया गया.
आबुआ पाइका मुंडा समाज की पहली मूवी
स्नेहा मुंडारी की फिल्म आबुआ पाइका मुंडा समाज की पहली मूवी है, जिसे राष्ट्रीय एवं अंतरराष्ट्रीय मंच पर प्रदर्शित किया जा चुका है. आबुआ पाइका फिल्म 25 वर्षीय पांडया मुंडा की कहानी है जो एक पाइका डांसर है और ये मुंडा समाज के रहन सहन, परंपरा को रिप्रेजेंट करते हैं.
निरंजन कुमार कुजूर की फिल्म डिबी दुर्गा
निरंजन कुमार कुजूर की फिल्म डिबी दुर्गा एक महिला की कहानी है. इस फिल्म में दिखाया गया है कि कैसे एक महिला सुबह से रात तक पूरे घर की जिम्मेदारी निभाती है. मात्र छह मिनट की इस फिल्म में एक घरेलू महिला के जीवन के एक दिन के बारे में बहुत ही सुंदर तरीके से बताया गया है.
सतीश मुंडा की जादूगोड़ा फिल्म का प्रदर्शन
सतीश मुंडा की जादूगोड़ा फिल्म एक पिता और बेटी की कहानी है, जिसमें दिखाया गया है कि जादूगोड़ा में होने वाले रेडिएशन के कारण कैसे उनकी जिंदगी में बदलाव आते हैं.
सेराल मुर्मू की संथाली फिल्म सोनधायनी
सेराल मुर्मू की संथाली फिल्म सोनधायनी की कहानी सोनधायनी जड़ी-बूटी के माध्यम से बताई गई है कि कैसे हम आगे बढ़ने की होड़ में प्रकृति को पीछे छोड़ रहे हैं उसके संतुलन को बिगाड़ रहे है. इस मूवी में इंसान और प्रकृति के संतुलन के बारे में बताया गया.
झारखंड आदिवासी महोत्सव में गुरुवार को इन फिल्मों का प्रदर्शन
महोत्सव में इसी तरह कई उम्दा और बेहतरीन फिल्मों का प्रदर्शन किया जा रहा है. झारखंड आदिवासी महोत्सव में कल गुरुवार को पेनल्टी कॉर्नर, रावह, बवाडू जैसी फिल्मों को दिखाया जायेगा.
राष्ट्रीय आदिवासी साहित्य सेमिनार का भी आयोजन
आपको बता दें कि विश्व आदिवासी दिवस पर झारखंड आदिवासी महोत्सव के पहले दिन राष्ट्रीय आदिवासी साहित्य सेमिनार का आयोजन किया गया. इसमें झारखंड के वरिष्ठ साहित्यकार एवं साहित्य अकादमी के सदस्य महादेव टोप्पो ने कहा कि आज की आदिवासी युवा पीढ़ी को आदिवासियों से जुड़े साहित्य एवं कथाओं को पढ़ना चाहिए ताकि वे दिशाहीन ना हों. उन्हें अपनी पुरानी परंपराओं से जुड़ने की ज़रूरत है. इसके लिए पूर्वजों द्वारा लिखी गये साहित्यों को पढ़ने की ज़रूरत है. इस मौके पर दिल्ली विश्वविद्यालय से आयीं प्रोफेसर स्नेह लता नेगी, त्रिपुरा से आयीं प्रोफेसर मिलन रानी चमातिया, प्रयागराज से आये प्रोफेसर जनार्दन गोंड ने अपने विचार रखे.
जनजातीय जीवन दर्शन से लोग हो रहे रूबरू
विश्व आदिवासी दिवस के अवसर पर रांची के बिरसा मुंडा स्मृति उद्यान में झारखंड आदिवासी महोत्सव का आयोजन किया जा रहा है. नौ व 10 अगस्त को इसका भव्य आयोजन किया गया है. कला, साहित्य व संस्कृति के कई रंग देखने को मिल रहे हैं. एक ओर जहां सांस्कृतिक कार्यक्रम से आदिवासी जीवन दर्शन को समझने का मौक़ा मिल रहा है, वहीं दूसरी ओर इसी उद्यान में परिचर्चा के माध्यम से देश के कोने-कोने से आये ख्यातिप्राप्त विशेषज्ञों से जनजातीय भाषाओं, संस्कृति और परंपराओं सहित जनजातीय साहित्य, इतिहास, जनजातीय दर्शन के महत्व के बारे में जानकारी मिल रही है.
पैनल डिस्कशन से जनजातीय जीवन दर्शन की जानकारी
झारखंड आदिवासी महोत्सव-2023 के अवसर पर सेमिनार का आयोजन किया गया. इस मौके पर देशभर से आए ख्यातिप्राप्त विशेषज्ञों ने हिस्सा लिया और परिचर्चा में अपने विचार रखे. आदिवासी साहित्यों एवं कथाओं के ज़रिए आदिवासी जीवन दर्शन को जानने का प्रयास किया गया. आदिवासी समाज की संस्कृति एवं उनके जीवन दर्शन की झलकियों को पैनल डिस्कशन से समझने में मदद मिल रही है. आदिवासी साहित्य में कथा और कथेतर विधाओं का वर्तमान परिदृश्य के बारे में वक्ताओं ने अपने विचार रखे.