Health News : टीबी का रोग यानी क्षय रोग संक्रामक बीमारी है तो एक से दूसरे को फैलती है यह माइकोबैक्टीरियम ट्यूबरकुलोसिस (एमटीबी) बैक्टीरिया के कारण होता है और यह रोगी के फेफड़े को प्रभावित करता है. लेकिन लैंसेट अध्ययन में पता चला है कि बेहतर खान पान और पोषण से संक्रामक फेफड़ों की टीबी वाले रोगियों के संपर्क में आने वाले इंफेक्शन का खतरा 40 से 50 प्रतिशत तक कम किया जा सकता है. टीबी के कम वजन वाले रोगियों में शुरुआती वजन बढ़ने से टीबी से होने वाली मौत के जोखिम को 60 फीसदी तक कम किया जा सकता है. RATIONS परीक्षण यानी पोषण संबंधी स्थिति में सुधार द्वारा तपेदिक की सक्रियता को कम करने के परीक्षण निष्कर्षों के नए साक्ष्य सामने आए हैं.
भारत में टीबी संक्रमण और इससे मौत की दर बढ़ने का बड़ा कारण अल्पपोषण रहा है. जो हर वर्ष 40 प्रतिशत से अधिक नए मामलों के लिए जिम्मेदार होता है. परीक्षण के परिणामों पर एक ब्रीफिंग में डब्ल्यूएचओ की पूर्व मुख्य वैज्ञानिक डॉ. सौम्या स्वामीनाथन ने बताया कि एनआईआरटी, चेन्नई द्वारा कई वर्ष पहले किए गए अध्ययनों से पता चला है कि जिन टीबी रोगियों का वजन 35 किलोग्राम से कम था, उनकी मृत्यु दर 45 किलोग्राम से अधिक वजन वाले लोगों की तुलना में 4 गुना अधिक थी.
पोषण संबंधी स्थिति में सुधार द्वारा तपेदिक की सक्रियता को कम करने (RATIONS ) परीक्षण के नतीजे बताते हैं कि फेफड़ों की टीबी वाले रोगी के परिवार के सदस्यों में पोषण में सुधार से सभी प्रकार की टीबी की घटनाओं में लगभग 40 प्रतिशत की कमी आई है और संक्रामक टीबी लगभग 50 प्रतिशत कम हुआ. रोगियों के परिणामों के आधार पर द लांसेट ग्लोबल हेल्थ में प्रकाशित स्टडी में पाया गया कि पहले दो महीनों में जल्दी वजन बढ़ने से टीबी से होने वाली मृत्यु का जोखिम 60 प्रतिशत कम हो जाता है. केवल 3 प्रतिशत ही नामांकन के समय काम करने में सक्षम थे, लेकिन उपचार के अंत में यह आंकड़ा बढ़कर 75 प्रतिशत हो गया.
डॉ. स्वामीनाथन इन शोधपत्रों के प्रमुख लेखकों, येनेपोया मेडिकल कॉलेज, मैंगलोर के डॉ. अनुराग भार्गव और डॉ. माधवी भार्गव के साथ मीडिया को संबोधित करते हुए बताया कि यह क्लस्टर-रैंडमाइज्ड परीक्षण राष्ट्रीय टीबी उन्मूलन कार्यक्रम और नेशनल इंस्टीट्यूट फॉर रिसर्च इन ट्यूबरकुलोसिस, चेन्नई के सहयोग से झारखंड के 4 जिलों में अगस्त 2019 और अगस्त 2022 के बीच आयोजित 3 साल का अध्ययन था और इसे भारतीय चिकित्सा परिषद द्वारा समर्थित किया गया था. यह एनटीईपी से इलाज करा रहे फेफड़ों की टीबी से पीड़ित 2800 रोगियों के 10,345 घरेलू संपर्कों (एचएचसी) में टीबी की घटना पर भोजन की टोकरी और सूक्ष्म पोषक तत्वों के साथ पोषण अनुपूरण के प्रभाव का अध्ययन करने वाला पहला परीक्षण है. सभी रोगियों को 6 महीने के लिए मासिक 10 किलो खाद्य टोकरी (चावल, दाल, दूध पाउडर, तेल) और मल्टीविटामिन प्राप्त हुए. परिवार के सदस्यों में, हस्तक्षेप समूह को प्रति व्यक्ति प्रति माह 5 किलो चावल और डेढ़ किलो दालें मिलती थीं यदि बच्चा 10 साल है तो उसे आधा दिया जाता है डॉ. अनुराग ने कहा कि कम लागत वाले भोजन-आधारित पोषण से टीबी को काफी हद तक रोका जा सकता है,जिसका परिणाम काफी उत्साहजनक रहा.
भारत के संदर्भ में बात करें तो पोषण संबंधी सहायता रोगी-केंद्रित देखभाल का एक अनिवार्य हिस्सा होना चाहिए. भारत सरकार पहले से ही प्रधान मंत्री टीबी मुक्त भारत अभियान के तहत नि-क्षय पोषण योजना और नि-क्षय मित्र जैसी पहल के साथ टीबी रोगियों को पोषण अनुपूरक प्रदान करने की आवश्यकता की ओर कदम बढ़ा रही है. हमारी आबादी की पोषण स्थिति में सुधार से टीबी की घटनाओं को कम करने और टीबी उन्मूलन के महत्वाकांक्षी लक्ष्य को प्राप्त करने पर संभावित रूप से बड़ा प्रभाव पड़ सकता है.
जिन पर यह परीक्षण किया गया उन परीक्षण प्रतिभागियों में से दो-तिहाई से अधिक आदिवासी थे, जिनमें से अधिकांश सार्वजनिक वितरण प्रणाली (पीडीएस) से राशन प्राप्त कर रहे थे. परीक्षण में शामिल पांच में से चार मरीजों का बीएमआई (बॉडी मास इंडेक्स) 18.5 से कम था, जो अल्पपोषण का संकेत देता है, जबकि लगभग आधे मरीज गंभीर रूप से कुपोषित थे, जिनका बीएमआई 16 किलोग्राम/मीटर वर्ग से कम था. मरीजों के परिवार के सदस्यों में से एक तिहाई नामांकन के समय अल्पपोषित थे. एचआईवी, मधुमेह, एमडीआर-टीबी का प्रसार कम था, लेकिन शराब और तंबाकू का उपयोग अधिक था. करीब 10 प्रतिशत मरीज़ खड़े होने में असमर्थ थे. पोषण संबंधी हस्तक्षेप संक्रामक टीबी के विकास के खिलाफ महत्वपूर्ण सुरक्षा प्रदान कर सकता है जैसा कि इस परीक्षण में देखा गया है.
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