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जनजातीय कला-संस्कृति को इस तरह बढ़ावा दे रहे कोल्हान के आदिवासी युवा

झारखंड के कोल्हान प्रमंडल में युवा अपनी हुनर से अपनी कला और संस्कृति को बढ़ावा दे रहे हैं. उसको समृद्ध कर रहे हैं. विश्व आदिवासी दिवस पर जनजातीय कला-संस्कृति को बढ़ावा देने वाले युवाओं के बारे में आप भी जानें.

जमशेदपुर, दशमत सोरेन : विश्व आदिवासी दिवस पूरे विश्व के आदिवासियों को समर्पित है. हर साल 9 अगस्त को इस दिवस को जनजातीय आबादी के अधिकारों की रक्षा करने, उनका सम्मान करने व उनके सामने आने वाली विशिष्ट चुनौतियों को पहचानने के उद्देश्य से मनाया जाता है. इस दिन को पहली बार दिसंबर 1994 में संयुक्त राष्ट्र महासभा (यूएनजीए) द्वारा घोषित किया गया था. 2011 की जनगणना के अनुसार, भारत की जनसंख्या का 8.6 प्रतिशत या 104 मिलियन लोग आदिवासी हैं. विश्व के 90 से अधिक देशों में आदिवासी समुदाय के लोग रहते हैं.

दुनिया में आदिवासी समुदाय की आबादी लगभग 37 करोड़ है, जिसमें लगभग 5000 अलग-अलग आदिवासी समुदाय हैं. आज भी पूरे विश्व में नस्लवाद, रंगभेद, उदारीकरण जैसे कई कारणों से आदिवासी समुदाय के लोग अपने अस्तित्व और सम्मान को बचाने के लिए संघर्ष कर रहे हैं. झारखंड की कुल आबादी का करीब 28 फीसदी हिस्सा आदिवासी समाज के लोग हैं. इनमें संताल, हो, मुंडा, भूमिज, उरांव, बिरहोर, चेरो, गोंड, पहाड़िया समेत 32 जनजातीय समूहों के लोग शामिल हैं. समुदाय के विकास व लोगों के जीवनस्तर में सुधार के लिए कई लोग जुटे हैं.

फिल्म के जरिये सामने ला रहे आदिवासियों की जीवनशैली

रवि राज मुर्मू एक स्वतंत्र फिल्म निर्माता हैं. वह पूर्वी सिंहभूम जिले के गालुडीह कुमीरमुडी गांव के निवासी हैं. उन्होंने झारखंड की क्षेत्रीय भाषाओं में कई लघु फिल्में बनायी हैं. फिल्म के माध्यम से आदिवासियों की जीवनशैली व संघर्ष की कहानियों को देश व दुनिया के सामने लाते हैं. उन्होंने पत्रकारिता में स्नातक की डिग्री ली और फिल्म निर्माण (संपादन) में आगे की पढ़ाई पूरी की. उन्होंने भारतीय फिल्म एवं टेलीविजन संस्थान, पुणे से पढ़ाई की है. उन्हें कहानियां लिखना और विभिन्न लोगों से कहानियां, किस्से, लोक कथाएं सुनना पसंद है.

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वह मुख्यतः वास्तविक जीवनशैली पर कहानियां लिखते हैं, साथ ही उन्हें लोक कथाओं पर आधारित कहानियां लिखने में भी रुचि है. वह पिछले 6-7 वर्षों से क्षेत्रीय भाषा में कहानियां लिखने के साथ लघु फिल्मों का निर्माण लगातार कर रहे हैं. इन्होंने असमिया फिल्म “फूल्स गेम” के लिए बहुत अच्छा काम किया था. ये वर्तमान समय में नेटफ्लिक्स (वेब सीरीज: ट्रायल बाय फायर) और हॉटस्टार (फिल्म: गुड लक जेरी और वेब सीरीज: ह्यूमन) जैसे ओटीटी प्लेटफॉर्म के लिए एसोसिएट एडिटर के रूप में काम करते हैं.

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दलमा मोशन पिक्चर नाम से फिल्म कंपनी बनायी

सरायकेला जिले के चांडिल घोड़ानेगी निवासी संजय टुडू फिल्म निर्माता, निर्देशक होने के साथ एक अच्छा वीडियो एडिटर भी हैं. इतना नहीं वे एक अच्छा स्टोरी राइटर हैं. वह जनजातीय समुदाय को केंद्रित कर फुललेंथ की मूवी व शॉर्ट फिल्मों को बनाते हैं. इन्हें शूटिंग के लिए कैमरा चलाने में भी महारथ हासिल है. संजय ने पुष्पेंद्र सिंह की अश्वत्थामा का संपादन किया था, जिसका प्रीमियर बुसान इंटरनेशनल फिल्म फेस्टिवल 2017 में हुआ था.

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संजय के संपादित लघु फिल्म ‘डेज ऑफ ऑटम’ को इंटरनेशनल डॉक्यूमेंट्री एंड शॉर्ट फिल्म फेस्टिवल ऑफ केरल 2016 में सर्वश्रेष्ठ फिल्म का खिताब मिला. संजय को फर्स्ट कट फिल्म फेस्टिवल 2019, पुणे में सर्वश्रेष्ठ संपादक (डॉक्यूमेंट्री) का पुरस्कार मिल चुका है. संजय टुडू बड़े टीवी चैनलों के साथ जुड़कर कार्य कर चुक हैं. हाल के दिनों में वह कई डॉक्यूमेंट्री को बनाने में लगे हैं. उन्होंने जमशेदपुर में दलमा मोशन पिक्चर नाम से एक फिल्म निर्माण कंपनी शुरू की है, जिसमें वे स्थानीय आदिवासी प्रतिभा को अवसर देते हैं.

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लघु फिल्में ‘सोंधायनी’ व ‘रावाह’ से मिली पहचान

पूर्वी सिंहभूम जिले के मुसाबनी पाथोरगोड़ा निवासी आदिवासी युवक सेराल मुर्मू एक जनजातीय फिल्म निर्माता, निर्देशक व कहानीकार हैं. उन्होंने भारतीय फिल्म और टेलीविजन संस्थान, पुणे से स्नातक किया है. उनकी सभी फिल्में आदिवासी मुद्दों, पहचान, समानता और अन्याय के लिए संघर्ष पर केंद्रित हैं. उनकी फिल्में भारत के अलग-अलग हिस्सों में हो रहे आदिवासी प्रतिरोध को ताकत देने का जरिया है.

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रांची आदिवासी अधिकारों और न्याय के लिए लड़ने वाले आदिवासी कार्यकर्ताओं का केंद्र था. वह गतिविधियों में घनिष्ठ सहयोगी बन गये, उनके साथ हाथ मिलाया और अक्सर अनसुनी कही जाने वाली बातों को आवाज देने के लिए वृत्तचित्र बनाये. उन्होंने कैमरामैन और संपादक के रूप में सहयोग किया है और 8 वृत्तचित्र और लघु फिक्शन फिल्में बनायीं. उनकी लघु फिल्में रावाह और सोंधायनी को राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर फिल्म समारोहों में प्रदर्शित और पुरस्कृत किया गया है. वह वर्तमान में संताली सिनेमा के इतिहास पर वृत्तचित्र बना रहे हैं.

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अपने गीतों के लिए सोशल मीडिया को बनाया जरिया

पोटका जादूगोड़ा क्षेत्र के दामुडीह की रहने वाली विमला टुडू एक आदिवासी गायिका हैं. इन दिनों सोशल मीडिया में वह काफी छायी हुई हैं. उनकी अच्छी खासी फैन फॉलोइंग है. यूट्यूब, फेसबुक, इंस्टाग्राम समेत अन्य सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर अनायास उनके गाने सुनने को मिल जायेंगे. जमाने के साथ कदमताल करते हुए इन्होंने लोगों तक अपनी पहुंच को बनाने के लिए सोशल मीडिया को ही माध्यम बनाया है. विमला फिलहाल जनजातीय भाषाओं में ही गाना गाती हैं.

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विमला टुडू का अपना एक छोटा सा ग्रुप है, जो गानों को लिखने व रिकार्डिंग से लेकर सोशल मीडिया में अपलोड करने तक काम को करता है. विमला गायिका होने के साथ-साथ एक गीतकार भी हैं. वह खुद ही अपने गानों को कंपोज करती हैं. उनके खुद के लिखे गानों ने भी सोशल मीडिया पर खूब धूम मचाया है. उन्हें अन्य दूसरे समाज की भाषाओं से परहेज नहीं है. चूंकि शुरुआती दिनों से ही उन्हें अपने समाज की पारंपरिक लोकगीतों को गाने में सहज महसूस होती है.

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किसानों को जैविक खेती के लिए प्रेरित कर रहीं हीरा मार्डी

अमूमन महिलाओं को शोषित-पीड़ित और आर्थिक रूप से दुर्बल माना जाता है. ग्रामीण महिलाओं के बारे में तो यह जैसे एक बड़ा सच हो, लेकिन आज कई ऐसी महिलाएं ग्रामीण क्षेत्रों में उभरकर आयी हैं, जिन्होंने खुद को साबित किया. परसुडीह क्षेत्र के छोलागोड़ा-बुलनगोड़ा निवासी हीरा मार्डी भी उन्हीं मे से एक हैं. ये बिलकुल अलग हटकर काम करने पर विश्वास करती हैं. हीरा मार्डी व उनकी टीम जैविक खेती को बढ़ावा देने का काम कर रही है. वह खुद अपने घरों में खर-पतवार से जैविक खाद को तैयार करती हैं.

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इतना ही नहीं वह जैविक खाद से खेती भी करती हैं. अपने गांव व आसपास के बस्ती वासियों को जैविक खाद से खेती करने के बारे में बताती हैं. उन्हें जैविक खेती करने के लिए प्रोत्साहित करती हैं. वह बताती हैं कि उनकी टीम पिछले कई सालों से इस कार्य में लगी है. पूर्वी सिंहभूम, सरायकेला व अन्य जिलों में जाकर उनकी टीम वर्कशॉप का आयोजन कर किसानों को जैविक खेती के बारे में बताती है. जैविक खाद का उपयोग कर उपजायी सब्जी व अनाज का दाम ज्यादा मिलने से किसान पुरानी कृषि पद्धति पर लौट रहे हैं.

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नाटक के जरिये जनजातीय जीवन स्तर सुधारने में जुटे

सरायकेला-खरसावां जिले के राजनगर डिबाडीह निवासी धानु हांसदा बहुमुखी प्रतिभा के धनी हैं. वह अपनी प्रतिभा, लगन व दृढ़ इच्छाशक्ति के दमखम पर अलग पहचान भी बना रहे हैं. धानु को नाट्य कला में महारथ हासिल है. वह राष्ट्रीय व अंतरराष्ट्रीय नाट्य महोत्सव में अपनी प्रतिभा दिखा चुके हैं. वह जनजातीय व हिंदी थियेटर में समान रूप से काम करते हैं. पिछले दिनों उनकी टीम ने औरंगाबाद में आयोजित राष्ट्रीय स्तर के नाट्य महोत्सव में भाग लिया था. इसमें उनकी टीम ने बोल पचासी हिंदी नाटक का मंचन किया. वहीं दिल्ली व आसाम में संताली नाटक जुगी तिरियो का मंचन किया.

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धानु हांसदा जगन्नाथपुर पॉलिटेक्निक कॉलेज से डिप्लोमा इन मैकेनिकल इंजीनियरिंग के छात्र हैं. धानु बताते हैं कि नाट्य कला व एक्टिंग की बारीकी की जानकारी उन्हें अपने बड़े पिता जितराई हांसदा से मिली है. उनका कहना है कि हर किसी में कोई न कोई टैलेंट होता है. अपनी प्रतिभा को जान-समझ कर अपने आत्मविश्वास के स्तर को बढ़ाना सुकून से जीने और आगे बढ़ने के लिए जरूरी है.

परिवर्तन लाने के मकसद से कर रहीं साहित्य सृजन

पूर्वी सिंहभूम जिले के चाकुलिया बरदीकानपुर निवासी यशोदा मुर्मू संताली साहित्यकार हैं. उन्होंने 10 से भी ज्यादा पुस्तकें लिखी हैं. वह साहित्य सृजन के अलावा सामाजिक व सांस्कृतिक कार्यों में काफी सक्रिय रहती हैं. वह हमेशा संताल समाज के उत्थान व प्रगति को लेकर चिंतित रहती हैं. उनकी सभी किताबें समाज के लोगों को आगे बढ़ने के लिए प्रेरित व प्रोत्साहित करती हैं. अपनी लेखनी व साहित्य सृजन के माध्यम से समाज के लोगों को मोटिवेट करती हैं.

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यशोदा मुर्मू दूरदर्शन केंद्र व आकाशवाणी केंद्र में सदस्य रह चुकी हैं. वहीं, साहित्य अकादमी नयी दिल्ली में भी सलाहकार के रूप में अपना योगदान दे चुकी हैं. वर्तमान समय में यशोदा मुर्मू दिल्ली में रहती हैं. पिछले दिनों उन्होंने विश्व आदिवासी दिवस को ध्यान में रखकर आदिवासियों को एकजुट करने के मकसद से रन फॉर इंडीजिनस पीपुल प्रोग्राम का आयोजन किया. जिसमें दिल्ली में रह रहे सैकड़ों आदिवासी समाज के लोग जुटे थे. विश्व आदिवासी दिवस के दिन भी उनके नेतृत्व में कई कार्यक्रम आयोजित किये जायेंगे.

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