वीर रानी अब्बक्का, आम महिला होते हुए भी बेहद खास थीं. घुड़सवारी, तलवारबाजी व धनुर्विद्या में महारत हासिल होने के साथ ही वह प्रशासनिक गुण से भी लैस थीं. उनकी रणनीति दुश्मन को हमेशा अबूझ बनाये रखती थी. कहानी करीब पांच सौ साल पुरानी है. पुर्तगाल के व्यापारी हिंद महासागर के समुद्री रास्तों पर कब्जा कर चुके थे. इसके बाद वे भारत पर राज करने की कोशिश में थे, इसी दौरान उनका सामना दक्षिण भारत के पश्चिमी तट पर स्थित उल्लाल के सिंहासन पर बैठी योद्धा रानी अब्बक्का से हुआ,
जिसने पुर्तगालियों को नाको चने चबाने पर मजबूर कर दिया. उल्लाल उस समय विजयनगर साम्राज्य की एक रियासत थी. इस क्षेत्र को तुलुनाडू कहते हैं. उल्लाल अभी कर्नाटक की एक प्रशासनिक इकाई है. पिछले दिनों कर्नाटक दौरे के दौरान पीएम नरेंद्र मोदी ने रानी अब्बक्का की वीरता की चर्चा की थी. बात सन् 1525 की है. अब्बक्का के शासनकाल में समुद्र के रास्ते उल्लाल से मध्य-पूर्व के देशों को मसाले, चावल व कपड़े का निर्यात होता था.
यहां व्यापार की अपार संभावनाओं ने पुर्तगालियों को इस नगर की तरफ आकर्षित किया. पुर्तगाली उस समय तक गोवा पर कब्जा कर चुके थे. दक्षिण भारत के कई क्षेत्र उनके प्रभाव में थे. इसी क्रम में पुर्तगाली बेड़ा उल्लाल पहुंचा. वहां पहुंच कर वे वहां के उत्पादों के दाम अपनी मर्जी से तय करने लगे और उल्लाल के व्यापारियों पर सस्ते दाम पर माल बेचने का दबाव बनाने लगे. इसके बाद रानी अब्बक्का ने अपने राज्य के उत्पादों को पुर्तगालियों देने से मना कर दिया और पुर्तगालियों को उल्लाल से खदेड़ दिया. भारत में अपना दबदबा बढ़ा रहे पुर्तगालियों ने इसके बाद भी कई बार यहां प्रवेश की कोशिश की, लेकिन रानी अब्बक्का हर बार ढाल बन कर रक्षा के लिए खड़ी रहीं.
जानकारों का मानना है कि देश के ज्ञात इतिहास में वह ऐसी अंतिम योद्धा थीं, जिसे अग्निबाण चलाने में निपुणता थी. नारियल की सूखी पत्तियों को खाने के तेल में डुबोकर इस बाण को बनाया जाता है. सन् 1555 के हमले में अब्बक्का ने इन्हीं अग्निबाणों को पुर्तगाली जहाजों पर दागा था.
‘अभया रानी’ का मिला था दर्जा : रानी अब्क्का ने उल्लाल नगर में1525-1570 तक शासन किया. उस वक्त उल्लाल में पितृवंशीय की जगह मातृवंशीय परंपरा थी. इसी के चलते अब्बक्का ने सिंहासन संभाला था. उनकी बहादुरी के कारण ही उन्हें ‘अभया रानी’ भी कहा जाने लगा था. अपने राज्य में हिंदू, मुस्लिम, जैन सभी धर्मों के लोगों को बराबर सम्मान दिया था. उन्हें एक न्यायप्रिय शासक माना जाता है.
आज भी उल्लाल नगर में ‘वीर रानी अब्बक्का उत्सव’का आयोजन होता है. इसमें बहादुरी की मिसाल पेश करने वाली महिलाओं को वीर रानी अब्बक्का प्रशस्ति पुरस्कार से सम्मानित किया जाता है. यहां की लोकगीतों व लोक रंगमंच में आज भी उनकी झलक दिखती है. कन्नड़ बदुक तालुक में तुलुनाडू म्यूजियम में उनकी जीवनगाथा देखी जा सकती है. भारतीय नौसेना ने उनके सम्मान में एक इनशोर पेट्रोलिंग वेसल का नामकरण किया है.