How to Get Rid of Reels Shorts Tiktok Addiction – इंस्टाग्राम के रील्स और यूट्यूब के शॉर्ट्स ने इन दिनों लोगों को दीवाना बना रखा है. जहां कई लोग अपने फोन में इन्हें देखने में अपना अच्छा-खासा समय जाया कर दे रहे हैं, वहीं इन शॉर्ट वीडियोज को बनानेवालों की भी कोई कमी नहीं है. हाल ही में कई मनोवैज्ञानिकों ने रील्स बनाने के शौक पर अध्ययन किया है. साइंस डायरेक्ट मैगजीन ने इससे संबंधित एक आलेख हाल ही में प्रकाशित किया है. इसमें रील्स बनाने को लेकर युवाओं पर पड़नेवाले मनोवैज्ञानिक असर का अध्ययन किया गया है. वहीं, हार्वर्ड बिजनेस रिव्यू ने स्क्रॉलिंग एडिक्शन पर अध्ययन रिपोर्ट जारी की है. दोनों में रील्स के बहुत अधिक देखने या बनाने से नकारात्मक मानसिकता विकसित होने का जिक्र किया गया है. अध्ययन में बताया गया है कि इंस्टाग्राम रील्स देखनेवाले लोग भारत में सबसे अधिक हैं.
रील्स पर कर रहे समय की बर्बादी
रील्स को लेकर किया गया अध्ययन बताता है कि रील्स देखने के चलते लोग समय का दुरुपयोग कर रहे हैं. इसके फेर में घंटों वक्त निकल जाता है और लोगों को पता ही नहीं चलता. इससे उनके काम पर असर पड़ रहा है. लोगों में डिप्रेशन यानी अवसाद की समस्या देखने के लिए मिल रही है. लोग कई बार रील्स देखकर खुद में खामी ढूंढ़ने लगते हैं. खुद की सामनेवाले से तुलना करने लगते हैं. सामने वाले जैसा बनने की कोशिश करने लगते हैं. इसके अलावा लोग खुद भी रील्स बनाना चाहते हैं. जब उनका रील्स वायरल नहीं होता या व्यूज नहीं मिलता है, तो उन्हें गुस्सा और चिड़चिड़ापन महसूस होने लगता है. यह धीरे-धीरे डिप्रेशन में बदल जाता है.
टिकटॉक के बाद आये हैं रील्स और शॉर्ट्स
रील्स एक तरह का इंस्टाग्राम पर शॉर्ट वीडियो होता है. शुरुआत में यह रील्स 30 सेकेंड का हुआ करता था, लेकिन अब इसे बढ़ाकर 90 सेकेंड कर दिया गया है. रील्स ऑर शॉर्ट्स का चलन तब से शुरू हुआ, जब भारत में टिकटॉक बंद हुआ. इसके बंद होते ही इंस्टाग्राम पर लोग वीडियो डालने लगे. रील्स में कई तरह के वीडियोज होते हैं, जैसे- इंफॉर्मेशनल, फनी, मोटिवेशनल, डांस आदि.
क्रिएटिविटी भी जगाता है रील्स
रील्स क्रिएटिविटी से भरे होते हैं, जो लोगों को देखने के लिए बार बार प्रेरित करती है. यह नयी-नयी सोच को भी जन्म देता है. अब क्रिएटिव सेक्टर के कई बड़े-बड़े कलाकार भी रील्स और मीम्स बनाने लगे हैं.
Also Read: YouTube: गलत सूचना और कंटेंट में हेरफेर के खिलाफ यूट्यूब करेगा कार्रवाई
बच्चों की पढ़ाई भी होती है प्रभावित
रील्स के एडिक्शन के चलते बच्चे पढ़ाई पर फोकस नहीं कर पाते हैं. देर रात रील्स देखने के चक्कर में स्लीपिंग पैटर्न डिस्टर्ब हो जाता है. नींद नहीं पूरी होने से तनाव होने लगता है. आंखें कमजोर होने लगती हैं. फिजिकल एक्टिविटी कम होने से बच्चे मोटापे का शिकार हो जाते हैं.
रील्स के एडिक्शन से ऐसे पायें छुटकारा
रील्स देखने में जो समय बिता रहे हैं, वह दोस्तों के साथ गुजारें
फिजिकल एक्टिविटी बढ़ाएं
लगातार रील्स देखने के कारण बच्चे वर्चुअल ऑटिजम के शिकार हो रहे हैं. इससे लर्निंग क्षमता कम होने और बोलना देर से शुरू करने जैसी समस्या हो रही है.
बच्चे को चश्मा लगा है, तो उसके लेंस को मियोस्मार्ट लेंस में बदलवा दें. इस चश्मे के लेंस का नंबर या तो वहीं रुक जाता है या नंबर बढ़ने की स्पीड कम हो जाती है.
Also Read: Meta ने अपने AI टूल को बनाया ओपन सोर्स, जानिए इससे क्या होगा कंपनी को फायदा
रील्स के नशे पर मनोवैज्ञानिकों की क्या राय है?
मनोवैज्ञानिकों का मानना है कि रील्स भी सोशल मीडिया एडिक्शन का ही एक हिस्सा है. यह 15 से 35 साल तक के युवाओं में ज्यादा होता है. ऐसे लोग रील्स के फॉलोअर्स को ही अपना दोस्त मानने लगते हैं. वर्चुअल दोस्त को ही असली मानने लगते हैं. उनके कमेंट्स को ही दिल से ले लेते हैं. इस कारण कभी-कभी डिप्रेशन का शिकार हो जाते हैं. यह एक प्रकार की लत है और इससे बचने की जरूरत है. वर्चुअल दुनिया आपको शारीरिक और मानसिक दोनों रूप से बीमार कर रही है. इससे बचने के कई उपाय हैं. इस पर ध्यान देना चाहिए.