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अहमदाबाद के साबरमती आश्रम में स्वतंत्रता दिवस के मौके पर हजारों पर्यटक घूमने आते हैं
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साबरमती आश्रम को गांधी आश्रम और सत्याग्रह आश्रम के नाम से भी जाना जाता है
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देशभक्ति के उसी दौर को महसूस करना हो तो अहमदाबाद में स्थित साबरमती आश्रम जरूर जाएं
Independence Day 2023 Trip: भारत को अंग्रेजों से आजाद कराने में राष्ट्रपिता महात्मा गांधी (Mahatma Gandhi) के योगदान को भला कौन भूल सकता है. स्वतंत्रता दिवस (Independence Day) पर आप अहमदाबाद के साबरमती आश्रम (Sabarmati Ashram) जरूर घूमने जाएं. यहां गणतंत्र दिवस और स्वतंत्रता दिवस के मौके पर हजारों पर्यटक घूमने आते हैं.
भारत की आजादी की बात हो और राष्ट्रपिता महात्मा गांधी का नाम न आए, ऐसा मुमकिन नहीं. महात्मा गांधी ने देश की आजादी के लिए बड़ा योगदान दिया. उनकी कई यात्राएं, अंग्रेजी सामान का बहिष्कार, उनका चरखा, उनका जीवन सब कुछ एक आदर्श बन गया. ऐसे में आपको देशभक्ति के उसी दौर को महसूस करना हो तो अहमदाबाद में स्थित साबरमती आश्रम जरूर जाएं. साबरमती आश्रम को गांधी आश्रम और सत्याग्रह आश्रम के नाम से भी जाना जाता है.
साबरमती आश्रम की स्थापना
गांधीजी ने साबरमती आश्रम से नमक सत्याग्रह का नेतृत्व किया, जिसे दांडी मार्च भी कहा जाता है. इसे सत्याग्रह आश्रम, साबरमती आश्रम भी कहा जाता है. साबरमती आश्रम को भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन पर इस मार्च के महत्वपूर्ण प्रभाव की पहचान के लिए भारत सरकार द्वारा एक राष्ट्रीय स्मारक नामित किया गया है.
एक वकील और गांधी मित्र जीवनलाल देसाई ने 25 मई, 1915 को गांधीजी के भारत आश्रम के लिए पहले स्थान के रूप में कोचरब बंगला खोला. उस समय आश्रम का नाम सत्याग्रह आश्रम था. दूसरी ओर, गांधी खेती और पशुपालन सहित विभिन्न प्रकार की गतिविधियों में संलग्न होना चाहते थे, जिसके लिए बड़ी मात्रा में उपयोगी भूमि की आवश्यकता होती थी.
इस प्रकार, दो साल बाद, 17 जून, 1917 को, आश्रम को साबरमती नदी के तट पर 36 एकड़ की जगह पर स्थानांतरित कर दिया गया और साबरमती आश्रम के रूप में जाना जाने लगा.
गांधी स्मारक संग्रहालय, एक संग्रहालय, अब आश्रम के भीतर स्थित है. यह मूल रूप से आश्रम, हृदय कुंज में गांधी की अपनी झोपड़ी में स्थित था.
संग्रहालय का निर्माण 1963 में वास्तुकार चार्ल्स कोरिया के डिजाइन के बाद किया गया था. इसके बाद संग्रहालय को खूबसूरती से निर्मित और सुसज्जित संग्रहालय भवन में स्थानांतरित कर दिया गया, जिसे 10 मई, 1963 को भारत के प्रधान मंत्री जवाहरलाल नेहरू द्वारा खोला गया था. फिर, स्मारक सेवाएं चल सकती थीं.
राष्ट्रीय स्मारक
गांधीजी का देहांत होने के बाद उनकी स्मृतियों को जीवित रखने के उद्देश्य से एक राष्ट्रीय स्मारक को भी यही स्थापित किया गया है. गाँधी स्मारक निधि नाम के संघठन ने भी यह फैसला किया है कि वे आश्रम में गांधीजी से सम्बंधित भवनों को सुरक्षा देगे.
इसी कारण से साल 1951 में साबरमती आश्रम सुरक्षा एवं स्मृति न्यास की शुरुआत हुई. ये न्यास गांधीजी के आवास, ह्रदयकुञ्ज, उपासनाभूमि (प्रार्थना स्थल) एवं मगन आवास के लिए सुरक्षा के काम करता है.
निवास स्थान
1915 से 1933 तक गाँधीजी इस आश्रम में रहे थे. उस समय वे एक छोटी सी कुटिया में रहा करते थे जिसको अब ‘हृदय-कुञ्ज’ कहते है. ये इतिहास की दृष्टि से भी बहुत महत्व का स्थान है चूँकि यही पर उनकी मेज, पत्र, खादी का कुर्ता इत्यादि मिलते है.
हृदय-कुञ्ज के दाई तरफ ‘नंदिनी’ है. ये अब ‘अतिथि-कक्ष’ भी है जहाँ पर देश-विदेश के आने वाले मेहमान रुकते है. इसी के पास विनोबा भावे की कुटिया ‘विनोबा कुटिया’ भी है जिसमे वे एक समय ठहरे थे.
ह्रदय कुंज
ये कुटिया आश्रम के मध्य स्थान पर स्थित है जिसका नाम ‘काका साहब कालेकर’ ने दिया था. 1919 से 1930 के मध्य का समय गांधीजी ने इसी स्थान पर व्यतीत किया था. इसी जगह से गाँधीजी ने अपनी दांडी यात्रा भी शुरू की थी.
विनोबा-मीरा कुटीर
1918 से 1921 के मध्य इसी स्थान पर आचार्य विनोबा भावे में कुछ माह तक निवास किया था. इसी प्रकार से गाँधीजी की विचारधारा से प्रभावित हुई ब्रिटिश महिला मेडलीन स्लेड भी इसी स्थान पर रही थी. गाँधीजी ने इस महिला का नाम ‘मीरा’ दिया था. ऐसे ही इन दोनों ही लोगो के नाम पर इस कुटिया को इसका नाम दिया गया था.
प्रार्थना भूमि
यहाँ पर आकर हर दिन आश्रम में रहने वाले लोग प्रातः एवं साय काल की प्रार्थना करते है. ये भूमि गाँधीजी के ऐतिहासिक फैसलों की भी गवाह रह चुकी है.
नंदिनी अतिथिगृह
इस आश्रम से ही कुछ दूरी में गेस्ट हाउस नंदिनी है. इस स्थान पर देश के विभिन्न स्वतंत्रता सेनानी जैसे – जवाहर लाल नेहरू, राजेन्द्र प्रसाद, सी. राजगोपालाचारी, दिनबंधु एंड्रयूज एवं रविंद्रनाथ इत्यादि अहमदाबाद आने पर रुका करते थे.
उद्योग मन्दिर
गाँधी जी ने देश को स्वतंत्र करने के लिए हाथो से बने खादी को तैयार करने की योजना बनाई थी. ऐसे उन्होंने मानवीय परिश्रम को ही आत्मनिर्भरता एवं आत्मसम्मान का प्रतीक बताया था. इसी स्थान पर रहकर गांधीजी ने अपने वित्तीय सिद्धांतो को व्यवहारिक रूप प्रदान किया था. इसी जगह पर उन्होंने चरखे पर सूत कातने के काम के द्वारा कपडा बनाने को शुरू किया था.