डॉ नीरज कुमार
सामाजिक कार्यकर्ता:
जिले में जितने भी औरत व नाबालिक लड़कियों की तस्करी होती है उसमें 90% आदिवासी नाबालिक लड़कियां होती है जिसकी उम्र 14 से 17 वर्ष तक की होती है. जबकि 10 प्रतिशत बालिका व महिलाएं अनुसूचित जाति तथा मुस्लिम समुदाय से होती है. अधिकांश मामलो में पाया गया है कि इनकी सूत्रधार स्थानीय महिलाए एवं करीबी रिश्तेदार होते हैं. जिन्हें बड़े शहरों में रहने के स्वप्न, अच्छी नौकरी व पगार के साथ-साथ ऐश्वर्य युक्त जीवन का सब्ज बाग दिखाते है.
कमोवेश यही स्थिति हमारे जिले में महिला एवं नाबालिग बालिका के तस्करी (ट्रैफिकिंग) को जन्म देती है. अधिकांश तस्करी जाति, रिश्तेदारों, पड़ोसियों और दोस्तों द्वारा की जाती है. तस्करी में उनकी गरीबी, टूटती बिखरती सामाजिक एवं पारिवारिक व्यवस्था एवं दरकती नैसर्गिक अर्थव्यवस्था बहुत मायने रखती है.
गोड्डा जिले के नौ प्रखंडों में से बोआरीजोर का सुदूरवर्ती इलाका, सुंदरपहाड़ी की दुर्गम पहाड़ी एवं पोड़ैयाहाट की भीतरी व गोड्डा प्रखंड के भीतरी क्षेत्र में अवस्थित संताल व पहाड़िया आदिमजाति सामुदायिक वसाहत मानव तस्करी की चपेट आये दिन आता रहता है. जिले में जितने भी औरत व नाबालिक लड़कियों की तस्करी होती है उसमें 90% आदिवासी नाबालिक लड़कियां होती है जिसकी उम्र 14 से 17 वर्ष तक की होती है.
जबकि 10 प्रतिशत बालिका व महिलाएं अनुसूचित जाति तथा मुस्लिम समुदाय से होती है. अधिकांश मामलो में पाया गया है कि इनकी सूत्रधार स्थानीय महिलाए एवं करीबी रिश्तेदार होते हैं. जिन्हें बड़े शहरों में रहने के स्वप्न, अच्छी नौकरी व पगार के साथ-साथ ऐश्वर्य युक्त जीवन का सब्ज बाग दिखाते है एवं एक साथ 8-10 नाबालिक बालिकाओं व युवतियों को लेकर रात अंधेरे में बस स्टैंड या स्थानीय रेलवे स्टेशन जैसे जसीडीह,
गोड्डा, पाकुड़ व भागलपुर पहुचाती है व इन्हें रास्ते में बताया जाता है कि कोई भी पूछे तो बताये की वे पढ़ाई के लिए जा रही या संबंधी के पास जा रही है. इन्हें सबसे पहले एक ट्रांजिट जगह में रखा जाता है जहां से कि मोल भाव, बालिकाओं की शारीरिक स्थिति व अन्य कारकों के हिसाब से ले जाने वाले एजेंट को पैसा देकर उन्हें अगले स्थलों यानि घरों, ढावों, होटलों में पहुंचाया जाता है. ये अधिकांशतः दिल्ली, जयपुर, सूरत, मुंबई, पुणे के साथ -साथ वर्तमान में केरल तक पहुंचाये जाते हैं. जहां पर उन्हें जबरन श्रम के साथ वेश्यावृति के धंधे में भी भेजा जाता है. इसके अलावे इनमें से युवतियों एवं नाबालिग बालिकाओं को नशे के सामानों की तस्करी के साथ-2 अन्य लड़कियों व महिलाओं को फंसाने हेतु तैयार किया जाता है.
अधिकांश मामलों में देखा जाता है कि उनके माता-पिता को घर में थोड़ी सी रकम दलालों द्वारा दी जाती है एवं उनकी आंशिक सहमति के आधार पर बालिका का शिक्षा एवं नौकरी के नाम पर इन्ही शहरों में विभिन्न दलालो के माध्यम से पहुंचाया जाता है. कई बार तो तस्करी शादी के नाम पर की जाती है. स्थानीय लड़का शादी के नाम पर बहला- फुसलाकर नाबालिग को प्रेम जाल में फंसाकर इन शहरों में ले जाता है जहां कि दलालों के हाथो में सौंप दिया जाता है जहां से कि शोषण की प्रक्रिया की शुरुआत हो जाती हैं.
कई बार तस्करी में फंसी हुई बालिकाएं अचानक भाग खड़ी होती है और वो अगर पुलिस के हाथ पड़ती तो इन्हें बालगृह अथवा महिला गृह में आवासित कराया जाता है जहां से उनको अपने गृहों जिले में भेजने में महीनों लग जाते हैं. कई बार तो बोआरीजोर एवं सुंदरपहाडी प्रखंडो से तस्करी में फंसी बालिका 10-20 के गुच्छों में बरामद की जाती है एवं उन्हें सरकार बालकल्याण समित, पुलिस एवं चाईल्ड लाईन के मार्फ़त गृहों का पता करा कर भेजा जाता है. कुछ नाबालिग बालिकाओं जो कि बोआरीजोर एवं सुंदरपहाड़ी से आती है बताती है कि उन्होंने अपनी मर्जी से दलालों को सौंपा क्योंकि वो अपनी सौतेली मां, शराब के नशे धुत पिता व भाई से काफी परेशानी रहती थी एवं उन्हें खाने तक सही से नहीं मिल पाता था. अतः वो अपनी जिंदगी बचाने हेतु तस्करी वाले दलालो के साथ जाने का फैसला लिया.
कुल मिला जुलकर देखा जाय तो तस्वीर यही उभरती है कि जब परिवार उजड़ता है, समाज टूटता है व इनकी व्यवस्थाएं बिखरती है, साथ ही साथ आर्थिक उपार्जन के साधन सीमित होने लगते हैं तो मानव तस्करी खासकर नाबालिग बालिका व महिला तस्करी को जन्म देती है. हाल ही में कोविड महामारी के दौरान व उसके ठीक बाद कई सारी नाबालिग बालिकाए एवं महिलाएं तस्करों के चंगुल में फंसकर दरिंदगी में फंस गयी.
इसके लिए सबसे जरुरी है की आजीविका के साधन मजबूत किया जाये, नाबालिक बालिका एवं महिलाओं का सामाजिक सुरक्षा तंत्र बहल हो, शिक्षा तंत्र को और मजबूत करने से साथ-साथ इब मुद्दों पर व्यापक जागरूकता से साथ-साथ स्थानीय समाज संवेदनशील बनाए जाए. पंचायत, प्रखंड व जिले स्तर पर बाल व महिला संरक्षण व्यवस्था को मजबूत व जिम्मेदार भी बनाये जाने की जरूरत है. तभी बालिका एवं महिला तस्करी में कमी लायी जा सकेगी.
इसके लिए यह भी जरूरी है कि ग्रामस्तर पर अवस्थित ग्राम बाल संरक्षण समिति को पुनर्गठित कर उन्हें प्रशिक्षित किया जाये एवं किसी गैर सरकारी संगठनों द्वारा उनकी मॉनिटरिंग करायी जाये ताकि गांव में आने जाने वाले बाहरी व्यक्ति गांव से बहार जाने वाले बालिकाओं एवं युवतियों पर पैनी नजर रखी जाये. इसके साथ-साथ प्रखंड व जिलास्तरीय बाल संरक्षण समिति को भी जिम्मेदार व सशक्त बनाने की जरूरत है ताकि तस्करी के मामले को सख्ती से निपटा जा सके.
पंचायतस्तर पर पलायन पंजीकरण की भी व्यवस्था को सरकारी अधिसूचना के माध्यम से शुरू करना पड़ेगा ताकि प्रत्येक व्यक्ति कहां जा रहा है एवं किसके साथ जा रहा है की निगरानी किया जा सके. सबसे महत्वपूर्ण बात यह है की मानव-तस्करी में फंसी नाबालिग बालिका एवं महिलाओं के पास असली पता होता नहीं है. उन्हें किसी भी अज्ञात स्थल पर ले जाया जाता है. जहां से की उन्हें निकलना काफी मुश्किल होता है.
अतः यह भी जरूरी है कि आस-पास के शिक्षा संस्थान नियमित रूप से संचालित हो एवं ऐसे समुदाय के बालक-बालिकाओं को विशेष रूप से नामांकित कर शिक्षा का कार्य जारी रखा जाये ताकि अगर कभी भी मानव-तस्करी के चंगुल में फंसे तो अपने शिक्षा व ज्ञान के बल पर निकल सके. इसके अलावा प्रत्येक जिले एवं प्रखंडों मानव तस्करी विरोधी दस्ता तैयार कर उन्हें प्रशिक्षित किया जाये, जो हमेंशा निगरानी रखे. स्थानीय स्वयंसेवी संगठनों की मदद से ऐसे क्षेत्र की मैपिंग करे तथा उनके लिए विशेष सरकारी सहायता कार्यक्रम की शुरुआत करे.
सबसे ज्यादा जरूरी है कि मानव तस्करी से वापस किये गये बालिकाओं व युवतियों का अच्छे से परामर्श सत्र आयोजन कर उन्हें अपने जीवन जीने की व्यवस्था सरकारी अथवा सामुदायिक स्तर पर भी की जानी चाहिए. इसके साथ ही प्रत्येक पुलिस थानों में मानव तस्करी में लिप्त व पकडे गये दलालों की सूची भी संलग्न होनी चाहिए. इसके साथ ही थानों से जुड़े चौकीदारों को यह जिम्मा दिया जाना चाहिए की उसके क्षेत्र में किन-किन लोगो का आना जाना लगातार हो रहा है जो की बाहरी किस्म के व्यक्ति है अथवा अजनबी है.
खासकर अजनवी महिलाओं पर ज्यादा ध्यान देना काफी जरूरी है. स्थानीय हाट, बाजार अथवा मेले में कौन-कौन से अजनबी किस्म के व्यक्ति किन-किन नाबालिगों व युवतियों से मिलते है इस पर भी निगरानी की आवश्यकता है. गोड्डा जिले के स्तर पर जहां भी कोयला अथवा पत्थर खनन क्षेत्र है वहां पर भी सख्ती से निगरानी व स्थानीय समुदाय को जागरूक करते रहना आवश्यक होगा. इसके साथ-साथ स्थानीय एवं पारंपरिक ग्राम सभा व ग्राम प्रधान को मानव तस्करी को रोकने हेतु शिक्षित करना होगा ताकि समुदाय स्तर पर सुरक्षा तंत्र को और भी सशक्त किया जा सके. इन उपायों के साथ-साथ लगातार सामुदायिक एवं सरकारी अनुश्रवण से ही गोड्डा जिले को मानव तस्करी मुक्त बनाया जा सकेगा.
“मेरे पिताजी नशा करते हैं, मेरे भाई भी नशा करते हैं, परिवार में कोई भी कमाने वाला नहीं, भाई शराब पीकर झंझट करता, मेरी मां एवं पिता की पिटाई करता, जंगल खत्म हो गया जमीन भी ठीक से फसल नहीं देती है. तब हमने किसी बिचोलिये के मार्फत दिल्ली जाकर कुछ कमाई की, लेकिन इसके बदले हमें बहुत कुछ चुकाना पड़ा. फिर भाग कर पुलिस की मदद से अपने घर पहुंची. घर की स्थिति वही है.” मोनिका मलतो (काल्पनिक नाम)