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Independence Day 2023: अलीगढ़ की तवायफ स्वरूपा ने आजादी की लड़ाई में दिया था योगदान, अंग्रेजों ने दी थी फांसी

आजादी की लड़ाई में तवायफों का योगदान अविस्मरणीय रहा है. अलीगढ़ की देशभक्त तवायफ स्वरूपा उर्फ पुगलो वैश्या का नाम भी आजादी के इतिहास में दर्ज है. जैसा नाम है वैसा ही गुण था. स्वरूपा असाधारण सौंदर्य की मलिका थी. क्षत्रिय परिवार से ताल्लुक रखती थी.

Independence Day 2023: अलीगढ़ की देशभक्त तवायफ स्वरूपा उर्फ पुगलो वैश्या का नाम भी आजादी के इतिहास में दर्ज है. जैसा नाम है वैसा ही गुण था. स्वरूपा असाधारण सौंदर्य की मलिका थी. क्षत्रिय परिवार से ताल्लुक रखती थी. एक तुर्क सरदार की उस पर नजर पड़ गई और उसने उसका अपहरण करवा लिया. वह तुर्क सरदार भी देशभक्त के रंग में रंग चुका था. जिसका प्रभाव स्वरूपा पर भी पड़ा.

शराब पिला कर उगलवाती थी राज

1856 में तुर्क सरदार को अंग्रेजों ने पकड़ कर फांसी दे दी. यहां से स्वरूपा के इंतकाम की कहानी शुरू हुई. स्वरूपा रूप के बाजार की रौनक बन गई थी. जिले के हाकिम से लेकर दरोगा तक उसके तलबगार थे. महफिल में रात को शराब पिलाना और उनसे राज उगलवाना स्वरूपा का शगल बन चुका था. यदि कोई खतरा महसूस हुआ तो वह शराब में जहर भी दे देती थी.

स्वरुपा की पोल खुलने पर अंग्रेजों ने फांसी पर लटकाया

शराब में जहर मिलाकर न जाने कितने देशद्रोहियों और अंग्रेज की उसने जान ले ली थी. इस काम में उसका साथ एक ब्राह्मण का पुत्र देता था. स्वरूपा की कारगुजारियों की जब पोल खुली, तो अंग्रेजों ने स्वरूपा और उसके ब्राह्मण प्रेमी को फांसी पर लटका दिया. गांधी पार्क इलाके के मामू भांजा इमामबाड़े में आज भी स्वरूपा की कब्र बनी है. जो उसके देशभक्ति का सबूत है. यहां की इमारत खंडहर हो चुकी है.

स्वरूपा के अंदर था देशभक्ति का जज्बा

आजादी की लड़ाई में तवायफों का योगदान अविस्मरणीय रहा है. आजादी के अमृत महोत्सव के जिला संयोजक सुरेंद्र शर्मा बताते हैं कि वीरांगनाओं का योगदान भी अग्रणी रहा है. अलीगढ़ की 24 मातृशक्ति ऐसी हैं जिन्हें फांसी हुई है या फिर जेल गई है. मातृशक्ति स्वरूपा को पुगलो वैश्या के नाम से जाना जाता है. मामू भांजा इलाके में उनकी कब्र बनी हुई है. 1856 में अंग्रेजों ने इन्हें फांसी दी थी.

स्वरूपा एक क्षत्रिय कन्या थी. जिसे तुर्क सरदार ने चुरवा लिया था. तुर्क सरदार देशभक्त था. उसे बाद में अंग्रेजों ने फांसी दे दी थी. वहीं, तुर्क सरदार को फांसी दिए जाने के बाद स्वरूपा के पास जीवन यापन का साधन नहीं रहा. तुर्क सरदार के साथ रहने के कारण वह मुस्लिम हो गई थी. मुस्लिम होने के बाद वह रूप के बाजार में आकर बैठ गई, लेकिन स्वरूपा के अंदर देशभक्ति का जज्बा था.

1856 में कोल तहसील में बरगद के पेड़ पर दी थी फांसी

सुरेंद्र शर्मा बताते हैं कि अंग्रेज या अंग्रेजों के पिट्ठू जब यहां आते थे. उनको शराब में जहर देकर मार देती थी. स्वरूपा ने न जाने कितने गद्दारों को मौत की नींद सुला दी थी. जब अंग्रेजों को स्वरूपा के बारे में मालूम पड़ा तो 1856 में कोल तहसील में बरगद के पेड़ पर फांसी दे दी. आज भी पुगलो वैश्या की कब्र मामू भांजा में बनी हुई है. अब मामू भांजा इलाके में पुगलो के नाम से मार्केट बन गई है. मार्केट के पीछे इमामबाड़ा बना है. अब यह संपत्ति वक्फ बोर्ड के कब्जे में है.

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