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आजादी का अमृत महोत्सव : पूरा आकाश छू रही है आधी आबादी

महिलाएं अब अपनी सुरक्षा, सम्मान, पहचान और खुलकर जीने का अधिकार लेना भी जानती हैं और बतौर एक नागरिक अपना कर्तव्य निभाना भी. इसलिए स्वतंत्रता दिवस का अवसर भविष्य संवारने की उम्मीदों के रेखांकन का मौका भी है और देश की तरक्की में स्त्रियों की भागीदारी को मुड़कर देखने का मोड़ भी.

डॉ मोनिका शर्मा

भारतीय समाज के पारंपरिक ढांचे में महिलाओं के लिए तयशुदा छवि को तोड़ना आसान नहीं रहा है. संघर्ष और साहस के दम पर ही देश की आधी आबादी ने नयी सोच का ताना-बाना बुना है. पुरातन सोच से जूझते हुए प्रगति के पथ को चुना. आजादी के बाद भारतीय महिलाओं ने आशाओं को संजोये सशक्त-स्वावलंबी बनने की ना केवल राह चुनी, बल्कि निरंतर गतिशील भी रहीं. उम्मीदों के इसी धरातल पर बदलते समाज की नींव रखी. नतीजतन, आज खेलों की दुनिया से लेकर अंतरिक्ष, व्यवसाय और सैन्य क्षेत्र के मोर्चे तक, उनकी प्रभावी मौजूदगी है. जद्दोजहद और जज्बात के मेल को जीनेवाली भारतीय महिलाएं हर बीतते बरस के साथ और रफ्तार से तरक्की की सीढ़ियां चढ़ रही हैं. इसके चलते कामकाजी ही नहीं, सामाजिक-पारिवारिक जीवन में भी कई सकारात्मक बदलाव दिख रहे हैं.

सुखद है कि सात दशक से लंबी यात्रा में भारतीय स्त्रियां बहुत कुछ सहेजते हुए नया सृजित करने के मार्ग पर चली हैं. परिवार, संस्कार की थाती को कायम रखते हुए रक्षक बन देश की सीमाओं तक जा पहुंची हैं. रिश्तों के गणित की धुरी कही जाने वाली बहू-बेटियां आज गणित, अनुसंधान और अंतरिक्ष तक दखल रखती हैं. तकनीक की दुनिया से जुड़ी इन उपलब्धियों के बीच उनका मानवीय चेहरा भी दिखता रहा है. दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र में राष्ट्रपति के रूप में देश के सर्वोच्च संवैधानिक पद पर दूसरी बार एक महिला विराजमान हैं. जमीनी लड़ाई लड़ते हुए आसमान छूने के इस सफर में सबसे ज्यादा महिला पायलट भारत में हैं.

ज्ञात हो कि दूसरे देशों में केवल 5 प्रतिशत पायलट ही महिलाएं हैं, वहीं हमारे यहां सिविल एविएशन में 15 फीसदी से अधिक पायलट महिलाएं हैं. स्पेस मिशन के मौजूदा और भावी प्रोजेक्ट्स में महिला साइंटिस्ट नेतृत्वकारी भूमिका में हैं. बीते पांच वर्षों में तकनीक की दुनिया में महिलाओं की संख्या में 5 फीसदी की बढ़ोतरी भी हुई है. नेशनल सेंटर फॉर वीमेन एंड इंफॉर्मेशन टेक्नोलॉजी की नयी रिपोर्ट के मुताबिक, टेक इंडस्ट्री के वर्कफोर्स में महिलाओं की 26 प्रतिशत हिस्सेदारी है. कभी परंपरागत शैक्षणिक डिग्रियां लेकर घर बसाने की रवायत वाले भारतीय परिवेश में ‘स्टेम’ शिक्षा में भी बेटियों को बढ़ावा दिया जा रहा है.

‘स्टेम’ का अर्थ साइंस, टेक्नोलॉजी, इंजीनियरिंग और मैथ्स विषयों से है. यही वजह है कि 1980 में देश में इंजीनियरिंग की सभी डिग्रियों में 2 प्रतिशत रही महिलाओं की हिस्सेदारी में तेजी से बढ़ोतरी हुई है. चार साल पहले ऑल इंडिया सर्वे ऑफ हायर एजुकेशन की रिपोर्ट में सामने आया था कि इंजीनियरिंग और प्रौद्योगिकी क्षेत्र की 31 प्रतिशत डिग्रियां, महिलाओं द्वारा ली गयी थीं. पुरुषों के वर्चस्व वाले क्षेत्रों जैसे-विज्ञान, प्रौद्योगिकी, इंजीनियरिंग और गणित में बेटियों का नामांकन आज 43 प्रतिशत है. गौरतलब है कि बेटियों की भागीदारी का यह आंकड़ा अमेरिका, ब्रिटेन और जर्मनी जैसे देशों से भी ज्यादा है.

अच्छी बात है कि महिलाओं को सशक्त, सबल और आत्मनिर्भर बनाने की जद्दोजहद को समाज और परिवार का भी साथ मिल रहा है. हाल के वर्षों में कई कानूनी निर्णय और प्रशासनिक योजनाएं भी आधी आबादी की बेहतरी को बल और गति देने वाली रही हैं. गर्भपात, पैतृक संपत्ति में समान अधिकार, वैवाहिक बलात्कार, महिला क्रिकेटर्स को समान वेतन देने और भारतीय नौसेना में महिलाओं को शामिल किये जाने जैसे कई अन्य सार्थक निर्णय और नियम धरातल पर उतरे हैं. उच्चत्तम न्यायालय द्वारा ऐतिहासिक निर्णय में अविवाहित और विवाहित महिलाओं को 24 सप्ताह तक गर्भपात करवाने का अधिकार दिया गया है.

सेना की महिला ऑफिसर्स को स्थायी कमीशन दिये जाने से जुड़ा सुप्रीम अदालत का निर्णय भी कार्यबल में स्त्रियों की अहमियत समझाता है. वहीं, घरेलू मोर्चे पर सुप्रीम कोर्ट द्वारा दी गयी एक स्पष्ट टिप्पणी के बाद बेटियों को हर हाल में बेटों के बराबर ही पैतृक संपत्ति में अधिकार मिलेगा. बेटी को पैतृक संपत्ति में जन्म से ही साझीदार बनाते हुए अदालत ने वैधानिक रूप से बेटियों के जन्म के समय से ही उनके हमवारिश होने के अधिकारों को मान्यता दे दी है. श्रम शक्ति में महिलाओं की बढ़ती भागीदारी को देखते हुए 2016 में केंद्र सरकार द्वारा मातृत्व अवकाश को 12 सप्ताह से बढ़ाकर 26 सप्ताह किया गया था.

नेशनल स्टैटिस्टिकल ऑफिस के पीरियोडिक लेबर फोर्स सर्वे के मुताबिक, भारत में वर्ष 2017-18 में 17.5 प्रतिशत रही महिला श्रम बल की भागीदारी वर्ष 2020-21 तक 25 प्रतिशत बढ़ी है. निजी सेक्टर में ही नहीं, प्रशासनिक सेवाओं में भी बेटियों ने खुद को साबित किया है. संघ लोक सेवा आयोग 2022 की सिविल सेवा परीक्षा की टॉप तीन अभ्यार्थियों की सूची में बेटियां ही रही हैं. इनमें पहले और दूसरे स्थान पर जगह बनाने वाली बेटियां बिहार से रही हैं. ऐसे समाचार कभी पिछड़े माने जाने वाले राज्यों में भी बेटियों की शिक्षा के बदलते आयाम को सामने रखते हैं. शिक्षित महिलाओं की बढ़ती संख्या ने बाल विवाह, दहेज प्रथा और घरेलू मोर्चे पर असमानता के दंश को मिटाने में भी अहम भूमिका निभायी है. साथ ही उनके लिए नये क्षेत्रों के मार्ग खोलते हुए महिलाओं को कमतर आंकने की सोच पर लगाम लगायी है.

सेना में भर्ती के नियमों में बदलाव से लेकर जीवनसाथी या करियर के चुनाव तक, पूर्वाग्रही सोच मिट रही है. स्थितियां ऐसी हैं कि सुप्रीम कोर्ट ने नेशनल डिफेंस अकेडमी और सैनिक स्कूलों में लड़कियों द्वारा एंट्रेंस एग्जाम देने के मुद्दे पर भारतीय सेना को ‘रिग्रेसिव माइंडसेट’ बदलने की बात कह डाली. बदलती सोच का एक मिसाल भारतीय क्रिकेट बोर्ड से अनुबंधित महिला क्रिकेट खिलाड़ियों को पुरुषों के बराबर मैच फीस देने का हालिया फैसला भी है. इस निर्णय के बाद बीसीसीआइ महिला क्रिकेटर्स को समान वेतन देने वाला दुनिया का दूसरा बोर्ड है. हर क्षेत्र में समानता और सशक्त पहचान बनाने के अवसर मिलने से आधी आबादी के हिस्से पूरा आकाश आ रहा है. विचारणीय है कि भारत की अध्यक्षता में हो रही जी-20 की बैठकों में भी महिलाओं के नेतृत्व वाले विकास का विषय प्रमुखता से शामिल है.

हर रूढ़ि, हर बंधन से लड़ते हुए अपनी पहचान बनाने को प्रयासरत देश की बेटियों ने हर मोर्चे पर खुद को साबित किया है. महिलाएं अब अपनी सुरक्षा, सम्मान, पहचान और खुलकर जीने का अधिकार लेना भी जानती हैं और बतौर एक नागरिक अपना कर्तव्य निभाना भी. इसलिए स्वतंत्रता दिवस का अवसर भविष्य संवारने की उम्मीदों के रेखांकन का मौका भी है और देश की तरक्की में स्त्रियों की भागीदारी को मुड़कर देखने का मोड़ भी.

लोकतांत्रिक व्यवस्था वाले हमारे देश में महिलाएं राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री, मुख्यमंत्री, लोकसभा में विपक्ष की नेता और लोकसभा अध्यक्ष के साथ-साथ अन्य कई महत्वपूर्ण राजनीतिक पदों पर आसीन रही हैं. आधी सदी से ज्यादा की यात्रा में संविधान से मिले अधिकारों और समाज से मिले संबल से महिलाओं ने बहुत-सी उपलब्धियां हासिल की हैं. तयशुदा खांचे तोड़े हैं. सामुदायिक सोच को नयी दिशा में मोड़ा है. कई समस्याओं से मुठभेड़ आज भी जारी है, पर इन कोशिशों को समाज, परिवार और प्रशासनिक मोर्चे पर और बल मिले तो बेहतरी भरे बदलावों को और गति मिलेगी.आगामी पीढ़ी के लिए बेहतर परिवेश बनेगा.

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