मणिपुर हिंसा में शामिल दोनों समुदायों से जुड़े संगीतकारों ने माइकल जैक्सन के प्रसिद्ध गीत ‘मुझे अच्छे संगीत से प्यार है, इसका कोई रंग नहीं, इसकी कोई सीमा नहीं’ का जिक्र किया और कहा कि अशांति के इस माहौल को समाप्त करने में संगीत जादू सा असर डाल सकता है. कुकी और मैतेई दोनों समुदाय के संगीतकारों ने कहा कि मतभेदों को दूर करने में अभी भी देर नहीं हुई है और संगीत सबसे बेहतर मरहम का काम कर सकता है.
कुकी समुदाय के गायक ने क्या कहा
कुकी समुदाय के प्रसिद्ध गायक डोन्नी ने कहा, संगीतकार होने के नाते, हम सभी काफी अच्छा वक्त बिताते हैं. हम दूसरे समुदाय के लोगों से मिलते हैं और उनकी अद्भुत संगीत शैली को सुनकर हमारे संबंध बनते हैं. हम अक्सर एक-दूसरे के साथ बैठकर बात करते हैं और अपनी-अपनी जिंदगियों में क्या चल रहा है उसके बारे में जानते हैं. डोन्नी ने कहा, इन हालात की शुरुआत से पहले, हम मणिपुर के संगीत प्रेम को नई ऊंचाईयों पर ले जाना चाहते थे, जहां हर सप्ताह कोई न कोई समारोह होता रहता था. मेरा निजी तौर पर मानना है कि जब तक हिंसा नहीं भड़की थी तब तक महत्वाकांक्षी संगीतकार संगीत को एक मुख्य करियर विकल्प के रूप में ले रहे थे.
संगीतकार मोमो लैशराम को उम्मीद मणिपुर में जल्द होगी शांति बहाल
प्रसिद्ध ‘ड्रमर’ और मैतेई समुदाय के संगीतकार मोमो लैशराम भी यह मानते हैं कि घावों को भरने में संगीत एक दवा के रूप में काम कर सकता है. इंफाल से उन्होंने बताया, मौजूदा हालात अभी भी अस्थिर हैं. लेकिन अगर कोई चीज है, जो राज्य में शांति को बहाल कर सकती है तो वह है संगीत. उन्होंने कहा, संगीतकार होने के नाते हम सिर्फ यही जानते हैं कि कैसे संगीत के माध्यम से लोगों के दिलों को छुआ जाए. फिलहाल हम विस्थापित लोगों की मदद के लिए चंदा इकट्ठा करने के लिए कुछ इलाकों में संगीत कार्यक्रमों में गा-बजा रहे हैं। यही चीज है, जो हम कर सकते हैं. डोन्नी ने कहा, मुझे उम्मीद है कि शांति बहाल होगी और मैं फिर से संगीत कार्यक्रमों की गूंज सुन सकूंगा.
मणिपुर में 26 साल बाद दिखाई गई हिंदी फिल्म
जातीय हिंसा से प्रभावित मणिपुर में दो दशक से अधिक समय के बाद मंगलवार को बॉलीवुड सिनेमा की वापसी हुई. चुराचांदपुर में एक अस्थायी ओपन एयर थिएटर में पाकिस्तान के खिलाफ सर्जिकल स्ट्राइक पर आधारित एक हिंदी बॉलीवुड फिल्म दिखाई गई. रेंगकई में विक्की कौशल अभिनीत ‘उरी: द सर्जिकल स्ट्राइक’ को देखने के लिए बड़ी संख्या में लोग पहुंचे थे. इसका आयोजन आदिवासी संगठन ‘हमार छात्र संघ’ (एचएसए) ने सितंबर 2000 में ‘रेवोल्यूशनरी पीपुल्स फ्रंट’ द्वारा हिंदी फिल्मों पर लगाए गए प्रतिबंध के खिलाफ अपना विरोध व्यक्त करने के लिए किया गया था.
मणिपुर में आखिर बार 1998 में दिखाई गई थी हिंदी फिल्म
मणिपुर में आखिरी बार हिंदी फिल्म 1998 में ‘कुछ कुछ होता है’ दिखाई गई थी. इंडिजिनस ट्राइबल लीडर्स फोरम के एक प्रवक्ता ने बयान में कहा, दो दशक से अधिक समय से हमारे शहर में एक भी फिल्म प्रदर्शित नहीं हुई है. मैतेई लोगों ने लंबे समय से हिंदी फिल्मों पर प्रतिबंध लगा रखा है. उन्होंने कहा, आज का यह कदम उद्देश्य मैतेई समूहों की राष्ट्र-विरोधी नीतियों को चुनौती देना और भारत के प्रति अपना प्यार दिखाना है. यह संगठन खुद को कुकी जनजातियों की आवाज बताता है.
फिल्म दिखाने से पहले शहर से 63 किलोमीटर दूर बजाया गया राष्ट्रगान
फिल्म दिखाने से पहले राजधानी शहर से 63 किमी दूर स्थित ओपन एयर थिएटर में राष्ट्रगान बजाया गया. अधिकारियों ने बताया कि 12 सितंबर को प्रतिबंध लगाए जाने के एक सप्ताह के भीतर विद्रोहियों ने राज्य में दुकानों से एकत्रित किए गए हिंदी के 6,000 से 8,000 वीडियो और ऑडियो कैसेट जला दिए थे. आरपीएफ ने पूर्वोत्तर राज्य में इस प्रतिबंध की कोई वजह नहीं बतायी थी लेकिन केबल ऑपरेटरों ने कहा था कि उग्रवादी समूह को राज्य की भाषा और संस्कृति पर बॉलीवुड का नकारात्मक असर पड़ने की आशंका है.