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झारखंड के 1 लाख से अधिक कारीगरों को मिलेगा पीएम विश्वकर्मा योजना का लाभ, जानें डिटेल्स

पीएम विश्वकर्मा योजना में 13 हजार करोड़ रुपये का खर्च आयेगा तथा इससे 30 लाख पारंपरिक कारीगरों को लाभ होगा. वहीं, इस योजना से झारखंड के भी 1 लाख से अधिक कारीगरों को इसका लाभ मिलेगा.

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता में बुधवार को हुई केंद्रीय मंत्रिमंडल की बैठक में ‘पीएम विश्वकर्मा योजना’ को मंजूरी प्रदान कर दी गयी. योजना के तहत शिल्पकारों को एक लाख रुपये तक का लोन पांच प्रतिशत ब्याज पर दिया जायेगा. इसके माध्यम से गुरु-शिष्य परंपरा के तहत कौशल कार्यों को बढ़ाने वाले कामगारों का कौशल विकास किया जायेगा. केंद्रीय मंत्री अश्विनी वैष्णव ने बताया कि इस पर वित्त वर्ष 2023-24 से वित्त वर्ष 2027-28 के बीच पांच वर्षो की अवधि में 13 हजार करोड़ रुपये का खर्च आयेगा तथा इससे 30 लाख पारंपरिक कारीगरों को लाभ होगा. वहीं, इस योजना से झारखंड के भी 1 लाख से अधिक कारीगरों को इसका लाभ मिलेगा.

विश्वकर्मा जयंती के अवसर पर शुरू की जाएगी योजना

प्रधानमंत्री मोदी ने स्वतंत्रता दिवस के अवसर पर कहा था कि यह योजना विश्वकर्मा जयंती के अवसर पर (17 सितंबर) शुरू की जायेगी. वैष्णव ने बताया कि छोटे-छोटे कस्बों में अनेक वर्ग ऐसे हैं, जो गुरु-शिष्य परंपरा के तहत कौशल से जुड़े कार्यों में लगे हैं. पीएम विश्वकर्मा योजना के तहत पहले चरण में 18 पारंपरिक कार्य करने वालों को रखा गया है.

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किन वर्गों को मिलेगा लाभ

इनमें बढ़ई, नौका बनाने वाले, अस्त्र बनाने वाला, लोहार, हथौड़ा एवं औजार बनाने वाले, ताला बनाने वाला, सुनार, कुम्हार, मूर्तिकार, मोची, राज मिस्त्री, दरी, झाड़ू एवं टोकरी बनाने वाले, गुड़िया व खिलौना निर्माता, नाई, धोबी, दर्जी, मछली पकड़ने का जाल बनाने वाले आदि शामिल हैं.

क्या है योजना में

02 तरह की स्किल ट्रेनिंग : बेसिक व एडवांस

500 रुपये का दैनिक भत्ता रोजाना ट्रेनिंग के दौरान

01 लाख रुपये का लोन 5% ब्याज पर पहले चरण में

02 लाख का रियायती ऋण दूसरे चरण में मिलेगा

15000 की मदद आधुनिक उपकरण खरीदने के लिए

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दिया जायेगा विश्वकर्मा प्रमाणपत्र और पहचान पत्र

पीएम विश्वकर्मा योजना के तहत कारीगरों, शिल्पकारों को पीएम विश्वकर्मा प्रमाणपत्र प्रदान कर मान्यता भी दी जायेगी और पहचान पत्र भी दिया जायेगा. इस योजना के तहत कारीगरों को डिजिटल लेनदेन में प्रोत्साहन और बाजार समर्थन प्रदान किया जायेगा.

झारखंड के कितने कारीगरों को मिलेगा फायदा

भारत सरकार की आंकड़ों की मानें तो झारखंड में पंजीकृत कारीगरों की संख्या 1,07,940 है. ये सभी कारीगर पीएम विश्वकर्मा योजना का लाभ ले सकते हैं. इनमें से देश भर में 10 लाख जनजातीय कारीगर हैं.

कोरोना महामारी के बाद से कारीगरों की स्थिति में नहीं हुआ सुधार

झारखंड में कारीगरों की स्थिति कोरोना के बाद से अब तक ठीक तरह से नहीं सुधर सकी है. बता दें कि कोरोना में काम धंधे बंद हो जाने के कारण कई लोग बेरोजगार हो गये थे. सबसे अधिक परेशानी तो कुम्हारों को हुई है. हालत ये है कि उन्हें अब दिवाली और गर्मी के मौसम का इंतजार करना पड़ता है. कई कुम्हारों का ये भी कहना है कि मिट्टी का सामान बनाना अब पहले महंगा हो गया है. मिट्टी पकाने के लिए कोयला, गोबर का गोइंठा की जरूरत पड़ती है. आग से पकाने के दौरान कई बार बर्तन टूट जाता है, इस वजह से भी उन्हें भारी नुकसान होता है.

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राजमिस्त्री के प्रशिक्षण में झारखंड की स्थिति खराब

प्रधानमंत्री आवास योजना (ग्रामीण) के तहत होनेवाले राजमिस्त्री के प्रशिक्षण में झारखंड की स्थिति काफी खराब है. इसका पता 2019 में केंद्रीय ग्रामीण विकास मंत्रालय द्वारा जारी परफॉर्मेंस इंडेक्स डैश बोर्ड से पता चलता है. जहां राजमिस्त्री प्रशिक्षण के लिए पांच अंक निर्धारित किये गए थे, लेकिन इसमें से झारखंड को मात्र 0.64 अंक ही मिले थे. जबकि धनबाद, गोड्डा, जामताड़ा, कोडरमा व पाकुड़ का प्राप्तांक शून्य दर्ज किया गया था.

2006 में झारक्राफ्ट का किया गया था गठन

झारखंड राज्य बनने के बाद साल 2006 में कुटीर उद्योग को बढ़ावा देने के लिए झारक्राफ्ट का गठन किया गया. झारक्राफ्ट के गठन के बाद मधुपुर के महुआडाबर, मनियारडीह और खैरबन गांव में 16-16 लाख की लागत से तीनों जगह बुनकर शेड का निर्माण किया गया था. मगर, बुनकरों की अनदेखी के कारण यह उद्योग हाशिये पर चला गया और प्रशिक्षण पाकर भी कारीगर बेरोजगार हो गये. इसके पीछे कई वजहें हैं, लेकिन उपेक्षा की वजहों से काम नहीं मिल सका.

झारखंड में बुनकरों की हालत खस्ता

झारखंड में बुनकरों का हुनर संकट में है, हाथ खाली हैं और जीवन में अंधेरा पसरा है. जैसे-तैसे आजीविका चल रही है. ऐसी हालत देख बुनकरों की नयी पीढ़ी भी इस काम से भाग रही है. एक वक्त था जब लगभग पूरे झारखंड प्रक्षेत्र (तब अविभाजित बिहार) में बुनकरों का काम होता है. 1980 के बाद संताल परगना को छोड़ शेष जिलों में करीब 30 हजार से अधिक लोग इस काम में लगे थे, जिससे करीब दो लाख लोगों का पेट पलता था.

आज यह काम कोल्हान, पलामू, दक्षिणी और उत्तरी छोटानागपुर प्रमंडल के करीब 6000 परिवारों तक सिमट कर रह गया है. करीब 72 सोसाइटी चल रही हैं. कई मोहल्ले के लोग सीधे तौर पर इस पेशे से जुड़े हैं. इनके उत्पाद पर जीएसटी तो लगता, लेकिन राज्य सरकार से मदद ‘नहीं के बराबर’ मिल रही है.

बुनकरों की आर्थिक तंगी कायम :

सोसाइटी के इरबा स्थित सेंटर पर काम करनेवाली अजमेरी खातून रोजाना आठ घंटे काम करके 400 से 500 रुपये ही कमा पाती हैं. कहती हैं : आज की महंगाई के हिसाब से ये पैसे कम हैं. हालांकि, संस्था हर तरह की मदद करती है. जरूरत में हमलोगों के साथ खड़ी रहती है. सफीना, सबीला खातून जैसी कई महिलाएं इस पेशे से जुड़कर घर को सहयोग कर रही हैं.

लाखों की मशीनें हो रहीं बेकार

मधुपुर की पसिया पंचायत अंतर्गत महुआडाबर, चरपा पंचायत के मनियारडीह और खैरबन गांव में बने बुनकर शेड 10 साल से अधिक समय से बंद पड़े हैं. सूत से कपड़े तैयार करने के लिए यहां लाखों की मशीनें मंगायी गयीं. हर शेड में हैंडलूम और कपड़े की रंगाई, सूत रोल करने की मशीनें रखी हुई हैं. तीनों ही जगहों पर उद्योग विभाग की ओर से 60-120 कामगारों को सूत से कपड़े तैयार करने का प्रशिक्षण दिया गया.

प्रशिक्षण पाकर कारीगरों ने बाजार समिति के माध्यम से दो-तीन महीने तक कपड़े भी तैयार किये. यहां बेडशीट, गमछा, शर्ट के कपड़ों के अतिरिक्त तरह-तरह के सूती कपड़े बनाये जा रहे थे. इन कपड़ों को उद्योग विभाग के अधिकारी व कर्मचारी आकर ले जाते थे. मगर, यहां काम रहे कारीगरों का उत्साह दो-तीन महीने से अधिक समय तक टिका नहीं रह सका और संसाधनों की कमी तथा अनदेखी की वजह से कुछ कारीगर काम छोड़कर पलायन कर गये. कहा जा रहा है कि ये ऐसा करने को मजबूर हो गये.

धीरे-धीरे अन्य कारीगरों ने भी मुंह मोड़ना शुरू किया और काम छोड़ते गये. इस प्रकार यह उद्योग लगभग पूरी तरह बंद ही हो गया. सालों से बंद पड़े रहने के कारण बुनकर शेड के आसपास अब गंदगी पसरी हुई है और चारों तरफ झाड़ियां उग आयी हैं. लाखों की मशीनें भी रखे-रखे जंग खा रही है.

हथकरघा उद्योग चालू होने से ये होते फायदे

मधुपुर के तीनों गांवों के बुनकर शेड में हथकरघा उद्योग शुरू हो जाने से न केवल स्थानीय कारीगरों को रोजगार मिलता, बल्कि, एक यहां बने उत्पादों को एक बड़ा बाजार मिलता. यहां की कला को एक प्लेटफॉर्म मिलता और स्वावलंबन की राह में फिर से एक नयी उम्मीद जगती.

क्या है सरकार का मकसद

सरकार इस योजना के जरिए पारंपरिक कौशल वाले लोगों को मदद पहुंचाएगी. इसमें सुनार, लुहार, नाई और चर्मकार जैसे लोगों को फायदा होगा. इस योजना का मकसद ऐसे लोगों को फायदा पहुंचाना है, जो हाथ से कोई स्किल्‍ड वर्क करते हैं और पीढियों से यह काम करते आ रहे हैं.

गांवों में दो करोड़ लखपति दीदी बनाने का सपना

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने राष्ट्र के नाम अपने संबोधन विश्‍वकर्मा योजना के अलावा एक और नई योजना पर सरकार के विचार करने की भी जानकारी दी. उन्‍होंने कहा, ‘मेरा सपना है गांव में दो करोड़ दीदी को लखपति बनाने का है. इसलिए हम नई योजना के बारे में सोच रहे हैं. एग्रीकल्चर फील्ड में टेक्नोलॉजी ले आएंगे. ड्रोन की सर्विस उपलब्ध कराने के लिए हम इन्हें ट्रेनिंग देंगे. देश हर क्षेत्र में विकास कर रहा है. देश आधुनिकता की तरफ बढ़ रहा है.’

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