Zero FIR Section: मणिपुर में हिंसा और अपराध की हालिया घटनाओं में शून्य/ज़ीरो एफआईआर (FIR) की सबसे अधिक चर्चा की गई है. क्या आपने कभी ज़ीरो एफआईआर (Zero FIR) यानि प्रथम सूचना रिपोर्ट के बारे में जानते है, दरअसल जीरो एफआईआर वो होती है जिसे आप अपराध होने पर किसी भी पुलिस स्टेशन में दर्ज करवा सकते हैं. हालांकि अक्सर देखा जाता है कि पुलिस इस एफआईआर को दर्ज करने में आनाकानी करती है. ऐसा क्यों होता है आज हम आपको इसकी पूरी जानकारी देने जा रहे हैं.
जीरो एफआईआर सामान्य एफआईआर की तरह ही होती है. हालांकि, इसका एक सबसे बड़ा लाभ यह है कि इसमें किसी भी तरह के अधिकार क्षेत्र की अड़चनें पैदा नहीं होती हैं. आमतौर पर, जब किसी भी थाने में पुलिस एफआईआर तभी लिखती है, जब अपराध उसे थानाक्षेत्र के अंतर्गत हुआ हो. लेकिन जीरो एफआईआर में ऐसा नहीं होता है.
इसमें पीड़ित व्यक्ति या उस व्यक्ति का कोई जानकार, रिश्तेदार या कोई चश्मदीद भी किसी भी थाने में एफआईआर दर्ज करवा सकता है. इसे ही जीरो एफआईआर कहा जाता है. जीरो एफआईआर के आधार पर पुलिस अपनी कार्यवाही या जांच शुरू कर देती है. बाद में, वह केस संबंधित क्षेत्र के थाने में ट्रांसफर करवा दिया जाता है.
अक्सर देखा जाता है कि जब भी कोई घटना घटती है तो आम आदमी पुलिस में शिकायत दर्ज करवाने जाता है, लेकिन आम आदमी को अमूमन कानून के बारे में पूरी जानकारी नहीं होती. इसलिए उन्हें जब एक पुलिस स्टेशन से दूसरे पुलिस स्टेशन के चक्कर काटने पड़ते हैं तो वो परेशान हो जाते हैं. इसी के बारे में सीआरपीसी के सेक्शन 154 में साफ कहा गया है कि, कोई भी पुलिस स्टेशन एफआईआर दर्ज कर सकता है फिर चाहे वो उसका ज्यूरिडिक्शन हो या ना हो.
अगर केस उस पुलिस स्टेशन से संबंधित नहीं है तो भी वहां आम आदमी जीरो एफआईआर दर्ज करवा सकता है. इंस्पेक्टर या सीनियर इंस्पेक्टर रैंक का अधिकारी एक फॉरवर्डिंग लेटर लिखेगा और एक सिपाही उस लेटर को उस पुलिस स्टेशन में ले जाएगा जहां का वो केस होगा. इसके बाद केस में आगे की जांच शुरू की जाएगी.
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जीरो एफआईआर में कोई भी क्राइम नहीं लिखा होता. इसलिए ही इसे जीरो एफआईआर कहा जाता है. पुलिस इस एफआईआर को लिखने में इसलिए आनाकानी करती है कि क्योंकि कई बार देखने में आता है कि, दो लोगों के बीच मारपीट ही हुई, लेकिन दूसरे आदमी उसे फंसाने के लिए एफआईआर में उसपर कई अन्य आरोप भी लगा देता है. इसलिए ही जहां का ये केस नहीं है वो पुलिस स्टेशन इस तरह की एफआईआर दर्ज करने से बचता है.
जीरो एफआईआर दर्ज करने वाले पुलिस स्टेशन को उस मामले में जांच करने का अधिकार नहीं दिया जाता है, लेकिन अगर अपराध किसी महिला के साथ हुआ है तो आईपीसी के सेक्शन 498 के तहत अगर कोई महिला अपने ससुराल वालों के खिलाफ प्रताड़ना से जुड़ी एफआईआर दर्ज करवाएगी और चाहेगी कि वो पुलिस स्टेशन इसकी जांच करें, तो पुलिस को इसकी जांच करनी होगी.
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देश में हर दिन बढ़ रहे आपराधिक मामलों को देखते हुए नियम-कानूनों में सुधार की सख्त जरूरत महसूस की गई. खासतौर से, साल 2012 में दिल्ली में हुए निर्भया गैंगरेप ने पूरे देश को हिलाकर रख दिया था. जिसके बाद कानूनों में सुधार करने के लिए जस्टिस वर्मा कमेटी गठित की गई थी.
इस कमेटी ने महिलाओं के प्रति होने वाले आपराधिक मामलों को कम करने और पुलिस को अधिक सशक्त बनाने के लिए कई कड़े कानून बनाएं. साथ ही, कुछ पुराने कानूनों में भी संशोधन किया था. इसी कमेटी ने ही जीरो एफआईआर का सुझाव दिया था. जीरो एफआईआर के बाद पुलिस ऑफिसर को अपने अधिकार क्षेत्र से बाहर जाकर भी एक्शन लेने की छूट मिलती है.
बहुत कम लोग जानते हैं कि जीरो एफआईआर भी एफआईआर की तरह ही होती हैं. इन दोनों बस इतना ही फर्क होता है कि एफआईआर आप अपराध क्षेत्र के पुलिस स्टेशन में ही दर्ज करवा सकते हैं और जीरोएफआई आप कहीं भी दर्ज करवा सकते हैं और पुलिस को भी इस एफआईआर में शिकायत के आधार पर केस दर्ज करना होता है. जब पुलिस केस को दर्ज कर लेती है तो इसे संबंधित पुलिस स्टेशन में ट्रांसफर कर दिया जाता है.
आमतौर पर, अपराधों को दो श्रेणी में बांटा जाता है संज्ञेय और गैर-संज्ञेय. संज्ञेय अपराध बेहद ही संगीन होते हैं. इनमें रेप, हत्या, जानलेवा हमला आदि को शामिल किया जाता है. इस तरह के अपराधों की तुरंत रिपोर्ट करना जरूरी होता है, ताकि जल्द से जल्द कार्यवाही शुरू की जा सके. इस तरह के मामलों की जीरो एफआईआर दर्ज करवाई जा सकती हैं.
जीरो एफआईआर अधिक दुष्कर्म के मामले में दर्ज होती हैं, ताकि पीड़िता की तुरंत मेडिकल जांच की जा सके. वहीं, गैर-संज्ञेय अपराध गंभीर अपराधों की श्रेणी में नहीं आते, जैसे जालसाज़ी, धोखाधड़ी, मारपीट या लड़ाई-झगड़ा आदि. इस तरह के मामलों में सीधे एफआईआर दर्ज नहीं की जाती है बल्कि इन्हें पहले मजिस्ट्रेट के पास रेफर कर दिया जाता है. जिसके बाद मजिस्ट्रेट समन जारी करता है और उसके बाद ही आगे की कार्रवाही शुरू होती है.
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बिना देरी किए पुलिस को घटना की जानकारी मिलना.
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जीरो एफआईआर दर्ज होने के बाद पुलिस को एक्शन लेना ही पड़ता है, भले ही मामला उसके अधिकारक्षेत्र का ना हो.
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समय पर कार्यवाही के जरिए कई महत्वपूर्ण साक्ष्यों व सबूतों को नष्ट होने से बचाया जा सकता है.
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पीड़ित व्यक्ति को इंसाफ पाने के लिए दर-दर भटकना नहीं पड़ता। वह जहां पर भी है, वहीं से न्याय के लिए गुहार लगा सकता है.