हाइकोर्ट ने विजय हांसदा द्वारा सीबीआइ जांच की मांग को लेकर दायर याचिका वापस लेने के लिए दाखिल किये गये आवेदन को रद्द कर दिया है. साथ ही यह टिप्पणी भी की है कि इस मामले में याचिकादाता से आवेदन दिलवाने के मामले में कोई पर्दे के पीछे है. न्यायाधीश संजय द्विवेदी की अदालत में विजय हांसदा की ओर से जांच अवैध खनन की सीबीआइ जांच की मांग को लेकर दायर याचिका वापस करने के लिए दाखिल किये गये आवेदन (आइए) की सुनवाई हुई.
सुनवाई के दौरान विजय हांसदा के नये वकील की ओर से कहा गया कि यह याचिका विजय हांसदा ने दाखिल नहीं की है. जिस वक्त यह याचिका दाखिल की गयी थी, उस वक्त वह जेल में था. किसी ने दुश्मनी से यह याचिका दायर कर दी है. इसलिए वह जांच की मांग को लेकर दायर याचिका वापस लेना चाहता है.
याचिका पर सुनवाई के वक्त विजय हांसदा के इस केस के पुराने वकील अमित सिन्हा व पार्थ दालान भी कोर्ट में मौजूद थे. इन्होंने ही मूल याचिका दायर की थी. न्यायाधीश द्वारा इस मुद्दे पर सवाल उठाये जाने पर इन दोनों वकीलों ने कोर्ट को यह बताया कि उन्हें विजय हांसदा का जो वकालतनामा मिला था, वह साहिबगंज जेल के सक्षम अधिकारी द्वारा हस्ताक्षरित था.
न्यायालय ने भी यह पाया कि मूल याचिका दायर करते वक्त दिये गये वकालतनामा जेल के सक्षम अधिकारी द्वारा हस्ताक्षरित था. कोर्ट ने कहा कि इस मामले में दायर पूरक शपथ पत्रों में राज्य के बड़े लोगों के खिलाफ कुछ तथ्य पाये जाने का उल्लेख है. याचिकादाता द्वारा मूल याचिका वापस लेने के लिए दिये गये तर्कों को देखते कोर्ट ने सख्त टिप्पणी की. कहा : पहली नजर में ऐसा लगता है याचिका वापस कराने के मामले में कोई पर्दे के पीछे है, जिसने यह आइए दाखिल करवाया है. इसलिए इस आइए को रद्द किया जाता है.
विजय हांसदा ने अवैध खनन के मामले में इडी के गवाह पर मारपीट करने और धमकी देने का आरोप लगाया है. हांसदा ने थाने को दी गयी शिकायत में कहा है कि अशोक यादव और मुकेश यादव ने उससे हाइकोर्ट परिसर में मारपीट की. इसके अलावा साहिबगंज लौटते समय रास्ते में भी मारपीट की धमकी दी. इडी ने साहिबगंज में अवैध खनन के मामले में अशोक यादव और मुकेश यादव को गवाह बनाया है. इस मामले में धुर्वा थाने में प्राथमिकी दर्ज करायी गयी है.