लखनऊ: यूपी उद्यमियों और निवेशकों पर अब कोई भी एफआईआर से पहले प्रारंभिक जांच होगी. यूपी सरकार ने ईज ऑफ डूइंग बिजनेस (Ease of Doing Business) के तहत प्रदेश में विकास कार्यों को बढ़ावा देने वाले उद्यमियों और निवेशकों को प्रताड़ना से बचाने के लिये यह कदम उठाया है. इसमें सिविल प्रकृति के विवादों में एफआईआर से पहले जांच करना जरूरी होगा.
आदेश के अनुसार उद्यमी, व्यापारी, शैक्षिक संस्था, चिकित्सालय, भवन निर्माताओं, होटल-रेस्टोरेंट आदि से संबंधित मालिक व प्रबंधन स्तर के कर्मचारियों का किसी भी प्रकार का उत्पीड़न न हो इसके लिये वह दृढ़ संकल्पित है. इसलिये एफआईआर से पहले यह देखा जाएगा कि प्रार्थना पत्र में जिस व्यक्ति का नाम दिया जा रहा है, उसका घटना से प्रत्यक्ष संबंध है कि नहीं. आरोपी को व्यवसायिक प्रतिद्वंदिता, विवाद, स्वेच्छाचारिता के कारण तो नामित नहीं किया जा रहा है. या फिर कहीं अनावश्यक दबाव, अनुचित लाभ के उद्देश्य तो उसे नामित तो नहीं किया जा रहा है.
इस नये आदेश का उद्देश्य सिर्फ यह है कि सिविल प्रकृति के विवादों को आपराधिक रंग देते हुए एफआईआर कराने की प्रवृत्ति को कम किया जा सके. साथ ही न्यायिक प्रक्रिया का दुरूपयोग करके एफआईआर दर्ज कराने वाले अभ्यस्त शिकायतकर्ताओं पर नियंत्रण पाया जा सके. इससे निवेशकों के लिये प्रतिकूल वातावरण होने से बचा जा सकेगा. साथ ही अधिक निवेश राज्य को मिल सकेगा.
सरकार ने ये भी कहा है कि नये निर्देशों का मतलब यह भी नहीं है कि संज्ञेय अपराध गठित होने के प्रत्येक प्रकरण में प्रारंभिक जांच करायी जाएगी. ऐसे प्रकरण जिनमें शिकायतती प्रार्थना पत्र के संज्ञेय अपराध का होना स्पष्ट है, उन प्रकरणों को सर्वोच्च न्यायालय के निर्देशों के अनुरूप तुरंत एफआईआर पंजीकृत की जाएगी.
सुप्रीम कोर्ट द्वारा रिट याचिका (क्रिमिनल) 68/2008 ललिता कुमारी बनाम उप्र राज्य में निर्देश दिए गये हैं कि ऐसे प्रकरण जो सिविल प्रकृति के है, व्यवसायिक विवाद से संबंधित हैं, प्रतिष्ठान/संस्थान में आकस्मिक दुर्घटना से संबंधित हैं, में प्रथम सूचना रिपोर्ट पंजीकृत करने से पूर्व प्रारंभिक जांच कराये जाने की एक औपचारिक प्रक्रिया निर्धारित की गयी है.