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जीव संरक्षण व प्रकृति से जुड़ाव का पर्व है नागपंचमी

श्रावण मास की शुक्ल पक्ष की पंचमी, नाग पंचमी के नाम से विख्यात है. इस दिन नागों को पूजन किया जाता है. इस दिन व्रत करके सांपों को दूध पिलाया जाता है.

डॉ मयंक मुरारी

चिंतक व अध्यात्म लेखक

भारतीय जीवन प्रकृति के संरक्षण में विश्वास करता है. प्रकृति से उतने ही लेने को कहा गया है, जितना हमारी जरूरत है. यजुर्वेद का मंत्र है- तेन त्यक्तेन भुंजीथा यानी त्यागपूर्वक उपभोग। यह प्रकृति के साथ अपनापन का नाता है. हम कहते हैं- धरतीमाता, गौमाता, तुलसीमाता, गंगामाता, वनदेवी, कुलदेवी. हम पीपल को पूजते है, सांपों को दूध पिलाते हैं, चिड़ियां को पानी पिलाते हैं और चीटियों को चीनी. यह पूज्य भाव ही हमें शोषण करने से रोकता है. हिंदुओं में देवी-देवताओं की पूजा-आराधना के अतिरिक्त आदि काल से नागपूजा का महत्व रहा है. हमारे पुरखों की पूजा, भूत-प्रेत की पूजा, वृक्षों की पूजा की तरह नागपूजा समूचे देश में प्रचलित रहा है.

श्रावण मास की शुक्ल पक्ष की पंचमी, नाग पंचमी के नाम से विख्यात है. इस दिन नागों को पूजन किया जाता है. इस दिन व्रत करके सांपों को दूध पिलाया जाता है. इस पावन पर्व पर स्त्रियां नाग देवता की पूजा करती हैं तथा सर्पों को दूध अर्पित करती हैं. गाय के गोबर व पानी के मिश्रण से दीवारों पर सांपों की छवियां या तस्वीरें बनायी जाती हैं और उन्हें फूलों और सिंदूर से सजाया जाता है.

भारतीय जीवन में नागवंश, नागपरंपरा और कथाओं में नागों की प्रमुख भूमिका है. वे अक्सर दिव्य देवताओं से जुड़े होते हैं और उनमें सुरक्षात्मक और विनाशकारी दोनों गुण होते हैं. सांपों को शक्ति, परिवर्तन और पुनर्जन्म के प्रतीक के रूप में पूजा जाता है. इनमें असाधारण शक्ति एवं जीवनशक्ति के साथ अमरत्व का प्रतीक माना गया है. नाग देवताकी पूजा को मनुष्यों के भीतर छिपी हुई ऊर्जाओं और सुप्त कुंडलिनी ऊर्जा से जोड़ा जाता है. यह त्योहार विश्वासियों को अपनी आंतरिक ऊर्जा को जगाने, परिवर्तन को बढ़ावा देने और आध्यात्मिक ज्ञान प्राप्त करने के लिए प्रोत्साहित करता है.

नागपंचमी मनाने की परंपरा अभिमन्यु के पुत्र परीक्षित की सर्पदंश से मृत्यु और उसके बाद जनमेजय द्वारा सर्पयज्ञ से जुड़ा है. सर्पयज्ञ से नागवंशों के नाश को रुकवाने के लिए महर्षि आस्तिक ने दोनों समाज के बीच संधि कराया और संबंधों को बनाये रखने के लिए त्योहारों में सर्पपूजा को एक उत्सव के रूप में मनाने की शुरुआत की गयी.

नाग पंचमी प्रकृति और उसके प्राणियों के सम्मान और संरक्षण के महत्व की याद भी दिलाती है. सरीसृप प्रजाति का आबादी को नियंत्रित करके पारिस्थितिक संतुलन बनाये रखने में महत्वपूर्ण भूमिका है. यह भारत के विविध सांस्कृतिक और धार्मिक ताने-बाने को दिखाती है. यह क्षेत्रीय और भाषाई सीमाओं को पार करती है, लोगों को नागों के प्रति श्रद्धा और उनकी आध्यात्मिक मान्यताओं में एकजुट करती है. नागपंचमी का उत्सव भारतीय जीवन के सनातन और समृद्ध सांस्कृतिक विरासत को समझने का एक अनुष्ठान है. इसके माध्यम से भारतवर्ष के निर्माण में शामिल सभी समाजों- नाग, असुर, गंधर्व, मानव, देवगण, किन्नर, मानव, द्रविड़ आदि का अहम योगदान रहा है. सबने इस भारतवर्ष को शाश्वत स्वरूप प्रदान किया, जिसकी प्रकृति चिन्मय है.

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