पटना. हिन्दी के सुपरिचित वरिष्ठ नाटककार और कवि रामेश्वर प्रेम नहीं रहे. तीन अप्रैल, 1943 को निर्मली, बिहार में जन्मे रामेश्वर प्रेम ने बीए ऑनर्स करने के बाद हिन्दी साहित्य में एमए किया. बिहार में जन्मे रामेश्वर प्रेम ने नाटक ‘अजातघर’ से लेखन की शुरुआत की, जिसके प्रदर्शन कई शहरों में हुए. बेन जॉनसन के नाटक ‘वोल्पोने’ का उन्होंने ‘लोमड़वेश’ नाम से रूपान्तरण किया. वंशी कौल के निर्देशन में राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय के छात्रों द्वारा उसका भवई शैली में मंचन हुआ.
बहुत सी रचनाएं अप्रकाशित
उनके अन्य प्रसिद्ध नाटक हैं- अन्तरंग, चारपाई, शस्त्र-संतान, कैम्प, जल डमरू बाजे आदि. बरफ की अरणियां, हरियंधा सुनो और निकोबेरिये आदि उनकी प्रकाशित काव्य कृतियां हैं. रामेश्वरजी भारत भवन, भोपाल के आवासीय नाटककार भी रहे. संस्कृति विभाग, भारत सरकार की सीनियर फेलोशिप से भी उन्हें सम्मानित किया गया. वर्ष 2013 में नाट्य-लेखन में विशिष्ट योगदान के लिए उनको संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार से भी सम्मानित किया गया था. आजीवन निरंतर सृजनरत रहे रामेश्वरजी की बहुत-सी रचनाएं अभी भी अप्रकाशित हैं.
पटना इप्टा ने जताया शोक
इप्टा की राष्ट्रीय समिति ने रामेश्वर प्रेम को श्रद्धांजलि दी है और कहा कि पूरा संगठन उनके निधन से मर्माहत है और उनका निधन हिन्दी रंगमंच के लिए अपूरणीय क्षति है. समिति के अध्यक्ष प्रसन्ना, कार्यकारी अध्यक्ष राकेश और महासचिव तनवीर अख़्तर ने बयान जारी कर रहा है कि भारतीय जन नाट्य संघ (इप्टा) राष्ट्रीय समिति हिन्दी के सुपरिचित वरिष्ठ नाटककार और कवि रामेश्वर प्रेम के निधन पर गहरा शोक व्यक्त करती है.
रंगकर्मी राजेश चंद्र ने दी श्रद्धांजलि
प्रसिद्ध रंगकर्मी, समीक्षक और लेखक राजेश चन्द्र कहते हैं कि रामेश्वरजी की बातों में गूढ़ार्थ छिपे होते थे और साहित्य तथा रंगमंच की दुनिया के स्याह-सफ़ेद पन्ने उधेड़ते हुए वे अचानक शून्य में चले जाते थे. मुझे काफ़ी समझाते थे कि तुम जिस तरह संस्थानों और थिएटर के मठाधीशों से सीधे-सीधे उलझते हो, यह बेहद ख़तरनाक रास्ता है. ये सभी मिलकर एक दिन तुम्हें परिधि के बाहर किसी खाई-खंदक में फेंक आयेंगे.
एक इच्छा जो अब तक रही अधुरी
प्रसिद्ध रंगकर्मी, समीक्षक और लेखक राजेश चन्द्र कहते हैं कि मैं उनसे कहता कि मैं तो बाहर ही हूं इस परिधि के, अगर भीतर होता तो मेरी ज़बान पर भी ताला होता और मैं भी कहीं का दरबान होता. अफ़सोस कि मैं भी उन्हें अकेलेपन के साथ अकेला छोड़ आया. इसका मलाल हमेशा रहेगा. रामेश्वरजी की प्रबल इच्छा थी कि मैं उनकी रचनावली का संपादन करूं, लेकिन रोज़ी-रोटी की लड़ाई ने यह अवसर ही नहीं दिया.
मेरे लिए सारे नाटक अच्छे
एक साक्षात्कार में रामेश्वर प्रेम ने अपनी रचानाओं को लेकर कहा था कि मेरे नाटकों में मानवीय संघर्ष की गाथा का संचयन है. जितने तरह के संघर्ष होते हैं, उन्हें नाटक में लाने की कोशिश करता हूं. मेरे जीवन में, आम जीवन में, सामाजिक जीवन में, सामुदायिक जीवन में जो घटित होता है वह मेरे नाटक का अक़सर विषय होता है. ‘चारपाई’ नाटक अब तक सबसे ज्यादा मंचित हुआ है, उसके बाद ‘अजातघर’. मेरे लिए वैसे सारे नाटक अच्छे हैं, क्योंकि मैंने पूरी निष्ठा से काम किया है.