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झारखंड : इस गांव में ऐसा परिवार, जहां बच्चे से बूढ़े सभी सदस्य हैं कलाकार

बोकारो जिले के एक गांव में एक ऐसा परिवार है, जहां परिवार के सभी सदस्य कलाकार हैं. चाहे वह सदस्य बच्चा हो या बूढ़ा सभी कलाकारी में निपुण में और खुशहाल हैं. सभी आत्मनिर्भर भी हैं.

ललपनिया (बोकारो), नागेश्वर. बोकारो जिला गोमिया प्रखंड अंतर्गत तुलबुल पंचायत के तुलबुल गांव में एक एसा परिवार है, जिसमें परिवार के सभी सदस्य मूर्ति (स्टेच्यू), पेटिंग आदि कला में निपुण हैं. सभी परिवार के सदस्य अपने दिनचर्या के कामों को पूरा करने के बाद मूर्ति, पेंटिग के कार्यों में जुड़ जाते हैं. अपने काम से पूरा परिवार काफी खुशहाल है. घर के मुखिया जगन महतो सिंचाई विभाग में तेनुघाट में कार्यरत थे, जो अब रिटायर्ड हो गए हैं. रिटायरमेंट के बाद भी जगन अपनी कला का बखूबी इस्तेमाल कर रहे हैं. जगन अब 78 वर्ष के हो चुके हैं, इस उम्र में भी वे विभिन्न प्रकार की देवी, देवताओं और भगवान की मूर्तियां बनाते और पेंटिग के काम भी करते हैं.

बुजुर्ग पत्नी और उनके बच्चे भी देतें हैं जगन का साथ

इस काम में जगन की 62 वर्षीय पत्नी बुलूवा देवी भी उनका साथ देती हैं. जगन महतो ने बताया कि साडम के रहने वाले जय किशोर प्रसाद से उन्होंने यह शिक्षा प्राप्त की है. वे साल 1968 यानी बीते 55 वर्षों से इस काम से जुड़े हैं, उनका कहना है कि कला ऐसी विद्या हो जो भुलाया नहीं जा सकता, जितना कला को मांजेंगे उतनी ही चमक आयेगी. जगन के दो पुत्र भी हैं, चोवालाल प्रजापति और उमेश प्रजापति. दोनों भाइयों ने भी अपने पिता से प्रेरणा ली और कला के प्रति समर्पित हैं. दोनों भाई हर धर्म से जुड़ी पूज्य मूर्ति बनाने में काफी निपुण हैं.

जगन के पोता-पोती भी बटाते हैं हाथ

चोवालाल प्रजापति को एक पुत्र प्रभात कुमार और दो पुत्री भी हैं सुमन और प्रिती. बेटियां अभी स्नातक की पढाई कर रही हैं. दोनों बेटियां पढ़ाई के साथ-साथ मूर्ति बनाने और पेटिंग करने में पिता प्रजापति और मां शांति देवी का साथ देती हैं. इसी प्रकार जगन के दूसरे बेटे उमेश प्रजापति की पत्नी चिंता देवी के साथ भी उनकी बेटी रिया कुमारी जो बीए पार्ट वन की छात्रा है और छोटा भाई ऋतिक कुमार सभी इस काम में जुड़े हैं.

पूरा परिवार है आत्मनिर्भर

जगन का पूरा परिवार कला में काफी निपुण है. आज परिवार काफी खुशहाल है. उमेश प्रजापति ने अपने निर्देशन में कई मंदिरों का भी निर्माण किया है. परिवार के सभी सदस्य मूर्ति बनाने और पेटिंग के रोजगार से जुड़कर आत्मनिर्भर बने हैं. उनका कहना है कि हम सभी परिवार के सदस्य साल के बारहों महीने किसी ना किसी पूजा से जुड़े मूर्ति आदि के निर्माण कार्यों से जुडे़े रहते हैं.

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