मनोज सिंह, रांची :
मेघा परमार के घरवालों ने दो साल की उम्र में उनकी सगाई कर दी थी. इसके बाद भी घरवालों ने पढ़ाई इसलिए करायी, ताकि सर्टिफिकेट पर 18 वर्ष दर्ज हो जाये. गांव से बाहर कॉलेज में बीसीए करने इसलिए भेजा, ताकि भाई के लिए अच्छा खाना बना सके. मध्यप्रदेश के सिरोह जिले के एक छोटे से गांव की रहने वाली मेघा ने इसी सामाजिक व्यवस्था के बीच अपनी अलग पहचान बनायी. आज मेघा 28 साल की हो चुकी हैं और एवरेस्ट फतह करनेवाली मध्य प्रदेश की पहली महिला हैं. वह रविवार को रांची में थीं. सीसीएल सभागार में आयोजित ‘एवरेस्ट समिट’ में अपने विचार रखने आयी थीं.
मेघा ने कहा : मैं गर्व से कहती हूं कि मैं किसान की बेटी हूं. घर-परिवार में हम कुल 13 बहनें हैं. लड़कियों की पढ़ाई-लिखाई को लेकर घरवालों को बहुत रुचि नहीं थी. जहां रहती थी, वहां हर दिन पानी कई मंजिल पर लेकर जाना पड़ता था. इससे पैर मजबूत हो गये. पढ़ाई के दौरान ही एनएसएस ज्वाइन कर लिया. एनएसएस और खेल से जुड़े रहने के कारण एवरेस्ट चढ़ने का जुनून सवार हो गया.
अखबार में पढ़ा कि दो लड़कों ने एवरेस्ट फतह किया है. मेरे मन में विचार आया कि मेरे भी दो पैर और दो हाथ हैं. मैं क्यों नहीं एवरेस्ट चढ़ सकती. पता चला इसके लिए 25 लाख रुपये खर्च होंगे. आज तक 25 हजार रुपये तक नहीं देखे थे. लेकिन, सोचा कि करना है. अखबार देखकर 50 विज्ञापन देनेवालों की सूची बनायी. उनसे फोन कर सहयोग मांगा. कई लोग सहयोग करने के लिए तैयार हो गये. पहला सहयोग 17 हजार रुपये का मिला. इसी बीच राज्य सरकार ने मेरी यात्रा को स्पॉन्सर कर दिया.
पहली बार जब यात्रा शुरू की, तो एवरेस्ट से करीब 700 फीट दूरी पर तूफानी हवा आ जाने के कारण लौटना पड़ा. मेघा कहती हैं, लौटने के क्रम में एक स्थान पर गिर जाने के कारण मेरे रीढ़ की हड्डी में तीन जगहों पर हेयर क्रेक हो गया था. किसी तरह शिमला से दिल्ली तक की यात्रा की. दिल्ली से भोपाल आने के क्रम में कई लोगों से सहयोग मांगा, लेकिन किसी ने सहयोग नहीं किया.
मेरे गाइड ने किसी तरह घर पहुंचाया. घर पहुंचने के बाद जांच में पता चला कि रीढ़ की हड्डी तीन जगहों पर टूट गयी है. नौ माह बेड पर रही. इलाज के बाद ठीक हुई. इसके बाद फिर घर वालों से कहा कि एवरेस्ट पर जाना है. सभी ने मना किया, लेकिन मेरी जिद थी. दूसरी बार जब एवरेस्ट के लिए जाने लगी, तो वही शेरपा (गाइड) वही थी, जो पहली बार थी. उसके सहयोग से मैंने 22 मई 2019 को एवरेस्ट फतह कर लिया. लेकिन, लौटने के दौरान मेरी हालत बहुत खराब हो गयी थी. हेलीकॉप्टर से नीचे उतारना पड़ा.
एनएसएस के एक ट्रिप के कारण मालदीव जाना था. पहली बार जहाज पर चढ़ी थी. जहाज में मौजूद एयर होस्टेस से पूछा कि इसमें टॉयलेट कहां होता है. टॉयलेट जाना नहीं था, केवल देखना था. आज मैं शेरपा की दो लड़कियों की पढ़ाई का खर्च मैं उठाती हूं, जिन्होंने मुझे एवरेस्ट तक ले जाने में सहयोग किया. जब तक वह पढ़ेंगी, पूरा खर्च उठाऊंगी. इसके अलावा एक ट्रांसजेंडर बच्ची को भी गोद लिया है, जो मेरे साथ रहती है. एवरेस्ट चढ़ाई के बाद करीब 30 लाख रुपये मिले. उससे तालाब और कुएं बनवा रही हूं. ताकि, आनेवाली पीढ़ी को पानी की समस्या न देखनी पड़े.