दक्षिणी छोटानागपुर क्षेत्र के लोहरदगा में शिव साधना के ऐतिहासिक प्रमाण मिलते रहे हैं. मुंडा, खरवार जैसी जातियां शिव की साधक रही हैं. यही कारण है कि इस क्षेत्र में शिव साधना की पहचान रही है. यहां शिवलिंग सिर्फ मंदिरों में नहीं, बल्कि खेत और खलिहान में भी मिलते रहे हैं. इतिहास के जानकार बताते हैं कि इस क्षेत्र में पाये जाने वाली शिवलिंग छठी शताब्दी से लेकर 14वीं शताब्दी तक के रहे हैं. भंडरा, कुडू, लोहरदगा, सेन्हा, किस्को आदि क्षेत्र में कई ऐतिहासिक शिव साधना स्थल रहे हैं. लोहरदगा के सदर प्रखंड के खखपरता, भंडरा के अखिलेश्वर धाम, कसपुर, बेलडिप्पा, कारुमठ व भंडरा लाल बहादुर शास्त्री परिसर, सेन्हा के महादेव मंडा, कुडू के महादेव मंडा, किस्को के कई स्थानों में शिवलिंग बिखरे पड़े हैं.
भंडरा प्रखंड के कसपुर गांव में खेत-खलिहान, पहाड़ों में शिवलिंग मिल जाते हैं. इस क्षेत्र को शिव की नगरी कहा जाता है. जाने कब, कहां से शिवलिंग मिल जाये, यह कोई नहीं जानता. सदियों से यहां शिव की पूजा होती आयी है. लोगों का मानना है कि यहां कण-कण में शिव का वास है. यह कभी शिव साधकों की प्रमुख स्थली रही होगी. आज भी यहां शिव नाम का ही जाप होता है.
इतिहास के जानकार, खोजकर्ता व चतरा महाविद्यालय चतरा के सेवानिवृत्त प्राचार्य डॉ इफ्तिखार आलम कहते हैं कि यह क्षेत्र शिव और शक्ति साधना का केंद्र रहा है. यहां प्राचीन काल से ही शिव की आराधना होती आयी है. यह क्षेत्र भगवान हनुमान का ननिहाल भी है. यहां पायी जाने वाली शिवलिंग छठी और सातवीं शताब्दी की हैं. यहां का वातावरण साधना के लिए अनुकूल था. यही कारण था कि यहां शिव की साधना के प्रमाण हर स्थान पर मिलते हैं. इतिहास के जानकारों का कहना है कि भंडरा प्रखंड में भगवान राम की माता कौशल्या के राज्य की राजधानी थी.
कसपुर गांव में आज भी पुराने जमाने के किले के अवशेष व खेतों की जुताई में पुराने जमाने के सिक्के व बर्तनों के अवशेष मिलते हैं. कसपुर में ही भगवान शिव के साथ-साथ भगवान विष्णु के हिरण्यकश्यप अवतार की पत्थर में उकेरी प्रतिमा देखने को मिलती है. भंडरा के ऐतिहासिक अखिलेश्वर धाम में तीन फीट व नीले रंग की शिवलिंग शेष स्थानों में पायी जाने वाली शिवलिंग से अलग है.