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Explainer : कारों में कौन बेहतर, पेट्रोल-डीजल या फिर इलेक्ट्रिक वर्जन? यहां समझें खर्च का गुणा-गणित

ऑटोमोबाइल सेक्टर की दोपहिया और चार पहिया वाहन बनाने वाली कंपनियां यूं ही इलेक्ट्रिक वाहन निर्माण में कदम नहीं बढ़ा रही हैं. इलेक्ट्रिक वाहन भविष्य के वाहन हैं. इन्हें बनाने और बेचने के लिए भारत सरकार की ओर से ही नहीं, बल्कि अमेरिका में जो बाइडन सरकार की ओर से भी सब्सिडी दी जा रही है.

नई दिल्ली : अमेरिका की इलेक्ट्रिक वाहन निर्माता कंपनी टेस्ला भारत में अपनी इलेक्ट्रिक कारों और इन कारों की बैटरी का उत्पादन करना चाहती है. हालांकि, वह चीन में इलेक्ट्रिक कारों का तेजी से उत्पादन कर रही है, लेकिन भारत में उसके प्रवेश को लेकर जद्दोजहद जारी है. दुनिया में केवल टेस्ला ही ऑटोमोबाइल सेक्टर की ही कार निर्माता कंपनी नहीं है, जो भविष्य के इलेक्ट्रिक वाहनों की ओर तेजी से कदम बढ़ा रही है, बल्कि भारत में भी टाटा मोटर्स, महिंद्रा एंड महिंद्रा, हीरो मोटोकॉर्प और बजाज ऑटो जैसी कई वाहन निर्माता कंपनियां हैं, जो इलेक्ट्रिक वाहन के निर्माण में अपनी खास दिलचस्पी दिखा रही हैं. इसके अलावा, कई विदेशी कंपनियां भी हैं, जो भारत में ही इलेक्ट्रिक बनाकर घरेलू बाजारों में बिक्री करने के साथ निर्यात करने में अपनी रुचि दिखा रही हैं. हालांकि, सरकार की ओर से उन्हें प्रोत्साहन देने के लिए पहले से ही योजना चलाई जा रही है, लेकिन इसके साथ-साथ अन्य चीजों के लिए कायदे-कानून भी बनाए जा रहे हैं.

ऑटोमोबाइल सेक्टर की दोपहिया और चार पहिया वाहन बनाने वाली कंपनियां यूं ही इलेक्ट्रिक वाहन निर्माण में कदम नहीं बढ़ा रही हैं. इलेक्ट्रिक वाहन भविष्य के वाहन हैं. इन्हें बनाने और बेचने के लिए भारत सरकार की ओर से ही नहीं, बल्कि अमेरिका में जो बाइडन सरकार की ओर से भी सब्सिडी दी जा रही है. चीन का इलेक्ट्रिक वाहन और इसकी बैटरियों के निर्माण और निर्यात पर एकाधिपत्य स्थापित तो है ही.

इलेक्ट्रिक वाहन को अपनाना क्यों है जरूरी

दरअसल, इलेक्ट्रिक वाहनों को भविष्य का वाहन बनाने के पीछे कई कारण हैं और उसमें सबसे अहम वजह जीवाश्म ईंधनों में प्रमुख पेट्रोल-डीजल का महंगा होना है. इसका दूसरा सबसे बड़ा कारण यह है कि जीवाश्म ईंधन से चलने वाले वाहनों से दुनिया भर में वायु प्रदूषण की मात्रा बढ़ रही है और हमारी पृथ्वी को सूर्य की पराबैंगनी किरणों के खतरनाक तत्वों से बचाने वाले ओजोन परत का तेजी से क्षरण हो रहा है. वाहनों में जीवाश्म ईंधनों के अंधाधुंध प्रयोग से वायु प्रदूषण बढ़ रहा है, जो जलवायु परिवर्तन के लिए सबसे बड़ा जिम्मेदार माना जा रहा है. दुनिया भर की सरकारें वायु प्रदूषण को कम करने और जलवायु परिवर्तन के कारकों को प्रचलन से हटाने के लिए अक्षय और नवीकरणीय ऊर्जा की ओर अधिक ध्यान दे रही हैं. इसी सिलसिले में क्रमबद्ध तरीके से जीवाश्म ईंधन (पेट्रोल-डीजल) से चलने वाले वाहनों के निर्माण को कम किया जा रहा है और इलेक्ट्रिक वाहनों के निर्माण को बढ़ावा दिया जा रहा है. आइए, विस्तार से जानते हैं गुणा-गणित…

पेट्रोल-डीजल और इलेक्ट्रिक कार की तुलना

अब सवाल यह पैदा होता है कि अगर हम निजी उपयोग के लिए बाजार के शोरूम में कार खरीदने जा रहे हैं तो हमारे लिए कौन फायदेमंद होगी, पेट्रोल-डीजल से चलने वाली कारें या फिर इलेक्ट्रिक कार? देश-दुनिया में जैसे-जैसे नए इलेक्ट्रिक वाहन (ईवी) मॉडल लॉन्च होते जा रहे हैं और पेट्रोल और डीजल जैसे जीवाश्म ईंधन अधिक महंगे होते जा रहे हैं. ऐसी स्थिति में इलेक्ट्रिक कार, डीजल कार और पेट्रोल कार के बीच चयन करना अधिक जटिल हो गया है. इन वाहनों पर लंबे समय में होने वाले खर्च का आकलन करते समय इनकी खरीद लागत, रखरखाव, सरकारी प्रोत्साहन और माइलेज जैसे कई कारकों की जांच की जानी चाहिए. यहां हम पेट्रोल-डीजल और इलेक्ट्रिक कारों के ऑप्शंस की तुलना करेंगे और यह जानने की कोशिश करेंगे कि भविष्य के वाहन के तौर पर हमारे लिए कौन बेहतर हो सकती है?

पेट्रोल-डीजल और इलेक्ट्रिक कारों की खरीद लागत

जब हम निजी उपयोग के लिए बाजार में कार खरीदने निकलते हैं, तो सबसे पहले हमारे दिमाग में उसकी कीमत की बात उभरकर सामने आती है. आम तौर पर जब आप बाजार में कारों की कीमतों की तुलना करेंगे, तो इलेक्ट्रिक और डीजल कारों की अपेक्षा पेट्रोल इंजन वाली कारों की कीमत कम होती है. डीजल इंजन वाली कार पेट्रोल इंजन वाली कार की तुलना में अधिक होती है, लेकिन इलेक्ट्रिक इंजन कार पेट्रोल और डीजल इंजन दोनों कारों से कहीं अधिक कीमती होती है. हालांकि, भारत में जैसे-जैसे तकनीकी विकास हो रहा है, इनकी कीमतों में कमी आ रही है. उदाहरण के तौर पर यदि हम टाटा मोटर्स की नेक्सन कार को ही ले लें, तो यह तीनों वर्जन (पेट्रोल-डीजल और इलेक्ट्रिक इंजन) में आती है. अब टाटा नेक्सन की पेट्रोल बेस कार की दिल्ली के एक्स-शोरूम में कीमत 7.79 लाख रुपये है, जिसकी ऑन-रोड कीमत 8.75 लाख रुपये है. इसके डीजल इंजन कार की बात करें, तो दिल्ली के एक्स-शोरूम में इसकी कीमत 9.99 लाख रुपये है, जिसकी ऑन-रोड कीमत 11.4 लाख रुपये हो जाती है. वहीं, इसके इलेक्ट्रिक इंजन कार की बात करें, तो दिल्ली के एक्स-शोरूम में टाटा नेक्सन की कीमत 14.49 लाख रुपये एक्स-शोरूम है, जिसकी ऑन-रोड कीमत 15.25 लाख रुपये तक पहुंच जाती है. टाटा नेक्सन इलेक्ट्रिक कार की कीमत की तुलना पेट्रोल इंजन कार से करें, तो इलेक्ट्रिक कार पेट्रोल इंजन कार से करीब 6.50 लाख अधिक महंगी हो जाती है. वहीं, डीजल इंजन की तुलना में यह करीब 4.0 लाख रुपये अधिक महंगी है.

पेट्रोल-डीजल और इलेक्ट्रिक कारों के मेंटेनेंस पर खर्च

कारों की खरीद के बाद सबसे जो महत्वपूर्ण है, उसका मेंटेनेंस पर होने वाला खर्च है. पेट्रोल इंजन वाली कारों के मेंटेनेंस पर खर्च कम होता है, जबकि डीजल इंजन कार के मेंटेनेंस पर खर्च बढ़ जाता है, लेकिन इलेक्ट्रिक कारों के मेंटेनेंस पर होने वाला खर्च कम हो जाता है. इसका कारण यह है कि पेट्रोल और डीजल इंजन वाली कारें दहन ईंधन से चलती हैं, इसलिए उनकी सर्विसिंग और अन्य कल-पुर्जों को समयबद्ध तरीके से बदलने की जरूरत पड़ती है. इसके विपरीत इलेक्ट्रिक कारें दहन इंजन से नहीं चलती हैं, तो इनकी सर्विसिंग वगैरह की भी जरूरत कम पड़ती है और मेंटेनेंस पर होने वाला खर्च घट जाता है.

पेट्रोल-डीजल और इलेक्ट्रिक कारों की माइलेज और ईंधन पर खर्च

कारों के मामले में कीमत और मेंटेनेंस खर्च के अलावा सबसे अधिक ध्यान ईंधन पर होने वाला खर्च और माइलेज पर दिया जाता है. जीवाश्म ईंधनों में पेट्रोल कारों को चलाना सबसे महंगा है, क्योंकि पेट्रोल एक महंगा ईंधन है और कारें डीजल इंजन की तुलना में कम माइलेज देती हैं. डीजल की कीमतें पेट्रोल की तुलना में कम हैं और इसके अतिरिक्त, डीजल कारें आमतौर पर बेहतर ईंधन दक्षता प्रदान करती हैं, नतीजतन इनके ईंधन पर खर्च कम होता है. वहीं, अगर इलेक्ट्रिक कार की तुलना पेट्रोल-डीजल से चलने वाली कारों से करें, तो माइलेज के मामले में ये दोनों कारें इलेक्ट्रिक कार के मुकाबले कहीं ठहरती नजर नहीं आतीं. जैसा कि हमने पहले ही उदाहरण के तौर पर टाटा नेक्सन को लिया था, तो एक बार फिर उसके तीनों वेरिएंट पर ही बात कर लेते हैं. टाटा मोटर्स का दावा है कि नेक्सन 1.2 लीटर टर्बोचार्ज्ड पेट्रोल इंजन मैनुअल वर्जन में 17.33 किमी प्रति लीटर का माइलेज देती है. वहीं, 1.5 लीटर डीजल मैनुअल 23.22 किमी प्रति लीटर का माइलेज देती है, जबकि नेक्सन ईवी प्राइम की रेंज फुल चार्ज के बाद 312 किलोमीटर है. अब अगर किसी के पास इलेक्ट्रिक कार है, तो उसे पेट्रोल पर होने वाले हर साल करीब 86,400 रुपये की बचत होगी और डीजल इंजन कार के मुकाबले करीब 55,800 रुपये बचेंगे.

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इलेक्ट्रिक कार पर प्रोत्साहन देती है सरकार

अब जबकि आप इतना कुछ जान ही गए हैं, तो अहम फायदे के बारे में भी जान लें. अब अगर आप निजी उपयोग के लिए पेट्रोल-डीजल इंजन वाली कारों को छोड़कर इलेक्ट्रिक इंजन कार को खरीदने जा रहे हैं, तो आपको सरकार की ओर से प्रोत्साहन भी दिया जाएगा. अब आपके मन में सवाल यह पैदा होगा कि सरकार के प्रोत्साहन से आपको भला फायदा कैसे होगा? तो हम आपको बता दें कि भारत में इलेक्ट्रिक वाहनों को बढ़ावा देने के लिए केंद्र सरकार इन वाहनों को बनाने वाली कंपनियों और खरीदने वाले ग्राहकों दोनों को सब्सिडी के तौर पर प्रोत्साहन राशि देती है. सरकार की ओर से यह रकम फेम योजना के तहत दी जाती है. सरकार की ओर से दी जाने वाली यह सब्सिडी कार निर्माताओं की निर्माण लागत को कम करती है, तो खरीदारों को कम कीमत का भुगतान करना पड़ता है. इसलिए इलेक्ट्रिक वाहन को खरीदना घाटे का सौदा नहीं माना जाता है.

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